नरेन्द्र सिंह नेगी : जीवन की हीरक और रचना की स्वर्ण जयन्ती
डॉ. नंद किशोर हटवाल
गत 12 अगस्त को उत्तराखण्ड के अप्रतिम गीतकार, संगीतकार एवं गायक नरेन्द्र सिंह नेगी जीवन के 75 वें वर्ष और रचनाकर्म के 50 वें वर्ष में प्रवेश कर गए हैं।
आपने पहला गीत 50 साल पहले लिखा, 1974 में। ऐसा ही ‘बसग्याळ’ लगा था। तब आपकी उम्र 25 साल थी। आपके पिताजी की आंखों का मोतियाबिंद का आप्रेशन होना था। उन दिनो आपके मित्र, सुप्रसिद्ध लेखक, नाटककार वीरेन्द्र कश्यप की चुहड़पुर, देहरादून में आर्मस की दुकान थी। आपने उनको पत्र लिखा कि देहरादून या उसके आसपास कोई आंखों का अस्पताल हो जहाँ पिताजी की आंखों का आप्रेशन हो सके तो बताना। वीरेन्द्र कश्यप ने पता किया और बताया कि वहाँ चूहड़पुर में डॉ. लेमन का हास्पिटल है। आप पिता को लेकर देहरादून पहुँचे और चूहड़पुर में डॉ. लेमन के हास्पिटल में भर्ती करा दिया। पिता को वार्ड में लिटाने के बाद आपके सामने समस्या थी कि अब कहां जाएं। वहां के चौकीदार ने नेगी जी को बताया कि वहां पास में खाट मिलती है। आप खाट ले लो, बराण्डे में लगा लो और सुबह फिर वहीं रख देना। पांच रू. उसका किराया था। नरेन्द्र सिंह नेगी ने खाट ले ली। जैसे ही अस्पताल बंद होता, वे खाट बराण्डे में लगा लेते और सुबह फिर वहीं रख देते। वर्षा का मौसम था। दून की वादियों में घनासार बारिश हो रही थी। एक साम नेगी जी को खाट पर पड़े-पड़े घर की खुद लगने लगी।…माँ, बहिने, अभाव, मुश्किले…। मन भर गया नरेन्द्र सिंह नेगी जी का। वहीं चूहड़पुर, देहरादून में उनके अंदर से गढ़वाली के गीत की प्रथम पंक्ति अंकुरित होने लगी। ……सैरा बसग्याल बौंण मा………..।
और वहीं, डॉ. लेमन हास्पिटल की खाट पर वो गीत पूरा हुआ जिसे नरेन्द्र सिंह नेगी की पहली रचना होने का श्रेय प्राप्त है। यह गीत ‘सदानि यनि दिन रैनी’ शीर्षक से खुचकण्डि में संग्रहीत है तथा इस गीत को नेगी जी ने ‘गढ़वाली गीत माला भाग-2 (1983) में ‘सैरा बसग्याल’ नाम से सम्मिलित किया। यह कैसेट बाद में ‘बुरांश’ नाम से भी रिलीज हुई थी। गीत इस प्रकार है-
सैरा बसग्याळ बूणमा
रुड़ि कुटुणमा
ह्यूँद पीसी बितैनी, म्यारा सदानी यनि दिन रैनी।
कूटीकी पीसीकी मिन
रात दिन एक काया
सौत्येली ब्वे छाई
मैतमा भी खैरी खाया
सैसुरमा जूदा कुदिन ह्वेनी, म्यारा…।
मेळा ह्वेनी खौळा ह्वेनी
सौंजड्या कौथिग गैनी
बारामास बौलू कैकी
म्येमा द्वी झुली नि रैनी
स्वामी जी भी मीथैं बिसिरी गैनी, म्यारा…।
बेट्यूँ का खुदेड़ मैना
चैत पूस ऐना गैना
मैत्यूँका सासा छाई
तौंल रैबार नि द्याई
दगड्या भग्यान मेरी मैतु गैनी, म्यारा…।
पहली रचना इसी ‘बसग्याल’ के महीने उपजी थी और नवीनतम रचना का भी इसी ‘बसग्याल’, गत 9 अगस्त को सी.आई.एम.एस. कॉलेज कुआंवाला, देहरादून में लोकार्पण हुआ-‘रजिनामा कैजा’। वर्ष 1974 से 2024 तक फैला आपका रचना संसार और ‘सैरा बसग्याल बौंणु मा’ से ‘रजिनमा कैजा’ गीत तक विस्तारित रचनाएं। बहुत बड़ा कालखण्ड, इसमें आपके सुणदारों की चार पीढ़ियां आ गई। रेडियो से प्रारम्भ की गई गीतयात्रा, कैसेट-टेपरिकार्डर, सीडी, मंचों, गोष्ठियों, सेमिनारो, यूट्यूब, फेसबुक से होते हुए इंस्टाग्राम तक पहुंच गई है। इन वर्षों में किताबों, पत्र-पत्रिकाओं से लेकर डिजिटल माध्यमों तक पहुंच गए हैं आपके गीत।
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आपने पहला गीत रेडियो से सन् 1976 में गाया। रवीन्द्रालय लखनऊ में झंकार क्लब का प्रोग्राम था और आप उनके साथ तबलावादक के रूप में लखनऊ गए थे। वहां ग्रीन रूप में बैठे हारमोनियम पर ‘धागुला जंवर छणमणादी’ गाना गा रहे थे। उसी समय वहां केशव अनुरागी जी आए और आपको सुनने लगे। आपका जब गाना पूरा हुआ तो केशव अनुरागी ने आपसे रेडियो में गाने को कहा और दूसरे ही दिन आपको आडिशन के लिए बुला लिया। उसके बाद आपने पहला गीत ‘धागुला जंवर छणमणादी’ रेडियो से गाया। बाद में आकाशवाणी दिल्ली, अल्मोड़ा और नजीबाबाद से भी आपने कई गीत गाए। रेडियो से आपके गीतों को काफी लोकप्रियता मिली। यही लोकप्रियता आपको नए-नए गीत लिखने को प्रोत्साहित करती रही। बाद में आपके गीतों के प्रति लोगों की रूचि और उत्सुकता आपके लिए कैसेट्स निकालने का आधार बनी।
आपका पहला कैसेट ‘गढ़वाली गीत माला : भाग-1’ 1982 में निकला। कैसेटों का वो दौर आपके गीतों का स्वर्णकाल था। उसके बाद आपकी एक के बाद एक कैसेट्स निकलती रही। लगातार, अनवरत-गढ़वाली गीत माला : भाग-2 (1983), गढ़वाली गीत माला : भाग-3 (1984), गढ़वाली गीत माला : भाग-4 (1984), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-5, 100 कु नोट,(1985), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-6, नयु नयु ब्यो, (1986), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-7, हौंसिया उमर, (1988), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-8, ज्वनि की उमंग (1988), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-9, छुयांळ (1989), नरेन्द्र सिंह नेगी : भाग-10, बारामासा, (1990), बरखा (1991), छिबड़ाट (1992), खुद (1993), ज्ञान गंगा जनपद, चमोली के साक्षरता के गीत (1993), हल्दी हाथ, भाग-1 और भाग-2 (1994), उठा जागा उत्तराखण्डयूं (1995), तिलै धारू बोला (1996), सन्ध्या-भजन (1996), दगड़्या (1997), रूमुक (1997), टपकरा (1998), कारगिलै लड़ै मा छौं (1999), कण्डोल्या देवता, (1999) श्री नन्दादेबी राजजात-1 और भाग-2 (2000), तुमारी माया मां (2001), चाँचड़ी झमाको (2002), स्याणी (2002), समद्यौळा का द्वी दिन (2003), आँखी सुपन्याळी ह्वैगेनी (2003), वा जुन्याळी रात ऐगे फिर याद (2004), ऐजदी भाग्यानी (2004), नौछमी नारैण (2005), सुर्मा सरेला (2006), नवदुर्गा नारैणी (2007), तू होलि बीरा, जीत सिंह नेगी के गीतों का पुनर्गायन, (2007), दैन्त संघार (पारंम्परिक मण्डाण), माया कु मुण्डारो (2008), सलाण्या स्याळी (2009), अब कथगा खैल्यो (2011), जै भोले भण्डारी (2012), नन्दा ध्याणै बिदै (2015), सीडी के रूप में नन्दा ध्याणै बिदै अंतिम एल्बम था। कुल मिलाकर नेगी ने कैसेट और सीडी के रूप में लगभग 45 अल्बम निकाली।
इस बीच मई 2008 में भारत में भी यू-ट्यूब प्रवेश कर गया था। धीरे-धीरे यू-ट्यूब पर गीतों का चलन शुरू होने लगा। लोगों ने गीतों को कैसेट और सीडी के माध्यम से सुनना लगभग बंद कर दिया। आपके गीतों का सिलसिला भी कुछ समय के लिए थम गया। 2015 से 2019 तक रचनाएं तो होती रहीं पर आपका कोई गीत किसी माध्यम में जारी नहीं हुआ। 2019 में यू-ट्यूब पर आपका पहला गीत जारी हुआ-जख मेरि माया रोंदि, (2019) और फिर सिलसिला यहां भी शुरू हो गया। क्वी त बात होलि (2020), ऐसु होरि मा (2021), यखी बासा रै जोला (2021), कनक्वे निभेलु 2021), कम्येरा म्वारा (2022), होरि का खिलाड़ि (2022), कब ऐलि (2022), लोकतंत्र मा (2022), क्या जि बोलुं (2022), स्यालि रामदेई (2022), बांद बिजोरा (2022), बेड़ु पाको (2022), त्वी छैयी (2023), चंद्र सिंह गढ़वाली (2023), पार्वती को मैतुड़ा देश 2023), भाभर नि जौला (2024), रजिनामा कैजा (2024)।
इसके अलावा आपने कई गढ़वाली फिल्मों के लिए गीत लिखे, गाये और संगीत दिया। वे फिल्में हैं- घरजवैं (1986), कौथीग (1987), बेटी ब्वारी (1989), बंटवारू (1990), फ्यौंली ज्वान ह्वैगे (1992), छम्म घुंघरू (1994), चक्रचाल (1996), जै धारी देबी (1997), मेरी गंगा होली मैमुं आली (2001), औंसि की रात (2004), सुबेरो घाम (2015), बथों (2023), मेजर निराला (2018), ढोली (2024)।
इन 50 वर्षों में आपके गीत संग्रह भी छपे हैं-खुचकुण्डि, धाद प्रकाशन देहरादून 1991, खुचकुण्डि (दूसरा संस्करण) विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2009, गाण्यों कि गंगा, स्याण्यु का समोदर, (पहला संस्करण) विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 1999, दूसरा-2012, तीसरा-2017, मुट्ट बोटि कि रख, पहाड़ प्रकाशन नैनीताल, 2017, तुम दगड़ी गीत राला, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2023, तेरि खुद तेरो ख्याल (फिल्मी गीतों का संग्रह) हिमालय फिल्मस द्वारा 2010 तथा विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून द्वारा 2023 में छापा। 2023 में आपका एक कविता संग्रह, अब जबकि भी आया है। इसमें 37 कविताएं संग्रहीत हैं।
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इस अवधि में आप पर एकाग्र कुछ पुस्तकों का सम्पादन और लेखन भी किया गया, जिनमें प्रमुख हैं- अक्षत, सं. गणेश खुगशाल गणि, कीर्ति नवानी, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून, 2000, नरेन्द्र सिंह नेगी, गीत यात्रा, सं. डॉ. गोविन्द सिंह, उर्मिलेश भट्ट, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2013, गाथा एक गीत की, मनु पंवार, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2014, नरेन्द्र सिंह नेगी के गीतों में जन सरोकार, गढ़वाल विवि द्वारा, सं. प्रो. सम्पूर्ण सिंह रावत, डॉ. नंद किशोर हटवाल और गणेश खुगशाल गणि, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2017, । A Stream of Himalayan Melody Selected songs of Narendra Singh Negi, डॉ. दीपक बिजल्वांण, समय साक्ष्य प्रकाशन 2021, नरेन्द्र गीतिका, दीन दयाल सुन्दरियाल, (नेगी जी के 60 गीतों का हिंदी अनुवाद) 2021, Publisher : Himalaya Lok Sahitya & Sanskriti Vikas Trust, Distributer: Rawat Digital, कल फिर जब सुबह होगी, ललित मोहन रयाल, विनसर पब्लिशिंग कं. देहरादून 2024।
इन 50 सालों में आपके रचनाकर्म में कई तरह के फैलाव और विस्तार भी देखने को मिले। नीति-माणा, व्यांस दारमा की घाटी से लेकर देहरादून, दिल्ली, बंगलौर, बम्बई, अमेरिका, इंग्लैंण, आस्ट्रेलिया, न्यूजिलैण्ड सहित पूरी दुनिया में फैले हैं आपके सुणदारे। कोई एक खास श्रोता वर्ग, आयवर्ग, आयुवर्ग, लिंग, जाति और क्षेत्र का वर्ग नहीं। उत्तराखण्ड हिमालय में निवास करने वाला हर वर्ग आपका श्रोता है। यहां के उच्च शिक्षित, बुद्धिजीवियों से लेकर श्रमजीवियों तक, बड़े पदों पर बैठे सीनियर नौकरशाह से लेकर गांव के किसान, मजदूर, पशुपालक, घसेरी, हमारी मां-बहने, बच्चे से लेकर बूढ़े तक सबके दिलों तक आपके गीतों की पहुंच है। इन 50 सालों में चार पीढ़ियों तक फैल गया है आपके गीतों का साम्राज्य। हमारे मां-पिताजी, हम, हमारे बच्चे और हमारे नाती-पोते भी आपके गीत सुनने लगे हैं।
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आपके गीतों के वर्ण्य विषय और भावों का विस्तार भी चमत्कृत करता है। इसमें भी बहुत विविधता और फैलाव देखने को मिलता है। उत्तराखण्ड हिमालय के लोकजीवन के जितने पक्षों को अपने अपने गीतों का वर्ण्य विषय बनाया है उतना शायद ही किसी दूसरे रचनाकार ने बनाया होगा। आपके गीतों में छायावाद से लेकर आधुनिक, उत्तर आधुनिक और नई कविताओं के तत्व और कथ्य मिल जाते हैं। इन 50 सालों में खैरि से लेकर खुशी के गीत, प्रेमगीतों से लेकर जनगीत, लोक मान्यताओं, लोककथाओं, आधुनिक समाज की चिंताओं, पाखण्डों-ढकोसलों, अंधविश्वासों, कुरीतियों पर चोट करने तक का विस्तार आपकी रचनाओं में देखा गया। प्रकृति, पर्यावरण, विकास, विनास, सौन्दर्य, विद्रूप, दुख, दर्द, विरह, वेदना, व्यथा, प्रेम, ममता, होली, दिवाली, नवरात्रे, राजजात, बसन्त, बसग्याल, ह्यूंद, राजनैतिक, सामाजिक चेतना, भ्रष्टाचार, स्त्री विमर्श, गंगा, हिमालय, पालायन, प्रवर्जन, सभी विषयों को आपने गीतों का वर्ण्य विषय बनाया और इन्हें सुरों में पिरोया। आपकी कल्पनाशीलता, विषय चयन, स्थानीयता, राजनैतिक सामाजिक सरोकारों ने गढ़वाली लोक संगीत और गीत लेखन को एक नई उंचाइयां देते हुए इसके जनपक्षीय और क्रांतिकारी स्वरूप मजबूती प्रदान की। ‘देर होली अबेर होली’, ‘मुट्ट बोटि की रख’, ‘उठा जागा उत्तराखण्ड्यों’, ‘डाळ्यूँ ना काटा’, ‘हिट भुला हत्तखुट्टा हला’, ‘भोळ जब फिर रात खुलाली’ जैसे चेतना और आशा के गीत भी लिखे। कितने आयामों की रचना दी आपने इन वर्षों में।
कैसे-कैसे किरदार गढ़े हैं आपने अपने गीतों में। ऐसा लगता है कि वे हम ही हैं या हमारे आसपास के हैं। आपके गीत सुणदारे ‘धागुला जेवर छणमणाते हुए रूमा-झूमा कौतीख’ जाती उस बान को कैसे भूल सकते हैं! ज्वान्नि के दिनों की वो नायिका तो सभी को याद होगी जो ‘रात सुणदारों के सुपिन्यों में आती थी और बाळी नींद बिजा देती थी।’ आपके प्रेमगीतों के वे नायक-नायिका जो ’वीणों मा शर्म, अर स्वीणों मा भेंटा भेंटी’ करते, वो नायक जो ’भंडि दिनू बिटीन सुरमा, सुपन्यों मा नि ऐई’ की और नायिका ‘मेरि बिनसिरि कि धाण छुट्द मोहना, राति स्वीणोंमा नि आण।’ की शिकायत करते।
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आपके गीत सुणदरों को वो नायिका याद है जिसके ‘रूप की झौल’ में उनका ‘नौंणि सु ज्यू’ गळ जाता था। प्रेम के अनगिनत रूप हैं आपकी रचनाओं में। इन प्रेम के विविध रंगों में रंगे नायक-नायिकाएं हमारे आसपास आज भी घूमते-मंडराते नजर आते हैं।
आपने सिर्फ प्रेम गीतों की नायिकाओं को ही नहीं पहाड़ के कठोर जीवन से संघर्ष करती यादगार जीवट स्त्रियों के किरदारों को भी गढ़ा है। ‘उठा जागा उत्तराखण्डयूं’ की आन्दोलनकारी स्त्रियां, ‘भ्येलु पखाणु’ जाने वाली ‘जिदेरी घसेरी’, ‘बाजार्या भिना’ की मजाक उड़ाती साली। ‘कभी सीला पाखु’ ‘कभी तैला घाम’ तथा, ‘सैरा बस्ग्याल बौंणु मा’ भटकने वाली, ‘क्वो ढूंगो नि पूजी और क्वो खैरि नि खायी’ वाली, ‘बाळा स्ये जा दू’ का अनुनय विनय करती मां, दिल्ली वाले द्यूर से संवाद करती बौ जैसे पचासों चरित्रों को हम कैसे भूल सकते हैं। ‘म्वोरि-म्वोरि कि मांड प्येल्या’ और ‘धुंवाण्या हुक्का अर खंखारो कु डब्बा’ छुपाने वाले वो बूढ़े कैसे भुलाये जा सकते हैं जो आज और अधिक दिखने लगे हैं तथा परदेश में गमलों की तरह आरोपित और उपेक्षित हैं। ‘चली भै मोटर चली के डलैबर भैजी’, ‘ढेबरा-बाखरा हर्चि गैनि’ वाला पालसी दिदा। ‘नयु-नयु ब्यो’ के बाद ‘ब्योलि’ को ‘उकाळ का बाटा’ ले जाने को मजबूर ‘ब्योला’ अभी भी दिख ही जाते हैं। ‘दारू नि प्योनु मी हे राम राम रम्म, रम्म रम्म, वाले समाज सुधारक और नेता भायी साब! अर ‘हाथन हुसकि पिलायी’ वाले वोटर भैजी!! व्यवस्था को आयना दिखाते आपके गीतों के यादगार किरदार हैं।
इन 50 वर्षों में हजार से अधिक लोगों ने आप पर और आपके गीतों पर अखबारों, पत्र-पत्रिकाओं में लिखा, साक्षात्कार छापे। किताब, लेख, फीचर…और भी बहुत कुछ। हजारों लोग हैं जो आपके गीतों पर बहुत कुछ कहते, मौखिक विवेचना, मीमांसा और टिप्पणियां करते हैं। हजारों लोग हैं जो बहुत कुछ कहना चाहते हैं, लिखना चाहते हैं। यह चाहना भी बहुत बड़ा इंडीकेटर होता है किसी रचनाकार की रचनाओं के प्रभाव का। यू-ट्यूब पर सर्वाधिक पोडकास्ट, रील्स, बातचीत, साक्षात्कार आपके, सोशियल मीडिया पर सबसे अधिक गीतों के कवर, सर्वाधिक रिक्रियेट किये जाने वाले गीत आपके हैं।
अपनी इस लम्बी गीतयात्रा में आपने अन्य गायकों को भी अपना सहयात्री बनाया, उन्हें अवसर दिया। आपका सानिंध्य पाकर उन्होंने मुकाम हासिल किए। 1984 में निकली एल्बम ‘टकों कि माया’ में पहली बार फीमेल सिंगर सुनीता बेलवाल को आपने अपने साथा गाने का मौका दिया। उसके बाद तो रेखा धस्माना उनियाल, मंगला रावत, अजन्ता, उमा, कल्पेश्वरी, सुषमा श्रेष्ठ, अनुराधा निराला, मीना राणा, शशि जोशी, ज्योति नैनवाल, गीतिका अस्वाल, मंजू सुंदरियाल, दीपा चौहान, अंजलि खरे और प्रतीक्षा बमराड़ा तक एक पूरी पीढ़ी और परम्परा जुड़ी है आपके साथ। 20 से अधिक कोरस गाने वाले लड़के-लड़कियों को आपने अवसर दिया। आपके साथ गाना किसी गायक के लिए स्तरीय होने का प्रमाण पत्र जैसा है। सैकड़ों नई प्रतिभाओं ने आपसे सीखा और प्रेरणा ग्रहण की। इस दृष्टि से आप उत्तराखण्डी लोकसंगीत की एक पूरी यूनिवर्सिटी हैं, संगीत की इंडस्ट्री हैं। इन वर्षों में आपने अपने कालजयी गीतों की बेजोड़ संगीत रचना (Musical composition ) कर गीतों को जो ताकत दी वो अभूतपूर्व है। आपने राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उत्तराखण्ड के लोकगीत-संगीत को प्यार, मान्यता, पहचान और प्रतिष्ठा दिलायी।
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शास्त्रीय गायन हो या लोकगायन, यह हर दौर में होता रहा और होता रहेगा। लेकिन अपने दौर को, अपनी रचनाओं और अपने सुरों में पिरोना, अपने समय की धारा में अपने गीतों से हलचल पैदा कर देना, अपने सुणदारों के अंदर सुगबुगाहट, बेचैनी, आंखों में नमी, जिकुड़े में माया-खुद, पेट में गुदगुदी और गले में कळकळी पैदा कर देना ही नरेन्द्र सिंह नेगी हो जाना है।
जीवन के 75 वें वर्ष (हीरक जयन्ती) और रचनाकर्म के 50 वें वर्ष (स्वर्ण जयन्ती) पर उत्तराखण्ड हिमालय के अप्रतिम गीतकार, संगीतकार एवं गायक नरेन्द्र सिंह नेगी को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।