हिमालय की किस्मत में लिखा है भूकंप (Earthquake) का खतरा
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
हिमालय क्षेत्र भूकंप को लेकर संवेदनशील रहा है। हाल के दिनों में इस इलाके में कई छोटे-छोटे भूकंप आए हैं जो यह संकेत दे रहे हैं कि इस इलाके में जमीन के भीतर कई ऐसी चीजें हो रही हैं, जो भविष्य में किसी बड़े भूकंप का कारण बन सकती हैं। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के प्रमुख वैज्ञानिक ने बताया है कि भारतीय और यूरेशियन प्लेट्स के टकराने से हिमालय क्षेत्र अस्तित्व में आया। उनका कहना है कि यूरेशियन प्लेट के भारतीय प्लेट पर पड़ रहे दबाव से भारी ऊर्जा इस इलाके में पैदा होती है और वही ऊर्जा भूकंप के जरिए जमीन से निकलती है। बीते दिनों वाडिया इंस्टीट्यूट की रिसर्च में ही खुलासा हुआ था कि हिमालय क्षेत्र के सबसे बड़े ग्लेशियर में से एक गंगोत्री ग्लेशियर बीते 87 सालों में 1.7 किलोमीटर तक खिसक गया है। हिमालय क्षेत्र के अन्य ग्लेशियर में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। इसके अलावा जोशीमठ में हुआ भू धंसाव भी एक बड़े खतरे की तरफ इशारा कर रहा है।
बीते 150 सालों में हिमालय क्षेत्र में चार बड़े भूकंप आए हैं। इनमें साल 1897 में शिलॉन्ग का भूकंप, 1905 में कांगड़ा का भूकंप, 1934 में बिहार- नेपाल का भूकंप और 1950 में असम का भूकंप शामिल हैं। इनके अलावा साल 1991 में उत्तरकाशी में, 1999 में चमोली में और 2015 में नेपाल में भी बड़ा भूकंप आया था। हिमालय क्षेत्र में जल्द ही बड़ा भूकंप आ सकता है। उन्होंने कहा कि भूकंप की तीव्रता काफी हो सकती है जो क्षेत्र में भारी तबाही ला सकता है। हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि संरचनाओं को मजबूत करके जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है।
एएनआई की खबर के अनुसार, हैदराबाद स्थित एनजीआरआई का कहना है कि धरती की परत कई प्लेट्स से मिलकर बनी है और इन प्लेट्स में लगातार विचलन होता रहता है। भारतीय प्लेट्स हर साल पांच सेंटीमीटर तक खिसक गई हैं और इसकी वजह से हिमालय क्षेत्र में काफी तनाव बढ़ गया है। इसी के चलते हिमालय क्षेत्र में भारी भूकंप आता है उत्तराखंड में कई बुजुर्ग मिल जाएंगे, जो निर्माण परियोजनाओं का विरोध करते हुए कहेंगे कि ये पहाड़ कच्चे हैं, अभी बन रहे हैं। उनके कहने में बनने का मतलब हिमालय का यह ऊपर उठना ही है। इस ऊपर उठने का कारण समझने के लिए जानना होगा कि हिमालय बना कैसे? हिमालयन बेल्ट में हर दिन रिक्टर तीन तक के भूकंप भविष्य में आने वाले बड़े भूकंप का खतरा है। कि बड़े भूकंप जो की रिक्टर पैमाने पर छह से आठ तक की रेंज के होते हैं उनसे पहले अक्सर छोटे-छोटे भूकंप आते हैं। लगातार आते छोटे भूकंप के कारण थ्रस्ट प्लेट खिसकती है। इसकी वजह से जब उनमें ज्यादा जगह बन जाती है तो बड़ा भूकंप आने की आशंका बनतीहै।
जलवायु परिवर्तन की वजह से उच्च पर्वतीय क्षेत्रों में ढलान की अस्थिरता बढ़ रही है, जिसका अर्थ है कि चट्टानों के खिसकने व गिरने और भूस्खलन के लिहाज से, ये क्षेत्र दिनों-दिन बेहद संवेदनशील होता जा रहा है। किसी बेहद खराब परिस्थिति में, किसी बड़े विनाशकारी भूकंप के मामले में ये सभी तत्व एक साथ इकट्ठा हो सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो इस तरह की जटिल आपदाएं, राहत व बचाव से जुड़े प्रयासों को जटिल बनाने और सीमित करने के साथ-साथ बड़े पैमाने पर नुकसान भी पहुंचाएंगी। हिमालय में भूस्खलन के मुद्दे बेहद गंभीर प्रकृति के हैं। कश्मीर में ऐसा देखा जा चुका है कि भूकंप आया और उससे लैंडस्लाइड यानी भूस्खलन के हादसे हुए और लोगों को जान गंवानी पड़ी। उन्होंने यह भी कहा कि भूस्खलन, चट्टानों के गिरने और अन्य हादसों की वजह से आपदा के दौरान, राहत और बचाव कार्य के प्रयास प्रभावित हुए थे। विभिन्न राजमार्ग और पहाड़ी सड़कें क्षतिग्रस्त हो गईं थी जिसकी वजह से प्रभावित इलाके कई हफ्तों तक दुर्गम बने रहे।।ये लेखक के अपने विचार हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )