पत्रकारिता जगत के इस पुरोधा का लेखन में पचास वर्षों का सफर पूरा। आजादी के छह दिन बाद 22 अगस्त 1947 को हुआ था जन्म - Mukhyadhara

पत्रकारिता जगत के इस पुरोधा का लेखन में पचास वर्षों का सफर पूरा। आजादी के छह दिन बाद 22 अगस्त 1947 को हुआ था जन्म

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journalist ramesh pahari

मामचन्द शाह/देहरादून

ऐसे बहुत कम खुशनसीब लोग होते हैं, जो पचास वर्षों तक अनवरत अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को आइना दिखाने का काम करते हों, लेकिन इनसे भी कहीं ऐसे खुशनसीब उत्तराखंड में पत्रकारिता के एक ऐसे पुरोधा हैं, जिन्होंने न सिर्फ अपने लेखन के पचास वर्ष पूर्ण कर लिए हैं, बल्कि उनका जन्म ऐसे ऐतिहासिक क्षणों के दौरान हुआ है, जिन्हें पूरे भारतवर्ष के लोग हर वर्ष पूरे हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं।
जी हां! हम बात कर रहे हैं रुद्रप्रयाग निवासी वरिष्ठ पत्रकार रमेश पहाड़ी की। उनका आज जन्मदिन है। उनका जन्म आज ही के दिन 22 अगस्त 1947 को हुआ था। वे ऐसे ऐतिहासिक क्षण थे, जिन दिनों पूरे देश में आजादी की खुशियां मनाई जा रही थी। 15 अगस्त 1947 को भारतवर्ष आजाद हुआ था और उसके ठीक छह दिनों बाद रमेश पहाड़ी का जन्म हुआ। उनके जन्म के बाद पूरे गांव में खुशियां मनाई गई और कहा गया कि इस बालक का जन्म आजाद भारत में हुआ है तो यह आगे चलकर अपने माता-पिता और क्षेत्र का नाम रोशन करेगा। श्री पहाड़ी आज अपने गांव और क्षेत्र ही नहीं, बल्कि अपनी लेखनी के माध्यम से पिछली आधी शताब्दी से समूचे उत्तराखंड का नाम रोशन कर रहे हैं।श्री पहाड़ी अत्यंत मृदुभाषी और व्यवहार कुशल के लिए खासे लोकप्रिय हैं। अपने साधारण व्यवहार के कारण ही उनसे थोड़ी सी बातचीत में ही सामने वाला उनका मुरीद बन जाता है। आइए थोड़ा और विस्तार से इस पर प्रकाश डालते हैं।

श्री पहाड़ी बताते हैं कि 2 मई 1967 के दिन पहली बार एक समाचार अपने हाथों से लिखा था। (इस प्रकार अब उनकी पत्रकारिता के 53 साल पूर्ण हो चुके हैं।) तब वह छपाई के बारे में तो बहुत कुछ जानने लगे थे, किंतु समाचार कैसे लिखना है, यह नहीं जानते थे। पत्रकार बनूंगा, यह तो कभी कल्पना भी नहीं की थी।

तब वह महाराष्ट्र के नागपुर में एक छोटे से प्रिन्टिंग प्रेस में काम करते थे। दिन भर काम करने के बाद रात को जवाहर नाइट कॉलेज में पढऩे जाते थे। तब वह 10वीं के छात्र थे। वहां सरकारी दफ़्तरों के दो कर्मचारी, अवस्थी जी और शुक्ला जी भी पार्ट टाइम टीचर के रूप में पढ़ाने आते थे। अवस्थी जी हमें हिन्दी पढ़ाते थे और उ. प्र. का होने तथा मेरी हिन्दी ठीक-ठाक होने के नाते मुझे अच्छा मानते थे। वहां हम हिन्दी भाषियों का एक संगठन भी था और हम नागरी प्रचारिणी सभा के सदस्य भी साथ-साथ थे।
श्री पहाड़ी बताते हैं कि मैं गोविंद राव नामक अपने एक दोस्त के साथ कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यालय भी कभी चला जाया करता था, जहां सीपीआई के नेता एबी वर्धन और आसन दास कल्याणी जी से भेंट होती। कल्याणी जी बुकसेलर थे और उनका एक छोटा-सा प्रेस भी था। पार्टी के कार्यालय में कई ट्रेड यूनियन नेता आते, उनसे भी मुलाकात होती।
2 मई को वह गोविंद के साथ वहां गए तो ट्रेड यूनियनों द्वारा एक मई को जो जुलूस निकाला गया और जो सभाएं की गईं, उन पर समाचार बनाने की चर्चा हो रही थी। मुझे देख कर अवस्थी जी ने कहा कि रमेश की हिन्दी अच्छी है, समाचार ये बनायेगा। वे मुझे बताने लगे और मैं उस पर समाचार लिखता चला गया। समाचार ट्रेड यूनियन की पत्रिका के अलावा दैनिक नव भारत में भी छपा। उसके बाद वे लोग मुझसे समाचार बनवाते रहे और मैं अनचाहे-अनजाने पत्रकार बन गया। पहले तो मुझे यह काम बोझिल लगता, लेकिन जैसे-जैसे खबरें छपती, मेरी तारीफ़ होती, मैं इसमें रमता चला गया!

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कुछ साल फिर अंशकालिक और पूर्णकालिक संवाददाता रहने के बाद वह दिसंबर 1971 में पत्नी को साथ ले जाने के बहाने घर आए, लेकिन फिर वापस लौटने की बजाय यहीं का होकर रह गया। 9 फरवरी 1972 से देवभूमि, 1 नवंबर 1974 से उतराखंड आब्जर्वर तथा अक्टूबर 1977 से अनिकेत के प्रकाशन-संपादन के बाद अब छुटपुट लेखन हो रहा है।
आज यह कहते हुए हिचक नहीं होनी चाहिए कि उत्तराखंड पत्रिकारिता जगत में रमेश पहाड़ी एक ऐसा नाम है, जिन्होंने अभावों और संघर्ष के बीच पत्रकारिता के कर्म और धर्म का निर्वहन करने में कभी कोई समझौता नहीं किया। पत्रकारिता की समाज के प्रति प्रतिबद्धता को कभी कम नहीं होने दिया और पत्रकारिता के सम्मान तथा जनता के विश्वास को भी कम होने नहीं दिया।
पत्रकारिता के साथ ही वह अन्याय, उत्पीडऩ, शोषण व विषमता के खिलाफ हमेशा आवाज उठाते रहे, इसके लिए लड़ते रहे। समाज के संघर्षों में यथाशक्ति मनोयोगपूर्वक भागीदारी की और इस सबमें समाज के हितों पर अपने हितों की बलि चढ़ाने में जरा भी संकोच अथवा सोच-विचार नहीं किया।
श्री पहाड़ी अपने जन्मदिन के अवसर पर आज इस बात का भरपूर संतोष जताते हैं। वे बड़ी बेबाकी से कहते हैं कि सामाजिक उद्देश्यों में वह कितने सफल रहे होंगे, इसका मूल्यांकन तो प्रबुद्धजन करेंगे, लेकिन अपने काम से मुझे पूरी संतुष्टि है।
श्री पहाड़ी बताते हैं कि मैंने 40 वर्ष लगातार अनिकेत का प्रकाशन-सम्पादन किया। अनिकेत को अद्र्ध-साप्ताहिक व दैनिक प्रकाशन का भी प्रयास किया। अमर उजाला का संवाददाता, दैनिक हिमालय दर्पण का उत्तराखण्ड प्रभारी, जल संस्कृति, धरती पर उतरो, अमृता, ज्ञानगंगा, सुचेतना, सहित दर्जनभर पत्रिकाओं का सम्पादन किया। सात हजार से अधिक लेख व रिपोर्टों के लेखन के साथ ही अनेक जनांदोलनों का भी सफल संचालन किया।
आज श्री पहाड़ी का जन्मदिन है। कोरोनाकाल में इस बार सादगी के साथ उनका जन्मदिन मनाया जा रहा है। #मुख्यधारा टीम की ओर से श्री रमेश पहाड़ी जी को जन्मदिन की ढेरों शुभकामनाएं और उत्तम स्वास्थ्य की कामना सादर प्रेषित।

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