सत्यपाल नेगी/ रुद्रप्रयाग
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के एक संदेश ने जहां उत्तराखंड में आप की एंट्री कर दी है, वहीं इससे एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल की छटपटाहट शुरू हो गई तो वहीं अब तक बारी-बारी से उत्तराखंड की बागडोर संभालने वाली भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है।
जी हां! पिछले दिनों आम आदमी पार्टी के दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक संदेश जारी कर कहा था कि उनकी पार्टी उत्तराखंड में सभी विधानसभा सीटों पर 2022 में चुनाव लड़ेगी। इस बयान के बाद तो पूरे उत्तराखंड में जैसा भूचाल आ गया। बड़ी पार्टियों से लेकर छोटे-छोटे दल भी अपने समीकरण साधने लगे, वहीं शतरंज की ऐसी बिसात बिछने लगी, जैसे किसी बाह्य आक्रमणकारियों के लिए किसी जमाने में रियासतों के राजा बिछाया करते थे। अब चूंकि विजय पताका तो उसी दल की लहराएगी, जो आम जन की कसौटी पर आगामी डेढ़ साल पूरे एक सौ एक परसेंट खरा उतरेगा। बावजूद इसके सियासत तो प्राचीन समय से ही होकर चली आ रही है, ऐसे में भला इन डेढ़ साल में यह क्यों नहीं होगी, इस पर सिरखपाई करने का औचित्य भी नहीं है।
यूं तो छोटे से पहाड़ी प्रदेश के लिहाज से यहां के प्रत्येक विधानसभा चुनाव कई नई उम्मीदें लेकर आता है, लेकिन पांच वर्ष खत्म होते-होते अभी तक उन उम्मीदों पर कोई भी पार्टी खरा नहीं उतर पाई है। स्थिति यह है कि उत्तराखंड राज्य गठन के अब 20 साल हो गए हैं। इन 20 वर्षों में बारी-बारी से तीन बार भाजपा एवं दो बार कांग्रेस की सरकारें बनी। हालांकि आंक्षिक विकास भी हुआ है, जिसे नकारा नहीं जा सकता, मगर जिस पीड़ा, संघर्ष एवं उद्देश्य के लिए अलग राज्य मांगा गया था, वह सपने आज भी सपने ही बनकर रह गए हैं।
अगर राज्य गठन के दौरान अंतरिम सरकार के कार्यकाल को अलग रखें तो उत्तराखण्ड में मात्र 4 मुख्यमंत्री होने चाहिए थे, किंतु इस अल्प संसाधनों वाले छोटे से राज्य के मतदाताओं व मूलनिवासियों की नासमझी की वजह के चलते चार की जगह यहां मात्र 20 साल में ही नौ मुख्यमंत्रियों का आर्थिक बोझ भी उठाना पड़ा है।
गजब तो यह है कि 9 मुख्यमंत्री भी उत्तराखण्ड के संघर्षों व शहीदों के सपनों को धरातल पर उतारने में कामयाब नहीं हो सके। ऐसे में अब आम जनता अब तक की सभी सरकारों से सवाल पूछ रही है, जो जायज भी है।
अब चूंकि उत्तराखंड में आगामी 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं तो जाहिर है कि अब आने वाले समय में राजनीतिक सरगर्मियां भी तेजी पकड़ेगी।
मुख्यधारा के पाठकों को यह बताने की आज कतई आवश्यकता नहीं है कि अब तक के इन 20 वर्षों में यहां क्षेत्रीय दलों ने अपना राजनैतिक वजूद बढ़ाने के बजाय इसे खत्म करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। विशेषकर प्रदेश की एकमात्र क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड क्रांति दल ने। शुरुआती 10 साल में उक्रांद की थोड़ी बची-खुची पहचान जरूर थी, किंतु अगले 10 साल यानि 2020 की दूसरी छमाही तक यूकेडी आज शून्य पर खड़ी नजर आ रही है। अब चाहे कमियां जनता की कहें या पार्टी के शीर्ष नेतृत्व की अति महत्वाकांक्षाओं की, लेकिन ये सभी चीजें पार्टी को अर्श से फर्श पर लाने में जिम्मेदार रही। इसका एक प्रमुख कारण यह भी रहा कि इसका आकलन उक्रांद के बड़े नेताओं ने कभी जमीनी स्तर पर करने की जरूरत ही नहीं समझी। बावजूद इसके दोष उत्तराखण्ड की आम जनता के सिर जरूर मढ़ते हुए दिखाई दिए कि उन्होंने दल पर विश्वास नहीं जताया।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अभी भी वक्त है उत्तराखण्ड क्रांति दल को अपनी पुरानी भूल/कमियों को सुधारने के लिए। अभी भी पार्टी सीधे आम जन से संवाद करे और अपनी गलतियों को स्वीकार करते हुए एकजुट होकर प्रदेश हित के लिए संघर्ष में जुट जाएं तो पार्टी का ग्राफ में सुधार देखने को मिल सकता है।
उत्तराखण्ड में हर चुनाव में तीसरे विकल्प की बातें चर्चाओं के केंद्र में रहती है, किंतु आज तक तीसरा विकल्प प्रदेशवासियों के सामने उपलब्ध नहीं हो पाया, जिस पर जनता भरोसा कर सके। ऐसे में अब आम आदमी पार्टी के उत्तराखंड के चुनावी समर में कूदने से एक बार फिर राजनीति गरमा गई है। उत्तराखण्ड के आम जन के बीच चर्चाएं चलनी शुरू हो गई है कि ‘आप’ उत्तराखंड में तीसरे विकल्प के रूप में उभरकर सामने आ सकता है। हालांकि प्रदेश की जनता आप में कितना भरोसा जताती है, यह आने वाले इन डेढ़ वर्षों में स्वयं ही सभी को एहसास हो जाएगा।
इतना जरूर है कि उत्तराखण्ड में आम आदमी पार्टी के चुनावी ऐलान से भाजपा-कांग्रेस-यूकेडी में हलचल तो मच ही गई है। ‘आप’ चुनाव लड़ती है तो यह भी तय है कि सबसे ज्यादा नुकसान कांग्रेस व उक्रांद को ही होना है। हालांकि भारतीय जनता पार्टी से खिन्न होने वाले कार्यकर्ताओं व नेताओं की दूसरी पसंद भी आम आदमी पार्टी ही बनेगी, इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए।
अब क्षेत्रीय कहें या छोटा दल, किंतु उक्रांद व आम आदमी पार्टी तीसरे विकल्प के रूप में कितनी मेहनत करके उभरेगी, यह कहना अभी जल्दबाजी होगा, किंतु जनता की राय व चर्चाओं के बीच दौड़ में फिलहाल उक्रांद से आगे आम आदमी पार्टी ही दिखाई दे रही है।
बहरहाल, 2022 का चुनाव उत्तराखण्ड में क्या नया राजनैतिक गुल खिलाएगा, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन अब प्रदेश की जनता को तय करना है कि 20 वर्षों का हिसाब सही समय पर दोनों प्रमुख दलों से किस प्रकार से लिए जाए! अब देखना यह होगा कि इन दोनों दलों आप व यूकेडी में से कौन जनता के मुद्दों पर खरा उतरने में ज्यादा सफल रहता है। ऐसे में इन दोनों की सफलता से दोनों प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियों कांग्रेस व भाजपा के लिए जोरदार चुनौती खड़ी होने के आसार हैं।
(लेखक राजनैतिक विश्लेषक हैं।)
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