बड़ी खबर: लैंसडौन विधायक दिलीप रावत ने सीएम को लिखी चिट्ठी, बोले- वनाग्नि (Forest fire) लापरवाही में बड़े अधिकारियों के खिलाफ भी होनी चाहिए कार्यवाही
देहरादून/मुख्यधारा
गत दिवस वनाग्नि (Forest fire) मामले में लापरवाही बरतने पर सीएम पुष्कर धामी के निर्देश पर दस वन कर्मियों को सस्पेंड किए जाने की खबरें आज अखबारों व न्यूज पोर्टल्स में प्रमुखता से प्रकाशित की गई हैं। इस खबर को पढ़कर लैंसडौन से भाजपा विधायक महंत दिलीप रावत ने मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर उनका ध्यान आकृष्ट कराते हुए कहा है कि वनाधिकारी, प्रभागीय वनाधिकारी एवं क्षेत्रीय वनाधिकारी केवल चौकियों तक ही निरीक्षण कर अपनी इतिश्री समझ लेते हैं।
इसके अलावा जंगलों में नियुक्त दैनिक वेतन कर्मी एवं फायर वाचरों को नियमित वेतन नहीं मिलता है। जिस कारण व्यवस्था चरमरा जाती है। वन विभाग में ऊपरी स्तर पर कई बड़े अधिकारी नियुक्त हैं, परंतु वे अपने कक्षों में बैठकर ही वन विभाग की सेवा करते हैं। यह अच्छा होता कि उक्त अग्निकांड हेतु उच्च स्तर पर अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही होती तो अधिकारियों को अपने कर्तव्यों का बोध होता।
उन्होंने मुख्यमंत्री धामी से अनुरोध करते हुए कहा है कि निचले स्तर के कर्मचारियों के निलंबन से पूर्व उनकी परेशानियों को भी भली-भाँति समझ लिया जाए एवं वनाग्नि हेतु गंभीरता से विचार किया जाना न्यायोचित प्रतीत होता है।
महंत दिलीप रावत ने मुख्यमंत्री को संबोधित करते हुए कहा कि मैंने इन्हीं सारी समस्याओं के संबंध में आपसे एवं विधानसभा अध्यक्ष से एक विशेष सत्र आहूत की जाने की मांग की थी, ताकि उक्त सारी समस्याओं पर चिंतन एवं मनन किया जा सके।
लैंसडौन से भाजपा विधायक महंत दिलीप रावत ने सीएम को लिखे पत्र में कहा है कि मुझे समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि उत्तराखण्ड में फैली भीषण आग को नियंत्रित ना करने क संबंध में कुछ निचले कर्मचारियों को लापरवाही बरतने में निलंबित किया गया है, मेरी व्यक्तिगत राय है कि निचले कर्मचारियों का निलंबन करने से पहले यह ध्यान देना जरूरी है कि क्या अग्नि सुरक्षा हेतु निचले स्तर पर पूरे कर्मचारी नियुक्त हैं? क्या निचले स्तर पर अग्नि बुझाने हेतु पूरे संसाधन उपल्बध हैं?
धरातल पर मुझे यह भी अनुभव हुआ है कि फायर सीजन में रखे जाने वाले फायर वाचरों की संख्या पर्याप्त नहीं है। यदि होती भी है तो वह कागजों तक ही सीमित रहती है। निचले स्तरों पर फायर वाचरों हेतु उनकी सुरक्षा हेतु उचित संसाधन नहीं रहते हैं और न ही जंगलों में आग बुझाने के दौरान घटना स्थान पर उनके लिए भोजन आदि की उचित व्यवस्था रहती है।
लैंसडौन विधायक ने कहा है कि यह भी संज्ञान में लिया जाना चाहिए कि ब्रिटिशकाल में वनों के बीच में अग्नि नियंत्रण हेतु फायर लाइन बनाई गयी थी, जो कि आज समय में कहीं दिखायी नहीं देती है, जबकि वनों में आग लगने की स्थिति में यह फायर लाइन महत्वपूर्ण भूमिका निभाती थी। अत: उक्त फायर लाइन पर भी कार्य किया जाना चाहिए।
वर्तमान में कड़े वन अधिनियमों के कारण स्थानीय जनता वनों से दूर होती जा रही है और अनके मन में यह भाव पैदा हो गया है कि यह वन हमारे नहीं हैं और इन वनों के कारण हमें जन सुविधाओं से वंचित किया जा रहा है, जबकि ब्रिटिशकाल में जंगलों की सुरक्षा जन सहभागिता के आधार पर की जाती थी, परंतु उक्त व्यवस्थाओं से जनता का वनों के प्रति मोह भंग हो गया है। अत: इन बातों पर भी गंभीरता से विचार किया जाना चाहिए।
बहरहाल, प्रभागीय वनाधिकारियों को लैंसडौन विधायक के ये सुझाव भला क्यों आएंगे? इसके उलट ये बातें छोटे वन कर्मियों के दिल को छू रही है, क्योंकि विधायक ने उनके मन की बात जो सीएम को प्रेषित की हैं। अब देखना यह होगा कि भाजपा विधायक के इन सुझावों पर अमल हो पाता है या नहीं!