किसानों को संजीवनी बूटी उगाना सीखा रहे हैं विशेषज्ञ
देहरादून/मुख्यधारा
ग्राफिक एरा डीम्ड यूनिवर्सिटी में आज किसानों को सीबकथोर्न उत्पादन तकनीकों की जानकारी दी गई। ग्राफिक एरा में सीबकथोर्न की खेती, प्रचार व मूल्यवर्धन पर आयोजित इस कार्यशाला में धारचूला के पन्द्रह किसानों ने भाग लिया। एक दिवसीय कार्यशाला को कुलपति डा. नरपिन्दर सिंह ने सम्बोधित करते हुए कहा कि सुपरफूड कहा जाने वाला सीबकथोर्न औषधीय गुणों से भरपूर है। कांटेदार झाड़ियों पर उगने की वजह से इसके उत्पादन की लागत बढ़ जाती है। उन्होंने इस समस्या से निदान के लिये देश में झाड़ियों की छटाई करने वाली मशीन विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया।
सीबकथोर्न एसोसिएशन आफ इण्डिया, हिमाचल प्रदेश के सचिव प्रो. विरेन्द्र सिंह ने कहा कि सीबकथोर्न में विटामिन डी के सिवाय सभी विटामिन पाये जाते हैं जैसे की विटामिन ए, बी, सी, के, बी12 आदि इसे बद्रीफल, छरमा, लेह बेरी, लिक्विड गोल्ड भी कहा जाता है। इसकी पत्तियों, फल, छाल व जड़ का उपयोग 300-400 तरहों के उत्पाद बनाने में किया जाता है। इससे बने खाद्य उत्पादों का सेवन करने से हृदय रोग, शुगर व एसिडिटी की समस्या से राहत मिलती है। उन्होंने कहा कि सीबकथोर्न का उल्लेख रामायण में संजीवनी बूटी के रूप में किया गया है।
ग्राफिक एरा के प्रो-वाईस चांसलर प्रो. संतोष एस. सर्राफ ने किसानों, शिक्षकों व छात्र-छात्राओं सेे सीबकथोर्न से बने उत्पादों को आहार में शामिल करने का आह्वान किया। कार्यशाला में हर्बल ड्रग रिसर्च इंस्टीट्यूट, गोपश्वर के पूर्व वैज्ञानिक डा. विजय प्रसाद भट्ट, हिमाचल रीजनल सेण्टर, कुल्लू की वैज्ञानिक डा. सरला शशनी व गढ़वाल यूनिवर्सिटी के शिक्षक डा. जितेन्द्र सिंह बुटोला ने सीबकथोर्न की खेती, उत्पादन तकनीकों व व्यवसाय रणनीतियों पर विस्तार से जानकारी दी। यह कार्यशाला, दो दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन से पहले आज आयोजित की गई। अगले दो दिन राष्ट्रीय सम्मेलन में विशेषज्ञ हिमालयी क्षेत्रों के संरक्षण में सीबकथोर्न की भूमिका पर चर्चा करेंगे।
कार्यशाला का आयोजन जैव प्रौद्योगिकी विभाग ने सीबकथोर्न एसोसिएशन आफ इण्डिया के सहयोग से किया। कार्यशाला में एचओडी डा. मनु पंत के साथ डा. वी. पी. उनियाल, डा. अनीता पाण्डे, डा. डी. पी. सिंह, डा. नेहा पाण्डे, डा. सौम्या सिन्हा, डा. सौरभ समुचीवाल, डा. योगराज बिस्ट, उत्तराखण्ड वन विभाग उप-प्रादेशक अधिकारी राजकुमार, वन रक्षक सुरेश सिंह नपलच्याल, किसान, शिक्षक-शिक्षिकाएं, पीएचडी स्काॅलर्स और छात्र-छात्राएं मौजद रहे।