कोरोना और कलियुगी पुत्र के स्याह चेहरे से बूढ़ी अम्मा बेसहारा - Mukhyadhara

कोरोना और कलियुगी पुत्र के स्याह चेहरे से बूढ़ी अम्मा बेसहारा

admin
budhi maa

85 वर्षीय वृद्ध मां के साथ मारपीट कर पासबुक छीनकर घर से भगाया। पुलिस देवदूत बनकर आई सामने

कोटद्वार। कहते हैं संकट में साया भी साथ छोड़ देता है। लेकिन यह क्या, जब वैश्विक महामारी कोराना का संकट सामने खड़ा हुआ तो जिस बेटे को नौ माह तक मां ने दूध पिलाया, उसी बेटे ने घर से भगा दिया। ऐसे में बुजुर्ग मां के लिए पुलिस देवदूत बनकर सामने आई और उसकी मदद कर उसकी बेटी के ससुराल तक पहुंचाया।
यह घटना आपको भी भीतर तक झकझोर सकती है। दरअसल हुआ यूं कि कोटद्वार पुलिस को एक व्यक्ति द्वारा सूचना प्राप्त हुई कि आमडाली डाडामंडी रोड दुगड़्डा से एक बूढ़ी मां दुगड़्डा की तरफ आ रही है, किंतु लॉकडाउन में वाहन न मिलने के कारण वह पैदल ही चल रही हैं।

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इस सूचना पर त्वरित कार्यवाही करते हुए उत्तराखंड पुलिस के जवानों द्वारा आमडाली डाडामंडी पहुंचकर बूढ़ी मां को अपने वाहन में बैठाकर दुगड्डा लाया गया। जवानों ने जब अपनेपन का अहसास दिलाकर बुजुर्ग अम्मा से पूछा कि आप कहां जा रही थी, तो इससे उनकी आंखें छलछला पड़ीं और कहा कि अब उनका कोई नहीं है। बूढ़ी मां ने अपना नाम शान्ति देवी तथा अपनी उम्र 85 वर्ष बताई। उन्होंने बताया कि उनके लड़के ने उनसे मारपीट कर घर से निकालकर उनकी बैंक की पासबुक व अन्य कागजात भी छीन कर अपने पास रख लिए हैं। जिसमें मेरी पेंशन आती थी। इस पर जवानों द्वारा सर्वप्रथम बूढ़ी मां को भोजन कराया गया तथा अपने साथ बैंक ले जाकर, बैंक मैनेजर से बात कर खाते से धनराशि निकलवा कर बूढ़ी मां को दे दी गई। बूढ़ी मां द्वारा जवानों को बताया गया कि वह अपनी बेटी बीना, जिसका घर बांसी गांव रतुवाढाब में है, वहां जाना चाहती हूं।
पुलिस ने इस कठिन परिस्थिति में बूढ़ी मां के लिए वाहन की व्यवस्था करवाई और उनकी बेटी के पास भेजा गया। पुलिस जवानों का सेवाभाव देख बूढ़ी मां की आंखें छलछला गई और उन्होंने इस मुश्किल घड़ी में मिली सहायता पर जवानों को आशीर्वाद दिया।

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सवाल यह भी है कि जब बुजुर्ग मां को अपने पुत्र की सबसे ज्यादा जरूरत थी। यानि कि जिस पुत्र को कोरोना जैसी बीमारी में अपनी मां की विशेष देखभाल करनी चाहिए थी, ऐसे समय में पुत्र ने मां से कैसे किनारा कर लिया?
कोटद्वार क्षेत्र की यह घटना अत्याधुनिक समझने वाला सभ्य समाज को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है। सवाल यह है कि आखिर पुत्र ने इस विपदा की घड़ी में बुजुर्ग मां को कैसे घर से भगा दिया। क्या आज के दौर में मानवीय संवेदनाएं मर चुकी हैं।
सवाल यह है कि आज के दौर में जिस बेटी को पैदा होने से पहले ही गर्भ में मार दिया जाता हो, वही बेटी एक बूढ़ी अम्मा की आस ऐसी संकट की घड़ी में बन गई, जब उसके चिराग (लाडला पुत्र) ने ही उसे घर से बेदखल कर उसके हाल पर छोड़ दिया।
बहरहाल, यह घटना आज के समाज की आंखें खोल रही हैं कि आने वाला भविष्य वृद्ध मां-बाप के लिए कितना भयावह होने जा रहा है!

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