उत्तराखंड के हालात : टका बिन झकझका - Mukhyadhara

उत्तराखंड के हालात : टका बिन झकझका

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उत्तराखंड के साथ बड़ी समस्या यह है कि सरकार की हालत ‘आमदनी चवन्नी तो खर्चा रुपया’ जैसी है। कोविड-19 से यहां की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है। ढ़ांचागत विकास ठप होने लगा है। इस हालत में प्रदेश सरकार ने एक बार फिर संशोधित प्रतिवेदन के साथ 15वें वित्त आयोग के दर पर दस्तक दी है। राज्य ने अब आयोग से गुजारिश की है कि राजस्व घाटा अनुदान के साथ ही केंद्र पोषित योजनाओं के रूप में केंद्र से मिलने वाले अनुदान को बढ़ाया जाए

मुख्यधारा ब्यूरो

देहरादून। सामान्य रूप से देश की आर्थिक स्थिति से उत्तराखंड के आर्थिक हालात अलग नहीं हो सकते और उस पर किसी एक प्रदेश का नियंत्रण नहीं हो सकता, पर प्रदेश के स्तर पर राज्य सरकार लोगों को इस महामारी के कुप्रभाव से बचाने और लॉकडाउन व उसके बाद की स्थिति में राहत पहुंचाने व सहायता उपाय करने के लिए स्वतंत्र है। इसमें संक्रमित लोगों की तुरंत पहचान व इलाज, कंटेनमेंट जोन की पहचान व उससे निपटने की व्यवस्था, संक्रमण का दायरा न्यूनतम बनाए रखने को सोशल डिस्टेंसिंग लागू कराना, आवश्यक मेडिकल वस्तुओं की आपूर्ति सही दर पर सुनिश्चित करना, दैनिक आधारभूत वस्तुओं की पर्याप्त उपलब्धता बनाए रखना और जिन काम-काजी लोगों की आय पूरी तरह दैनिक मजदूरी पर टिकी है उन्हें सहायता देना और जनता में विश्वास बनाए रखना व जन सहयोग खास हैं, जिनके लिए सरकार फौरन कार्य कर सकती है, पर इसके लिए जरूरी है कि सरकार का तंत्र संवेदनशील व दु्रत तौर पर गतिशील हो और वित्तीय हालत इस लायक हो कि वह बिना केन्द्र का मुंह ताके एक हद तक सहायता कार्यक्रम चला सके। उत्तराखंड के साथ बड़ी समस्या यह है कि सरकार की हालत ‘आमदनी चवन्नी तो खर्चा रुपया’ जैसी है। कोविड-19 से यहां की अर्थव्यवस्था को बड़ा झटका लगा है। ढ़ांचागत विकास ठप होने लगा है। इस हालत में प्रदेश सरकार ने एक बार फिर संशोधित प्रतिवेदन के साथ 15वें वित्त आयोग के दर पर दस्तक दी है। राज्य ने अब आयोग से गुजारिश की है कि राजस्व घाटा अनुदान के साथ ही केंद्रपोषित योजनाओं के रूप में केंद्र से मिलने वाले अनुदान को बढ़ाया जाए। याद रहे कि आयोग की सिफारिश पर वर्ष 2020-21 के लिए राज्य को करीब 5076 करोड़ राजस्व घाटा अनुदान मंजूर हुआ है। आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही 2025 तक राज्य को केंद्रीय मदद मिलेगी। चालू वित्तवर्ष में पहली तिमाही में राजस्व वसूली पटरी पर नहीं आ पाई है, जबकि वित्तीय वर्ष के पहले महीने अप्रैल में ही बाजार से 1000 करोड़ लेने की नौबत आ चुकी है।
खर्चा कम से कम रखने के चक्कर में राज्य सरकार ने इस कोरोना काल में तक पीले राशन कार्ड धारियों से राशन की निर्धारित पूरी कीमत वसूली। वह केन्द्र की सहायता में ही ताली पीटकर बहती गंगा में हाथ धोने पर लगी रही। हालांकि इस दौरान सरकार ने अपना तामझाम बढ़ाने के लिए गैरजरूरी खर्च करने में भी संकोच नहीं किया। जब कोरोना से हर कोई अपनी शक्ति के अनुसार जूझ रहा है तब वर्चुअल कक्षाओं के नाम पर करोड़ों के घोटाले के आरोप लगे हैं। हालत ये है कि कोरोना संक्रमण के बढ़ते खतरे के बीच आने वाले दिनों में भी अर्थव्यवस्था की स्थिति का अंदाजा लगाना कठिन होता जा रहा है। राज्य का खर्च तकरीबन 45 हजार करोड़ पहुंच चुका है। इसमें से 20 हजार करोड़़ ही राज्य अपने तमाम स्रोतों से जुटा पा रहा है। शराब बिक्री को बढ़ावा देने से भी बड़ा अेंतर नहीं आ पा रहा है। कोरोना ने इन स्रोतों की ताकत भी सोख ली है। इस स्थिति में 25 हजार करोड़ के अंतर को पाटना सरकार के लिए चिंता का कारण बना हुआ है।
कोविड-19 के संक्रमण से तत्काल तो जान बचाना ही सबसे बड़ी चुनौती है और आगे रोजी-रोटी और जीवनस्तर की संभावित गिरावट को संभालना और बड़ा कार्यभार है। सरकार इस जिम्मेदारी से बच नहीं सकती। भारत में कोविड-19 संक्रमित लोगों की संख्या 29 मार्च को 1023 थी, जिसमें 95 रिकवर हो चुके थे और 27 लोगों की मृत्यु हो गई। उत्तराखंड में 29 मार्च तक छह व्यक्तियों के कोरोना वाइरस से संक्रमित होने का पता चला।
22 August 2020 के रात्रि के आंकड़े के मुताबिक उत्तराखंड में अभी तक कुल कोरोना संक्रमित 14566 पाए गए, जिनमें से 10021 रिकवर हो गए हैं, जबकि 195 की मृत्यु हुई है। इस आंकड़े के अनुसार राज्य में रिकवरी रेट 68.80% है।

यह रिकवरी दर राष्ट्रीय आंकड़़े से कम हो गई है, वहीं मृत्यु दर के मामले में उत्तराखंड कई बेहतर स्थिति में है, जबकि उत्तराखंड की स्वास्थ्य सेवा को लेकर अक्सर सरकार की आलोचना होती है। रिकवरी रेट कम होने की एक बड़ी वजह मई व जून में देश के औद्योगिक शहरों से लाखों की संख्या में अपने घरों को लौटे प्रवासी हैं जिनमें कोविड-19 संक्रमितों की काफी संख्या पाई गई और इस वजह से संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ी, जिसने रिकवरी रेट को नीचे लाने का भी काम किया। याद रहे कि उत्तराखंड में कोविड-19 से संक्रमण का पहला मामला 15 मार्च को एफआरआइ में एक स्पेन से लौटे ट्रेनी आइएफएस का सामने आया। इसके बाद स्पेन से ही लौट कर आए दो और ट्रेनी आइएफएस मार्च 19 को कोरोना वाइरस से संक्रमित पाए गए। चौथा मामला 24 मार्च को पता चला। यह व्यक्ति यूएस से लौट कर आया था। इन सभी का अस्पताल में इलाज सफल रहा। शुरू में बेहद कम टेस्टिंग हुई, क्योंकि प्रदेश में हल्द्वानी स्थित सुशीला तिवारी मेडिकल कालेज अस्पताल में एक मात्र कोरोना वाइरस के डाइग्नोसिस का सेन्टर था, हालांकि प्रदेश में सेंपल एकत्र करने के कई सेंटर अलग-अलग जगहों पर बनाए गए। बाद में कोविड अस्पताल बनाए गए राजकीय दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल, एम्स ऋषिकेश, आइआइपी देहरादून और देहरादून में एक निजी लैब में भी टेस्टिंग लेब बनाई गई। कोरोना से लडऩे में सरकारी अस्पतालों की अहमियत एक बार फिर सामने आई। उत्तराखंड के लिए यह एक सीख भी है। जिस तरह केरल सरकार ने 2018 की विनाशकारी बाढ़ और नेपा वाइरस से सामना करने के दौरान हासिल अनुभव और बेहतर बनाए गए स्वास्थ्य सेवा ढांचे का कोविड-19 से लडऩे में उपयोग किया, उसी तरह राज्य सरकार को कोविड के इस अनुभव को देखते हुए अपनी स्वास्थ्य सेवा को सुदृढ़ करने को जमीनी कार्य करना होगा, ताकि आगे किसी भी चुनौती का सामना करने में आत्मविश्वास ऊंचा रहे। केन्द्र ने राज्यों के स्वास्थ्य ढ़ांचे के उन्नयन के लिए 100 प्रतिशत वित्तीय सहायता वाले पैकेज की घोषणा की है, जिसे 2020 से 2024 तक तीन चरणों में दिया जाएगा, उत्तराखंड को उपयोग करने के लिए फुर्ती दिखाने की जरूरत है।
आज की हालत में यह बात सभी मानने लगे हैं कि लॉकडाउन की एक सीमा है और इससे वाइरस के संक्रमण को पूरी तरह रोकना संभव नहीं है। इसीलिए सरकार ने लोगों को बाहर निकलने की छूट दी है, ताकि ठप पड़ी आर्थिक। गतिविधियों को चालू किया जा सके। पिछले दो-तीन माह में अगर लाभ कमाया तो उनमें गूगल, ऐपल, फेसबुक और अमेजन जैसी कंपनियां शामिल हैं। करोड़ों की संख्या में स्कूलों, संस्थानों में विद्यार्थी ऑनलाइन पढ़ाई कर रहे हैं, सामान्य हालत मैं यह संख्या कभी भी इतनी ज्यादा नहीं होती। पिछले दिनों से भाजपा ने वर्तमान केन्द्र सरकार के कार्यकाल का पहला वर्ष पूरा होने पर व बिहार चुनाव की तैयारी के लिए वर्चुअल रैलियों का आयोजन भी शुरू कर दिया, जिसमें जम कर खर्चा किया जा रहा है। इन सब गतिविधियों में टेलीकम्युनिकेशन कंपनियों का व्यवसाय बढ़ा है। पर यह कामकाजी जनसंख्या के एक बहुत छोटे हिस्से को कवर करता है, जबकि जरूरत है कि आम लोगों की जेब में बाजार में खरीददारी करने के लिए पैसा आए। उत्तराखंड के लिए पर्यटन का सहारा रहता है पर इस बार उस पर भी कोरोना के काले बादल छाए हुए हैं। आर्थिकी को चलाने के लिए जिस तरह अब आवाजाही बढ़ गई है, वह दोधारी तलवार हो सकती है। अब इसी सच्चाई के साथ आगे बढऩे के सिवा फिलहाल और कोई रास्ता नहीं दिख रहा।
राज्य सरकार ने इसके लिए क्वारंटीन पर रखे गए लोगों की नियमित मॉनिटरिंग करने, सर्विलांस सिस्टम को और अधिक मजबूत करने, चार मैदानी जनपदों देहरादून, हरिद्वार, उधमसिंह नगर एवं नैनीताल में विशेष सतर्कता बरतने की नीति अपनाई है। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने कन्टेंटमेंट जोन माइक्रो लेबल पर बनाने के निर्देश दिए हैं, ताकि उनकी निगरानी भी सही तरीके से हो एवं लोगों को अनावश्यक परेशानियां न हो।
आगे और मामले बढऩे की हालत में स्थिति का सामना करने के लिए एसडीआरएफ के सहयोग से नैनीताल में 500 बैड का कोविड केयर सेंटर बनाया जाएगा। अभी उत्तराखण्ड बेहतर रिकवरी रेट में देश के गिने-चुने राज्यों के साथ है पर कोविड पर प्रभावी नियंत्रण हेतु उत्तराखंड की सीमा से लगे अन्य प्रदेशों की सीमा पर सतर्कता बरतना बेहद जरूरी है।
पूर्व मुख्य सचिव उत्पल कुमार सिंह का कहना है कि सर्विलांस सिस्टम को प्राथमिकता देने के साथ कान्टेक्ट ट्रेसिंग पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है और सभी जिलों में सैंपल टेस्टिंग टारगेटेड किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि हमें कोरोना से बचाव के साथ ही आर्थिक गतिविधियों पर भी ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा कि राज्य में स्थिति नियंत्रण में है।

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