निर्भया कांड के दरिंदों को फांसी के बाद हर कोई खुश - Mukhyadhara

निर्भया कांड के दरिंदों को फांसी के बाद हर कोई खुश

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राजपुर रोड के एक संस्थान में शिक्षा ग्रहण कर रही थी निर्भया

देहरादून। शुक्रवार की सुबह पूरे देश के लिए न्याय की सुबह थी। बालात्कार जैसे जघन्य अपराध से पूरा देश अंदर से टूट जाता है। निर्भया कांड हर वर्ग, जाति-धर्म के लोगों के लिए काला दिन था। उन सभी दोषियों को भी इस प्रकार की कड़ी सजा मिलनी चाहिए, जिन्होंने देश की लाखों बेटियों के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश भी की है। साथ ही सरकार को इस प्रकार के आरोपियों को जल्द सजा देने के लिए न्याय व्यवस्था को सुधरना होगा।
सात साल और चार दिन बाद आखिरकार देश की बेटी निर्भया और उसके परिजनों को न्याय मिल ही गया। निर्भया की मां के साथ समूचे दूनवासियों को भी इसकी तस्सली हुई। फैसले और सजा के बाद दोषियों को मिली फांसी के बाद ये उम्मीद करनी चाहिए कि ये घटना और उसका परिणाम अपराधियों के मन में खौफ पैदा करेगा।

16 दिसम्बर 2012 को जब ये घटना घटी दूनवासियों के मन में एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया थी, गुस्सा और गम था। पर जल्द ही साफ हो गया कि निर्भया राजपुर रोड के एक संस्थान में अपने सुनहरे भविष्य की नींव गढऩे के लिए पढ़ाई कर रही थी तो दून के लोग सड़कों पर उतर आए। उसके सहपाठी छात्रा, छात्राएं रैली जुलूसों में सबसे आगे रहते थे।

घंटाघर के पास पार्क पार्क ऐसी कितनी ही कैंडल मार्च, धरने प्रदर्शन का गवाह बना। इन स्वत:स्फूर्त प्रदर्शनों ने दिल्ली और पुलिस प्रशासन पर भरपूर दबाव बनाया। निर्भया को मेडिकल सुविधओं के लिए सिंगापुर तक ले जाया गया। दुर्भाग्य से जीवट वाली लड़ाई इस नियति से वह हार गई। एमजीआर उसके साथ उठ खड़े हो चुके लोग जाग चुके थे।
प्रदीप कुकरेती बताते हैं कि निर्भया ने देशवासियों को जागृत करने के लिए खुद का बलिदान दिया। उसकी मां की अगुवाई में दिल्ली मे 7 साल 3 महीने लंबी कानूनी लड़ाई जीती। शुक्रवार सुबह साढ़े 5 बजे 4 दरिंदों को फांसी पर लटका देख हर कोई खुश है। हालांकि दून के लोगों का कहना है कि सरकार को कानून की ऐसी कमियों को दूर करना होगा कि उन्हें सजा मिलने में कोई देरी न हो।

सजा के डर से लोग लड़कियों का सम्मान करें। निर्भया और उसके परिवार को न्याय मिलने में लंबा समय लगा है। अंत में न्याय और निर्भया की जीत हुई है।
वहीं दिशा सामाजिक संस्था ने निर्भया के दोषियों को फांसी दिए जाने पर खुशी जताई है। सचिव सुशील विरमानी और उपाध्यक्ष प्रभात डंडरियाल ने कहा कि इस फैसले में भले ही देर हुई है, लेकिन ऐसा करने वालों के लिए यह सबक ही नहीं, बल्कि दहशत का पर्याय भी बनेगा। अपराध करने वालों में खौफ पैदा होगा।

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