सरल एवं सहज स्वभाव के धनी स्वर्गीय बची सिंह रावत

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सरल एवं सहज स्वभाव के धनी स्वर्गीय बची सिंह रावत

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

मूल रूप से अल्मोड़ा के पाली गांव के रहने वाले बची सिंहढ रावत की जन्म 1 अगस्त 1949 को हुआ था।जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई।जिसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय से की। आगरा विश्वविद्यालय में उन्होंने एमए अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की।साल 2007 से बची सिंह रावत अपने परिवार के साथ हल्द्वानी के करायल जौलासल में रहते लगे। बची सिंह रावत जी उन चन्द लोगों में शामिल थे जिन के संसर्ग में रहकर हमने समाज को देखने की थोड़ा समझ विकसित की।इधर बच्ची सिंह रावत जी रानीखेत में अपनी सरलता के लिए जाने जा रहे अधिवक्ता थे लेकिन उनके भीतर वह आत्मविश्वास नहीं था कि वह कांग्रेस के किसी धनाढ्य और बाहुबली प्रत्याशी का मुकाबला कर सकें। हालांकि प्रमुख के चुनाव में तब बी.डी.सी मेंबर के लिए रुपए से खरीद फरोख्त नहीं होती थी लेकिन बी.डी.सी मेम्बर को इकट्ठा रखने के लिए धन और बाहुबल की आवश्यकता होती ही थी।

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बच्ची सिंह जी ने विधायक व सांसद होने के साथ ही केंद्रीय मंत्री का भी महत्वपूर्ण पद प्राप्त किया लेकिन यह उनकी सरलता व बडप्पन ही था कि वह उस शुरुआती संपर्क के प्रति हमेशा अपनी आंखों से कृतज्ञता जताते रहे थे। बची सिंह रावत के करीबी लोग बताते हैं कि उनका नाम बची सिंह रावत बाद में रखा गया था।उनका असली नाम आनंद सिंह रावत था। वर्तमान में बीजेपी के ओबीसी मोर्चा के प्रदेश उपाध्यक्ष और बची सिंह रावत के करीबी रहे अजय वर्मा बताते हैं कि जब वह पैदा हुए तो बहुत बीमार हो गए थे।उनके बचने की उम्मीद काफी कम थी।किसी ज्योतिषी के कहने पर उनके पिता ने उनका नाम बची सिंह रावत रखा। बची सिंह रावत नाम रखने बाद एकाएक चमत्कार हुआ। उनकी खराब तबीयत ठीक हो गयी।तब से ही वह परिवार में बची सिंह रावत के नाम से ही जाने जाने लगे। 1992 में पहली बार वह उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य चुने गए। 1993 में दोबारा विधायक का चुनाव लड़ा और जीत गये।

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अगस्त 1992 में 4 महीने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार में राजस्व मंत्री बनाये गए। 1996 में लोक सभा चुनाव जीतकर सांसद बने।जिसके बाद उन्होंने राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा।1996-1997 तक संसद की कई कमेटी के सदस्य भी रहे।1998 में दोबारा लोक सभा में चुनकर आये. 1998-99 तक फिर महत्वपूर्ण कमेटियों जैसे सूचना-प्रसारण मंत्रालय के सलाहाकर रहे।1999 में दोबारा लोक सभा चुनाव हुए, वे तीसरी बार रिकॉर्ड मार्जिन से सांसद चुनकर आये।1999 में ही पहली बार केंद्र सरकार में रक्षा राज्य मंत्री का पद संभाला। फिर 1999-2004 तक निरंतर विज्ञान और तकनीकी केंद्रीय राज्यमंत्री रहे।

2004-2006 में फिर से लोक सभा सांसद बने लेकिन इस बार विपक्ष में बैठना पड़ा। 2007 चुनाव में पार्टी अध्यक्ष बने। पार्टी को विधान सभा चुनावों में बहुमत दिलवाया और 2009 तक इस पद पर बने रहे।वह अल्मोड़ा लोकसभा सीट से लगातार 4 बार सांसद रहे। यद्यपि सीधा और सरल होना राजनीति में कमजोरी समझी जाती रही, लेकिन स्वर्गीय बची सिंह रावत जी इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रहे। अटल बिहारी बाजपेयी के प्रधानमंत्री रहते हुए केंद्रीय रक्षा राज्य मंत्री व बाद में केंद्रीय विज्ञान एवं प्रोद्योगिकी राज्य मंत्री बने।

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2009 में नैनीताल-ऊधम सिंह नगर से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन हार गए थे। वह पार्टी में प्रदेश अध्यक्ष समेत कई अहम पदों पर रहे, लेकिन उन्होंने राजनीति में अपनी अलग छवि बनाए रखी। वह ऊंचे पद पर रहते हुए भी बेहद सादगी भरा जीवन जीते रहे और विनम्रता उनका मूल स्वभाव बना रहा।2021 में उनका निधन हो गया था, लेकिन पार्टी को अब तक प्रदेश में बचदा की छवि वाला नेता नहीं मिला है। इस छवि को लोगों के जेहन में बनाए रखा जा सके। यही कारण है कि पार्टी ने उनके पुत्र को संगठन में अहम जिम्मेदारी दे दी है। सरलता एवं सादगी की प्रतिमूर्ति, पूर्व केंद्रीय राज्यमंत्री एवं पूर्व प्रदेश अध्यक्ष स्वर्गीय बची सिंह रावत स्व. बची सिंह रावत  की पुण्यतिथि पर शत्- शत् नमन।

(लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं। लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

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