सवाल: आखिर शराब के ओवर रेट को लेकर क्या कदम उठा रही सरकार! बिल की अनिवार्यता पर चुप्पी क्यों! - Mukhyadhara

सवाल: आखिर शराब के ओवर रेट को लेकर क्या कदम उठा रही सरकार! बिल की अनिवार्यता पर चुप्पी क्यों!

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देहरादून। निर्धारित राजस्व हासिल करने के फेर में उलझी उत्तराखंड सरकार ने शुक्रवार की कैबिनेट बैठक में शराब के दामों में कमी करने का निर्णय तो ले लिया, लेकिन शराब माफियाओं पर नकेल कसने को लेकर अभी भी सरकार ने कोई सख्त रणनीति नहीं बनाई है। प्रदेशभर में ऐसा शायद ही कोई ठेका हो, जहां लोगों से प्रिंट रेट से ज्यादा ओवर रेट न वसूला जा रहा हो। इसमें चाहे किसी भी साइज की बोतल हो, सेल्समैन द्वारा सभी से ओवर रेट ही वसूला जाता है। विरोध करने पर मारने-पीटने और आरोप लगाने से भी परहेज नहीं किया जाता।
यूं तो इन माफियाओं के खिलाफ कोई भी आवाज उठाने की हिमाकत नहीं करता, किंतु कभी यदि किसी ने ओवर रेट को पूछ लिया तो सेल्समैन द्वारा दामों में बढौतरी की बात कहकर उसे टाल दिया जाता है।
इस सबके बीच शराब की कीमत उत्तर प्रदेश से भी सस्ती होने की खबरों के चलते मदिरापान के शौकीनों का इस ओर ध्यान ही नहीं जा रहा है कि सरकार ने ओवर रेट को लेकर आखिर क्या कदम उठाए हैं! आखिर उनकी जेब से प्रिंट रेट से ज्यादा क्यों वसूला जा रहा है।
कैबिनेट फैसले के मुताबिक चालू वित्तीय वर्ष की अपेक्षा आगामी वित्तीय वर्ष में मदिरा प्रेमियों को करीब २० प्रतिशत सस्ती शराब खरीदने का मौका मिलेगा। इस पर ओवर रेट की अनिवार्य शर्त बिना कुछ कहे सेल्समैन के सम्मुख स्वीकार करना पड़ेगा। बेहतर होता कि सरकार द्वारा प्रिंट रेट पर बिल देने की अनिवार्यता पर भी कुछ ठोस निर्णय लिया जाता।
बताते चलें कि पिछली सरकार व वर्तमान के दौरान भी ओवर रेट की कुछ शिकायतें सामने आने के बाद तब शराब के सभी ठेकों को प्रिंट रेट के अनुसार ग्राहक को बिल देने के निर्देश दिए गए थे। लेकिन सरकार ने भी मात्र घोषणा कर इतिश्री कर ली और शराब की दुकानों का अपना पुराना ढर्रा ही चलता रहा। सरकार संबंधित विभागीय अधिकारियों की सख्ती से जिम्मेदारी तय करती तो आम जन की जेब पर जबरन इस तरह डाका न डाला जा रहा होता।
जाहिर है कि आम जन शराब ठेके के सेल्समैन से झगडऩे की बजाय चुपचाप मदिरा लेकर चले जाते हैं। बस यही कमी सेल्समैन को पता होती है और वह प्रत्येक ग्राहक से २०-२०, ३०-३० रुपए अधिक काटकर शाम होने तक चांदी काट लेते हैं।
कई बार तो यह बात भी सामने आई है कि सेल्समैन द्वारा एटीएम कार्ड से स्वैप कराने के बाद भी ग्राहक से ओवर रेट वसूला गया है। इन शराब माफियाओं की हकीकत जानने के उद्देश्य से कई बार प्रसिद्ध मानवाधिकार एवं आरटीआई कार्यकर्ता भूपेंद्र कुमार ने भिन्न-भिन्न ठेकों से एटीएम कार्ड के जरिए मदिरा खरीदी। ताज्जुब की बात यह रही कि सेल्समैन ने कार्ड से स्वैप कराने के बाद भी उनसे अधिक बिल वसूल किया। इस बिल के जरिए भूपेंद्र कुमार कई ठेकों पर ओवर रेट के आरोप में जुर्माना तक लगवा चुके हैं।
इससे भी गजब बात यह होती है कि आज जुर्माना भरने के बाद यदि उसी ठेके में पुन: शराब खरीदने को जाया जाए तो सेल्समैन फिर से किसी भी ग्राहक से ओवर रेट ही वसूलता है। यदि किसी को भी बात की सत्यता जाननी है तो प्रदेश के किसी भी ठेके पर जाकर सत्यता को बड़ी आसानी से परखा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि संबंधित आबकारी निरीक्षक को ओवर रेट की जानकारी न होती हो, बल्कि यूं कहें कि आबकारी निरीक्षकों की भी शराब ठेकों को ओवर रेट वसूलने की मौन स्वीकृति होती है, तो यह ज्यादा सटीक होगा।
बहरहाल, सुराप्रेमी उत्तराखंड में यूपी से कम रेट की शराब होने की बात से फूले नहीं समा रहे हैं और शराब माफियाओं द्वारा ओवर रेट वसूले जाने की बात पर सभी खामोश हैं। जाहिर है कि जब तक सरकार ने सख्ती से ओवर रेट वसूलने को लेकर कोई कदम नहीं उठाया, तब तक सस्ती शराब करने का कोई औचित्य नहीं है और तब तक शराब माफियाओं का डाका आम जनता की जेब पर यूं ही पड़ता रहेगा!

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