सत्यपाल नेगी/रुद्रप्रयाग
रैवासी
गढ़वाली कविता
पहाड़ों कू रै वासी छौं मी
गढ़वाळ कू निवासी छौं मी
संस्कार कू पूरू छौं अर
धर्म कू कर्म कांडी छौं मी
प्रेम रखदू मातृ भूमि से
गढ़ भाषा अर वांणी छौं मी
लाटू कालू जनि भी वलु
देव भूमि कू प्राणी छौं मी
घर गृहस्थी जथी भी करलू
पर मन कू द्यो ध्यानी छौं मी
पूजा भक्ति दिल मा रखदू
कुल द्यबतों कू धामी छौं मी
बार तिवार मनौदू खुशी से
रीत रिवाज कि निसांणी छौं मी
आदर करदू सिर झुकै की
सब का मन की गांणी छौं मी।।
सर्वाधिकार सुरक्षित
रचना
(राजपाल सिंह पंवार)
रुद्रप्रयाग