हरेला का पर्व मनाने के पीछे छिपी संभावित सोच
दीप चन्द्र पंत
उत्तराखंड में कर्क संक्रांति के अतिरिक्त चैत्र और आश्विन मास की नवरात्रि में हरेला पर्व मनाया जाता है। एक कृषि प्रधान समाज में बुवाई से पहले बोई जाने वाली फसल की पूजा, आराध्य देव जनों को प्रसन्न करने हेतु नए बोने वाले बीजों से उगे हरेला भगवान पर चढ़ाकर अच्छी फसल के लिए आशीर्वाद प्राप्त करने के अतिरिक्त बोए जाने वाले बीज की अंकुरण क्षमता देखने की उत्सुकता भी हो सकती है।
श्रावण माह में चारों ओर बरसात और हरियाली से प्रभावित होकर भी हरियाली का स्वागत और इसे बनाए रखने हेतु भी अराध्य देवों को खुश करना भी इस पर्व को मनाने का कारण लगता है। भूमि के पर्याप्त गीला हो जाने पर पौधारोपण कर जल संरक्षित करने का प्रयास भी हरेला पर्व मानकर किया जाता है। बागवानी के भी कई पौधों का रोपण भी हरेले के दिन ही किया जाता है।
वन विभाग और वन पंचायतें भी वृक्षारोपण अभियान से हरेला पर्व मनाते हैं। हरेला पर्व पर वृक्षारोपण जुलाई प्रथम सप्ताह में मनाए जाने वाले वन महोत्सव से अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है तथा राज्य सरकार भी हरेला पर्व पर वृक्षारोपण अभियान को लोकप्रिय बनाने में सफल रही है। प्रकृति से भावनात्मक लगाव बनाने के इस प्रयास की जितनी सराहना की जाए कम होगी।
(लेखक भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी हैं।)