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चिंता: पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है प्लास्टिक (Plastic)

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चिंता: पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है प्लास्टिक (Plastic)

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

साल 1973 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पर्यावरण का बिगड़ता संतुलन और बढ़ते प्रदूषण से जूझ रही दुनिया को समस्या से उबारने के लिए और पर्यावरण को हरा भरा बनाने के लिए, साथ ही विश्‍व पर्यावरण सुरक्षा को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाने की शुरुआत की थी, जिसके बाद हर साल नई और अलग थीम के साथ 5 जून का दिन विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। विश्व पर्यावरण दिवस की स्थापना 1972 में ह्यूमन एनवायरनमेंट पर स्टॉकहोम सम्मेलन में की गई थी, जिसे संयुक्त राष्ट्र द्वारा किया गया था। इस सम्मेलन में करीब 119 देश शरीक हुए थे, जिसके बाद से ही दुनियाभर में 5 जून को विश्‍व पर्यावरण दिवस मनाया जाने लगा।  आज के औद्योगीकरण के इस दौर ने पर्यावरण के लिहाज से भयानक रूप ले लिया है। हर दिन होती पेड़ों की अंधाधुंध कटाई और बढ़ते प्रदूषण की वजह से हमारा इकोसिस्‍टम बहुत तेजी से नकारात्मक बदलावों का सामना कर रहा है। इसी नुकसान के मद्देनजर पर्यावरण को सुरक्षा देने के
संकल्प लेने के मकसद से हर साल ५ जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है।

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बता दें कि ये खास दिवस 143 से अधिक देशों को एक मंच पर लाकर समुद्री प्रदूषण, ओवरपॉपुलेशन, ग्लोबल वॉर्मिंग, सस्टनेबल
कंजम्पशन और वाइल्ड लाइफ क्राइम जैसे पर्यावरणीय मुद्दों पर जागरूकता बढ़ाता है।  इस वर्ष पर्यावरण दिवस 2023 की थीम प्लास्टिक प्रदूषण का समाधान निकालना है। प्लास्टिक या पॉलीथिन का इस्तेमाल प्रकृति को बहुत नुकसान पहुंचाता है। चूंकि प्लास्टिक को नष्ट नहीं किया जा सकता, इस कारण यह नदियों, मृदा आदि में पहुंचकर प्रदूषित करता है उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूईपीपीसीबी) द्वारा 2016-17 में किए गए सर्वेक्षण में कुल कचरे में से प्रतिदिन 272.22 टन प्लास्टिक बताया गया है, जो 2014 में 457.63 टन बढ़ने जा रहा है।इसका पहाड़ी राज्य पर गंभीर प्रभाव पड़ने वाला है।यूईपीपीसीबी के सदस्य सचिव ने कहा, प्लास्टिक कचरे का वर्तमान प्रतिशत पहले से ही खतरनाक है। और अगर हम आज की तरह प्लास्टिक का अत्यधिक उपयोग करते रहे, तो अगले २३ वर्षों में प्लास्टिक की मात्रा लगभग दोगुनी हो जाएगी।देहरादून कचरे में सबसे अधिक प्लास्टिक प्रतिशत योगदान करने वाला शीर्ष शहर है। सर्वेक्षण में कहा
गया है कि राज्य की राजधानी में कचरे में प्रतिदिन 327.9 टन प्लास्टिक मिलाया जाता है जो बढ़कर 584.051 टन प्रतिदिन होने जा रहा है। प्रदेश में प्लास्टिक से जुड़े उद्योगों की ओर से ईपीआर (विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व) प्लान जमा कराने के काम में तेजी आई है। अब तक 278 प्रोड्यूशर, इंपोटर और ब्रांड ऑनर (पीआईबीओ) की ओर से ईपीआर जमा कराया जा चुका है, जबकि 52 प्लास्टिक वेस्ट प्रोसेसर्स
(पीडब्ल्यूपी) कंपनियों की ओर से भी पंजीकरण कराया गया है।

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बीते वर्ष ईपीआर जमा नहीं कराने वाले प्लास्टिक उद्योगों को बंद करने के लिए नोटिस जारी होने बाद हड़कंप की स्थिति बन गई थी। इसके बाद हाईकोर्ट की ओर से एसएसएमई (लघु, सूक्ष्म एवं मध्यम) उद्योगों के पंजीकरण की बाध्यता में छूट दे दी गई थी। अन्य पीआईबीओ के लिए पंजीकरण कराना अनिवार्य किया गया था।उत्तराखंड में बीते दो-तीन माह में पंजीकरण कराने वाले उद्योगों की संख्या में तेजी आई है। प्रदेश में अब तक 202 प्रोड्यूशर, 13 इंपोटर और 63 ब्रांड ऑनर पंजीकरण करा चुके हैं, जो देशभर में हुए 6921  ईपीआर पंजीकरण का करीब चार प्रतिशत है। वहीं, देशभर में 2113 प्रोड्यूशर, 3477 इंपोटर और 1331 ब्रांड ऑनर ने पंजीकरण कराया है। केंद्रीय पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की साइट पर जारी आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च 2023तक देशभर में 6921 कंपनियों ने ईपीआर प्लान जमा कराया है। इनमें से भी २७८ कंपनियां उत्तराखंड की हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने उत्तराखंड को 200 करोड़ रुपए के पर्यावरणीय मुआवजे का भुगतान करने का निर्देश दिया है। मामला राज्य में सीवेज और ठोस कचरे के बढ़ते प्रदूषण से जुड़ा है। कोर्ट ने यह जुर्माना सीवेज के उत्पादन और उपचार में 60 एमएलडी के अंतर के साथ ठोस कचरे के निपटान में 252.65 टीपीडी के अंतर के लिए लगाया है।इसके साथ ही राज्य में अभी भी 15.75 लाख मीट्रिक टन कचरा वर्षों से जमा है, इसे भी ध्यान में रखा है।

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जानकारी मिली है कि जुर्माने की इस राशि का उपयोग विशेष रूप से सीवेज और ठोस कचरे के प्रबंधन के लिए किया जाएगा, हालांकि साथ ही न्यायालय ने उत्तराखंड के मुख्य सचिव के इस अनुरोध को स्वीकार कर लिया कि एनजीटी द्वारा मुआवजा वसूलने के बजाय प्रशासन स्वयं एक महीने के भीतर मुआवजे की इस रकम को एक अलग रिंग फेंस खाते में डाल देगा। मामला उत्तराखंड में इथरना से कुखाई तक 12 किलोमीटर लंगी सड़क के निर्माण के दौरान गैरकानूनी तरीके से बने अनधिकृत मलबा डंपिंग क्षेत्रों से जुड़ा है।साथ ही कोर्ट ने इन स्थानों पर पेड़ लगाने की बात भी कही है। साथ ही यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि इस बात का ध्यान रखा जाए कि भविष्य में इस प्रकार की गैरकानूनी तरीके से डंपिंग न की जाए।साथ ही आदेश में इस बात पर भी जोर दिया गया है कि वन भूमि के डायवर्जन और अन्य पर्यावरणीय मानदंडों के लिए शर्तों का अनुपालन सुनिश्चित करने की जरूरत है। जानकारी मिली है कि सड़क निर्माण के दौरान जाखन नदी,में भी कचरे को अवैज्ञानिक तरीके से डंप किया गया है। गौरतलब है कि जाखन गंगा की एक सहायक नदी है। इसकी वजह से शंभूवाला गांव के पास
एक अस्थाई झील बन गई है।इस मामले में उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, प्रभागीय वन अधिकारी (डीएफओ), और देहरादून के जिला मजिस्ट्रेट की एक संयुक्त समिति ने 18 मार्च, 2023 को रिपोर्ट सबमिट की थी। इस रिपोर्ट में नियमों के उल्लंघनों की बात स्वीकार की गई थी। साथ ही यह माना था कि कचरे के ढेर के कारण झील का निर्माण हुआ है। इसके साथ ही यह भी जानकारी मिली है कि मलबा डालने से 27 पेड़ क्षतिग्रस्त हो गए थे जिसके लिए 50 हजार के जुर्माने की वसूली भी की गई थी।रिपोर्ट के मुताबिक वहां चार अनधिकृत डंपिंग जोन स्थापित किए गए हैं, जिसके चलते क्षेत्र में पेड़ों को नुकसान पहुंचा है।

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कोर्ट का कहना है कि रिपोर्टों में पर्यावरण उल्लंघन की बात कही गई है, ऐसे में इसके सुधार के लिए कार्रवाई की जानी चाहिए। पर्यावरण प्रदूषण एक विश्वव्यापी समस्या है। पेड़-पौधे, मानव, पशु-पक्षी सभी उसकी चपेट में है। कल कारखानों से निकलने वाला उत्सर्जन, पेड़ पौधों की कटाई, वायु, जल  ध्वनि और प्लास्टिक प्रदूषण ने मानव जीवन के समक्ष संकट खड़ा कर दिया है। प्रदूषण का अर्थ है हमारे आस पास का परिवेश गन्दा होना और प्राकृतिक संतुलन में दोष पैदा होना। पर्यावरण के नष्ट होने और औद्योगीकरण के कारण  प्रदूषण की समस्या ने विकराल रूप धारण कर लिया है जिसके फलस्वरूप मानव जीवन दूभर हो गया है। हमने प्रगति की दौड़ में मिसाल कायम की है मगर पर्यावरण का कभी ध्यान नहीं रखा जिसके फलस्वरूप पेड़ पौधों से लेकर नदी तालाब और वायुमण्डल प्रदूषित हुआ है और मनुष्य का सांस लेना भी दुर्लभ हो गया है।प्राचीन काल में हमारा पर्यावरण बहुत साफ और शुध्द था। उस समय मानव और प्रकृति का अद्भुत सम्बन्ध था मगर जैसे जैसे मनुष्य ने प्रगति और विकासः के मार्ग पर अपने पैर रखे वैसे वैसे उसने पर्यावरण का साथ छोड़ दिया और पर्यावरण को प्रदूषित होने दिया। आबादी के विस्फोट ने आग में घी का काम किया और पर्यावरण तेजी से बिगड़ता चला गया। प्रदूषण से होने वाली मौतों में भारत सबसे टॉप पर हैै। प्रदूषण की वजह से दुनिया भर में प्रतिवर्ष करीब 90 लाख लोगों की मौत होती है जो कुल मौतों का छठा हिस्सा है। प्रदूषण से जुड़ी 92 फीसद मौत निम्न से मध्यम आय वर्ग में हुईं। आज वैश्विक स्तर पर प्रतिव्यक्ति प्लास्टिक का उपयोग जहां18 किलोग्राम है वहींइसका रिसायक्लिंग मात्र 15.2प्रतिशत ही है । प्लास्टिक प्रदूषण मानव जीवन के समक्ष एक बड़े खतरे के रूप में उभरा है। संयुक्त राष्ट्र  पर्यावरण कार्यक्रम के मुखिया श्री इरिक सोलहिम ने कहा है प्लास्टिक पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है। जब बड़ा प्लास्टिक छोटे टुकड़ों में विभाजित होता है तो छोटे टुकड़े धीरे- धीरे समुद्र पहुंच जाते हैं। इन छोटे प्लास्टिक के टुकड़ों को मछलियां खा जाती हैं। मछली खाते हैं और यह प्लास्टिक हमारे शरीर में पहुंच जाता है। इस प्रकार प्लास्टिक प्रदूषण पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा है।प्लास्टिक से बनी वस्तुओं का जमीन या जल में इकट्ठा होना प्लास्टिक प्रदूषण कहलाता है  जिससे  मानवों के जीवन पर बुरा प्रभाव पडता है। मानव द्वारा निर्मित चीजों में प्लास्टिक थैली एक ऐसी वस्तु है. जो जमीन से आसमान तक हर जगह मिल जाती है। पर्यटन स्थलों, समुद्री तटो, नदी नालों, खेतों खलिहानों, भूमि के अंदर बाहर सब जगहों पर आज प्लास्टिक के कैरी बैग्स अटे पड़े है। घर में रसोई से लेकर पूजा स्थलों तक हर जगह प्लास्टिक थेलिया रंग बिरंगे रूप में देखने को मिल जाएगी। चावल, दाल,तेल, मसाले, दूध, घी, मक, चीनी आदि सभी आवश्यकता के सामान आजकल प्लास्टिक-पैक में मिलने लगे हैं।

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आज प्रत्येक उत्पाद प्लास्टिक की थैलियो में मिलता है जो घर आते आते  कचरे में तब्दील होकर पर्यावरण को हानि पंहुचा रहा है। वर्तमान में प्लास्टिक प्रदूषण एक गंभीर  समस्या बन गया है। दुनिया भर में अरबों प्लास्टिक के बैग हर साल फेंके जाते हैं। ये प्लास्टिक बैग नालियों के प्रवाह को रोकते हैं और आगे बढ़ते हुए वे नदियों और महासागरों तक पहुंचते हैं। चूंकि प्लास्टिक स्वाभाविक रूप से विघटित नहीं होता है इसलिए यह प्रतिकूल तरीके से नदियों, महासागरों आदि के जीवन और पर्यावरण को प्रभावित करता है। प्लास्टिक प्रदूषण के कारण लाखों पशु और पक्षी  मारे जाते हैं जो पर्यावरण संतुलन के मामले में एक अत्यंत चिंताजनक पहलू है। आज हर जगह प्लास्टिक दिखता है जो र्यावरण को दूषित कर रहा है। जहां कहीं प्लास्टिक पाए जाते हैं वहां पृथ्वी की उपजाऊ शक्ति कम हो जाती है और जमीन के नीचे दबे दाने वाले बीज अंकुरित नहीं होते हैं तो भूमि बंजर हो जाती है। प्लास्टिक नालियों को रोकता है और पॉलीथीन का ढेर वातावरण को प्रदूषित करता है। चूंकि हम बचे खाद्य पदार्थों को पॉलीथीन में लपेट कर फेंकते हैं तो पशु उन्हें ऐसे ही खा लेते हैं जिससे जानवरों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है यहां तक कि उनकी मौत का कारण भी।

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प्लास्टिक वेस्ट मामले पर हाईकोर्ट नाराज, कहा केदारनाथ की तर्ज पर पूरे राज्य में हो कूड़ा निस्तारण, प्रोडक्ट पर लगे क्तक्र कोड उत्तराखंड में प्लास्टिक कचरे पर प्रतिबंध के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है. कोर्ट ने पूर्व के आदेश का पालन न करने पर कड़ी नाराजगी जताई है. हाईकोर्ट के न्यायाधीश समेत सभी ज्यूडिशियरी स्वच्छता अभियान चलाएंगे. इसमें सरकार से सहयोग करने को कहा है. इसके साथ ही कोर्ट ने सरकार के लिए कई निर्देश जारी किए हैं जिसमें केदारनाथ की तर्ज पर प्लास्टिक बोतलों पर क्यूआर कोड लागू करने से लेकर कूड़ा वाहनों में त्रक्कस् सिस्टम लगाने की बात कही गई है. नव जीवन के लिये पर्यावरण का अनुकूल और संतुलित होना बहुत
जरूरी है। पर्यावरण के प्रदूषित होने से हमारे स्वस्थ जीवन में कांटे पैदा हो गए है। विभिन्न असाध्य बीमारियों ने हमें असमय अंधे कुए की ओर धकेल दिया है जिसमें  गिरना तो आसान है मगर निकलना भारी मुश्किल। यदि हमने अभी से पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया तो आने वाला मानव जीवन अंधकारमय हो जायेगा। यह प्रत्येक व्यक्ति का कर्तव्य है कि वह अपने आस-पड़ौस के पर्यावरण को साफ सुथरा रखकर पर्यावरण को संरक्षित करे तभी हमारे सुखमय जीवन को सुरक्षित और  संरक्षित रखा जा सकता है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

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