उत्तराखण्ड के सीनियर जर्नलिस्ट ने बताई ई-पास की कड़वी सच्चाई। गृह विभाग और डीजीपी से व्यवस्था को ठीक करने की मांग  - Mukhyadhara

उत्तराखण्ड के सीनियर जर्नलिस्ट ने बताई ई-पास की कड़वी सच्चाई। गृह विभाग और डीजीपी से व्यवस्था को ठीक करने की मांग 

admin 2
ramesh pahari 1

रमेश पहाड़ी/रुद्रप्रयाग 

कोविड-19 नामक भयानक संक्रामक बीमारी में पूरे देश का पुलिस-प्रशासन दिन-रात ड्यूटी बजा रहा है। इसकी पूरा देश प्रशंसा भी कर रहा है। यह बहुत अच्छा है लेकिन कुछ वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा कार्य करने के तरीके न सिखाये जाने और आवश्यक सुविधाएं तथा उपकरण न दिए जाने से कई मोर्चों पर यही व्यवस्थाएं पुलिसकर्मियों के साथ ही सामान्य जन-मानस के लिए भी परेशानी का कारण बन जाती हैं।

आजकल विभिन्न स्थानों पर फँसे लोग अपने घरों को लौट रहे हैं या किन्हीं अपरिहार्य कारणों से दूसरे स्थानों के लिए जा रहे हैं तो उनके लिए अनुज्ञा-पत्र जारी किये जा रहै हैं और कई स्थानों पर पुलिस उनकी जाँच कर रही है, जो कि आवश्यक भी है लेकिन जिस तेजी से और अनुज्ञाधारकों को कम से कम परेशानी में डाले, यह होना चाहिए, वह नहीं हो पा रहा है।

मैं एक वृद्ध पत्रकार हूँ। अपनी वरिष्ठ नागरिक पत्नी की आँखों का ऑपरेशन करने के लिए मैं उन्हें रुद्रप्रयाग से देहरादून ले गया। 11 मार्च 2020 को उनकी आँख का ऑपरेशन हुआ। डॉक्टरों ने पहले 2 दिन और बाद में 15 दिन बाद दिखाने को कहा। इसी बीच देश में कोरोना संक्रमण को रोकने के लिए लॉक डाउन हो गया। हम वहीं फँस गए। वापसी के लिए वाहन चालक सहित पुलिस सिटीजन पोर्टल पर आवेदन किया। 3 ई पास में से 2 गलत बना दिये। सुधारने की कोई व्यवस्था नहीं हुई। अंततः वापसी स्थगित करनी पड़ी। 3 सप्ताह बाद, फिर प्रशासन के पोर्टल पर आवेदन किया और एकाध फोन भी करवाया तो पास तुरन्त बन गए लेकिन पास में किराये के वाहन को वापसी के लिए अनुज्ञा उसमें अंकित नहीं हुई।

अब निर्धारित समय पर देहरादून से चलकर 8 बजे ऋषिकेश पहुँच गए। वहाँ से 8 पुलिस बैरियरों पर जाँच कराने में हमारे 3 घण्टे 25 मिनट खर्च हो गए, वह भी तब, जब एक चौकी पर एक परिचित अधिकारी का सहयोग भी मिला। अन्यथा यह समय और अधिक बढ़ता। टिहरी जिले में तपोवन, देवप्रयाग, मलेथा और कीर्तिनगर में जाँच हुई। यही नहीं, कीर्तिनगर पुल के उस पार टिहरी और इस पार पौड़ी पुलिस ने जाँच की। जाँच में बात भी कोई नई नहीं। वही सवाल, वही जवाब। दो स्थानों पर थर्मल स्क्रीनिंग भी हुई। जब पास हाथ में है, उसमें सवारियां भी उतनी ही हैं तो अलग-अलग चौकियों पर जाँच की आवश्यकता क्यों है? उसका तर्क क्या है? पुलिसकर्मियों के पास इसका कोई उत्तर नहीं, सिवाय इसके कि “ऊपर से आदेश हैं”। इसका मतलब तो यही है कि ऊपर वालों को व्यवस्था को तर्कसंगत बनाने पर विचार करने की फुर्सत नहीं है। इससे पुलिसकर्मियों को भी अपनी ऊर्जा और समय अनावश्यक खर्च करना पड़ता है। क्या यह सम्भव नहीं है कि जब पास जारी करने में काफी सख्ती बरती जा रही है तो पास सही बनें और इस डिजिटल युग में चौकियों पर उनका अभिलेख हो। हाथ से रजिस्टर पर कोई कितना लिख सकता है और बार-बार लिखा भी क्यों जाना चाहिए? एक चौकी पर जाँच हो गई तो एक मुहर लगाकर बीच रास्ते की झँझट उससे दूर क्यों नहीं की जा सकती? जहाँ से सवारी चल रही है, वहाँ आरम्भ में एक जाँच और जहाँ उतर रही है, वहाँ आखिरी जाँच करके कार्मिकों, यात्रियों और वाहन चालकों का श्रम व समय बचाने के बारे में क्यों नहीं सोचा जाना चाहिए?

यह भी विचारणीय होना चाहिए कि इंटरनेट, कम्प्यूटर, सुशासन, डिजिटल इंडिया आदि जुमलों को अमलीजामा पहनाने के लिए जो कार्ययोजनाएं बनती हैं और जो वित्तीय प्राविधान किये जाते हैं, उनका कोई अनुश्रवण भी होता है या नहीं? और यदि होता है तो हम दसियों जगह रजिस्टरों पर लिखवाने में अपने कार्मिकों की ताकत क्यों जाया कर रहे हैं और इस स्थिति के लिए जिम्मेदार अफसरों को पदों पर क्यों बने रहना चाहिये?

यह भी पढ़ें : दु:खद खबर : टिहरी जनपद में 15 दिन के भीतर दूसरी विवाहिता की संदिग्ध मौत। डेढ़ साल की नन्हीं बच्ची छोड़ गई

Next Post

उत्तराखंड में रुकी हुई पेंशन प्रक्रिया सरल। विभागों को वेतन और अन्य खर्चों के लिए बजट जारी

देहरादून। कोरोना संकट के बीच आर्थिक चुनौती के बावजूद सरकार ने कर्मचारियों के वेतन और कार्यालय खर्चों के लिए बजट जारी कर दिया है। चालू वित्तीय वर्ष के आय-व्ययक में से पचास फीसदी धनराशि विभागों को जारी की गई है। […]
rs 2

यह भी पढ़े