मुनस्यारी के पास ग्लेशियर आने से दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
मुनस्यारी मिलम मार्ग में मापांग के पास छिरकानी में ग्लेशियर खिसकने से मार्ग बंद हो गया है। चीन सीमा पर तैनात आईटीबीपी और क्षेत्र से लगे हुए 13 गांवों के ग्रामीण मार्ग बंद होने से परेशान हो गये हैं। चीन सीमा को जोड़ने वाले मार्ग में छिरकानी के पास अचानक ग्लेशियर टूटकर आ गया। ग्लेशियर टूटने से मार्ग बाधित हो गया है रिलकोट, समतू, जोहार वैली, टोला, गनघर, रालम सहित 13 गांवों के लोगों के सामने मार्ग बंद होने से परेशानी खड़ी हो गई है। इन दिनों इन गांवों से माइग्रेशन होता है, जिसमें बड़ी संख्या में भेड़ पालक यहां पर रहते हैं। उनको मार्ग बंद होने से परेशानी हो रही है। ग्लेशियर आने के कारण पूरा मार्ग बंद पड़ा हुआ है. पैदल भी जाने के लिए मार्ग नहीं है। तीन दिन पूर्व मतदान के लिए गांवों में आये लोगों को अब वापस जाने के लिए परेशान होना पड़ रहा है। लोगों ने जिला प्रशासन से शीघ्र मार्ग को खोलने की मांग की है। वही बीआरओ के द्वारा बर्फ हटाने का कार्य शुरू कर दिया गया है। लेकिन बड़ी मात्रा में बर्फ आने के कारण उसे हटाने के कार्य में परेशानी आ रही है। तहसील प्रशासन ने बीआरओ को शीघ्र मार्ग खोलने के निर्देश दिए हैं।
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पिछले वर्ष भी मई माह में गर्मी अधिक बढ़ने के कारण मिलम मार्ग में कई स्थानों पर ग्लेशियर खिसकने से मार्ग बंद हुए थे।पूर्व में मई और जून
माह में ग्लेशियर खिसकने की घटनाएं अधिक होती रही हैं। लेकिन इस बार अप्रैल में ही ग्लेशियर खिसक गया। लगातार गर्मी बढ़ने के साथ उच्च हिमालयी क्षेत्रों बर्फ पिघलने और ग्लेशियर खिसकने की घटना पहले ही होने लगी हैं।आईटीबीपी ने पर्यटकों, पर्वतारोहियों और ट्रैकर्स को इनर-लाइन परमिट के बिना मिलम ग्लेशियर तक जाने की अनुमति देने का फैसला किया है, जो दशकों से एक अनिवार्य आवश्यकता थी।लगभग 18,000 फीट की ऊंचाई पर स्थित, मिलम ग्लेशियर इस उत्तराखंड जिले के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है और वहां जाने के लिए इनर-लाइन परमिट ले जाने की आवश्यकता पर्यटन की संभावनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही थी।
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मुनस्यारी के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट (एसडीएम) ने कहा, “आईटीबीपी ने अपने कर्मचारियों को आदेश दिया है कि वे हर पर्यटक को इनर-लाइन पास के बिना मिलम ग्लेशियर तक जाने दें।” जिसमें हमें प्रतिबंध हटाने के फैसले के बारे में बताया गया क्योंकि इससे पर्यटन प्रभावित हो रहा था।”मिलम ग्लेशियर जाने वाले पर्यटकों और साहसिक खेल प्रेमियों को इनर-लाइन परमिट ले जाने की आवश्यकता से छूट देने का आईटीबीपी का निर्णय पिछले महीने पिथौरागढ़ जिला प्रशासन द्वारा किए गए अनुरोध के जवाब में आया है।एसडीएम ने कहा, “हमने 15 सितंबर को आईटीबीपी को पत्र लिखकर गृह मंत्रालय (एमएचए) द्वारा अक्टूबर 1993 में जारी एक पत्र के अनुपालन में प्रतिबंध हटाने का अनुरोध किया था।” हालाँकि, ITBP ने सुरक्षा चिंताओं के कारण लोगों को मुनस्यारी से 12 किमी की दूरी पर स्थित लीलम नामक स्थान से आगे इनर-लाइन पास के बिना नहीं जाने देने की परंपरा का पालन किया, क्योंकि यह मार्ग भूस्खलन और सड़क अवरोधों के प्रति संवेदनशील है।
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मिलम ग्लेशियर मुनस्यारी से 61 किमी की दूरी पर स्थित है। हालाँकि, प्रशासन, पर्यटकों और व्यापारियों के बढ़ते दबाव और एमएचए पत्र के आलोक में, आईटीबीपी ने मानदंडों में ढील देने का फैसला किया है।मुनस्यारी के एक होटल व्यवसायी ने कहा,”उच्च हिमालयी क्षेत्र की
खोज के इच्छुक ट्रेकर्स और शोधकर्ताओं के लिए इनर-लाइन परमिट की आवश्यकता बेहद निराशाजनक थी।” प्रत्येक वर्ष गर्मी पड़ने के बाद ग्लेशियर आता है जिस कारण लोगों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। कुछ समय पूर्व उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भारी बर्फबारी हुई थी, गर्मी पड़ने के कारण ये ग्लेशिर धीरे-धीरे खिसक रहे हैं सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण मुनस्यारी-मिलम मार्ग बंद हो गया है। हिमालय की स्थिति को देखें तो पूरे हिमालयी क्षेत्र में 30,000 से ज्यादा ग्लेशियर हैं।
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भारतीय महाद्वीप के अंतर्गत हिमालय में करीब 10,000 ग्लेशियर मौजूद हैं। इनमें अधिकतर ग्लेशियर पिघल रहे हैं और पहले ही उनकी सेहत बहुत अच्छी नहीं है। ऐसे में सर्दियों के मौसम में लगातार बारिश और बर्फबारी के आंकड़ों में होती गिरावट ग्लेशियर की सेहत को और
भी नासाज कर रही है। वाडिया इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ वैज्ञानिक कहते हैं कि वैसे तो ग्लेशियर का पिघलना और इनका बढ़ना नेचुरल प्रोसेस है, लेकिन इस समय जिस तरह बारिश और बर्फबारी कम हो रही है, उसके कारण ग्लेशियर पर रिजर्व वायर भी कम हो रहा है। जिसके चलते ग्लेशियर को लेकर चिंता बढ़ रही है।यदि ऐसा लगातार होता है तो उससे भविष्य में भी दिक्कत आएगी। हालांकि वह यह भी कहते हैं कि पुराने रिकॉर्ड्स यह बताते हैं कि समय-समय पर ग्लेशियर कम भी हुए हैं और सामान्य प्रक्रिया के तहत उन्होंने अपना आकार बढ़ाया भी है।
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उत्तराखंड की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के कारण प्रदेश में कई बार आपदा जैसे हालात बन जाते हैं। यही वजह है कि उत्तराखंड सरकार तमाम ऐतिहात भी बरत रही है। ताकि भविष्य की चुनौतियों को पार पाया जा सके।लेकिन दूसरी तरफ वर्तमान समय में जलवायु परिवर्तन एक गंभीर समस्या बन रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण उच्च हिमालय क्षेत्रों में समय से बर्फबारी और बारिश न होने से तापमान बढ़ रहा है।
इससे ग्लेशियर भी लगातार पिघल रहे हैं और ग्लेशियर झील की संख्या और उनका आकार भी बढ़ रहा है। लिहाजा ये भविष्य के लिए काफी खतरनाक साबित हो सकते हैं।
( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )