उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली मनाएगा स्व. जीत सिंह नेगी की जयंती
डॉ. हरीश चंद्र अंडोला
जीत सिंह नेगी उत्तराखण्ड के अकेले ऐसे लोक गायक, गीतकार थे जिन्होंने अपने गायन करियर की शुरुआत 1940 के दशक के अंत में की थी। नेगी पहले गढ़वाली गायक हैं, जिनके छह गढ़वाली लोक गीतों का संकलन 1949 में बॉम्बे की यंग इंडिया ग्रामोफोन कंपनी द्वारा ग्रामोफोन पर रिकॉर्ड किया गया था। वह 1940 के दशक में गढ़वाली भाषा और भावनाओं को आवाज देने वाले पहले व्यक्त मंच द्वारा उत्तराखण्ड सरकार को भी 16 दिसम्बर, 2024 को एक पत्र भेजा गया था, जिसमें सरकार से अनुरोध किया गया था कि उत्तराखण्ड गीत, संगीत के युगपुरुष स्वर्गीय जीत सिंह नेगी की सौवीं जयंती समारोह को प्रदेश सरकार को भव्य रूप से आयोजित करना चाहिए, लेकिन न तो सरकार से कोई जवाब आया और न ही प्रदेश सरकार की कोई मंशा दिख रही है।
वहीं दिल्ली समेत देहरादून के संस्कृति व सामाजिक संगठनों की तरफ से भी स्वर्गीय जीत सिंह नेगी की जयंती मनाने हेतु कोई उत्साह नहीं दिख रहा है। इसलिए उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली ने इस आयोजन को करने का निर्णय लिया। ज्ञातव्य हो कि उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली लगातार गढ़वाली-कुमाउनी भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु लगाकर प्रयास कर रहा है। नई पीढ़ी को गढ़वाली-कुमाउनी सिखाने हेतु मंच हर वर्ष ग्रीष्मकालीन कक्षाओं का आयोजन दिल्ली एनसीआर में करता है।
स्वर्गीय जीत सिंह नेगी का जन्म 2 फरवरी 1925 को उत्तराखंड के पौड़ी जिले में पैडलस्यूं के अयाल गांव में सुल्तान सिंह नेगी और रूपदेवी नेगी के घर हुआ था। उन्होंने अपनी शिक्षा पौड़ी गढ़वाल (भारत), मेम्यो (वर्तमान, म्यांमार) और लाहौर (पाकिस्तान) जैसे विभिन्न स्थानों पर प्राप्त की। स्वर्गीय जीत सिंह नेगी का निधन 21 जून, 2020 को देहरादून में हुआ।
उत्तराखण्ड लोक-भाषा साहित्य मंच, दिल्ली के संरक्षक ने बताया कि स्वर्गीय जीत सिंह नेगी ने कई नाटक हिन्दी एवं गढ़वाली भाषा में लिखे जिनका मंचन देश के विभिन्न नगरों, महानगरों में होता रहा। जिनमें मलेथा की कूल, रामी बौराणी, भारी भूल, जीतू बगड्वाल, राजू पोस्टमैन मुख्य थे। स्वर्गीय नेगी का पहला गढ़वाली गीत 1954 में आकाशवाणी से प्रसारित हुआ था। उनके नाटक और गीत 600 से अधिक बार प्रसारित हुए थे और यह किसी भी क्षेत्रीय भाषा के कलाकार के लिए बड़ी उपलब्धि है। जीतू बगड्वाल और मलेथा की कू रेडियो-गीत-नाटिका को भी आकाशवाणी से 50 से अधिक बार रिले किया गया। मलेथा की कूल, ऐतिहासिक नाटक है और गढ़वाली साम्राज्य के सेनाध्यक्ष, तिब्बत के विजेता योद्धा और बहादुर भड़ गजेंद्र सिंह भंडारी के पिता माधो सिंह द्वारा निर्मित मलेथा नहर पर आधारित है। नाटक का मंचन देहरादून, मुंबई, दिल्ली, चंडीगढ़, मसूरी, तिहरी और कई स्थानों पर 18 (अठारह) बार हो चुका है। इस नाटक का लेखन एवं निर्देशन जीत सिंह नेगी ने किया। रामी का हिंदी संस्करण दिल्ली दूरदर्शन द्वारा रिले किया गया था।
स्वर्गीय जीत सिंह नेगी जी का एक गीत जिसे आज भी लोगों को गुनगुनाते हुए देखा जाता हैं “तू होली ऊंची डांड्यूं मा बीरा”। यह जीत सिंह नेगी जी का सर्वाधिक लोकप्रिय गीत भी है।
तू होली ऊंची डांड्यूं मा बीरा
घसियारी का भेस मा
खुद मा तेरी सड़क्यूं पर मी
रूणु छौं परदेस मा
(तू होगी ऊंचे शिखरों पर बीरा घसियारी के भेस में याद में तेरी सड़कों पर रोता हूँ, मैं परदेस में)
एक और गीत देखिये
घास काटी की प्यारी छैला ए
रुमुक ह्वेगे घार ऐ जा दी
एक पहाड़ी स्त्री है, जो घास लेने जंगल में, किसी पहाडी ढलान पर गयी हुई है। घर में पति है, जो उसे पुकार रहा है कि साँझ ढल गयी, दूध पीने वाला बच्चा है, घर आ जा। उसकी चिंता है घास के लिए पता नहीं किस ढलान पर चली गयी है, बाकी सब तो घर लौट आए हैं तू ही नहीं आई।
इस प्रकार स्वर्गीय जीत सिंह नेगी ने गढ़वाली गीत, संगीत और साहित्य को अद्वितीय नगमें दिए हैं। आज जरुरत इस बात की है कि इस लोक गायक, गीतकार को नई पीढ़ी जाने, पहचाने, समझे और आज के फूहड़ गीतों को लिखने और गाने वालों को पता चले की आज़ादी से पहले स्वर्गीय जीत सिंह नेगी ने कैसे गीत और नाटक लिखे। लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं।
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