मामचन्द शाह
उत्तराखंड के पहाड़ी जनपदों में गुलदार, तेंदुआ, बाघ व भालू जैसे खूंखार जानवर अभिशाप बन गए हैं। यहां जब-तब किसी को इनका शिकार बनना पड़ता है, लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण है कि पहाड़ की भोली-भाली जनता के लिए सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम उपलब्ध नहीं किए जाते हैं।
हाल की नारायणबगड़ इलाके में घटी हृदय विदारक घटना को ही देख लीजिए, यहां गौशाला से लौट रही एक बालिका को नरभक्षी गुलदार का शिकार होना पड़ा। इससे पहले 28 मई को भ्याड़ी गांव के मगेटी तोक में गुलदार ने एक साल के दुधमुहें बालक को मारा था। उसके बाद 14 जून को इसी गांव के मान सिंह की 27 वर्षीय पुत्री जशोदा पर भी हमला किया था। एक माह के भीतर घटी इन तीन घटनाओं ने क्षेत्रवासियों को सोचने पर मजबूर कर दिया है। स्थिति यह है कि वे खौफ के साये में जीने को मजबूर हैं।
दो दिवस पूर्व नारायणबगड़ विकासखंड के अंतर्गत गैरबारम गांव में गुलदार ने एक बारह साल की अबोध बालिका को उसके माता-पिता से उसे छीन लिया। सूचना के बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी।
बताते चलें कि ग्राम प्रधान देवेंद्र सिंह की 12 वर्षीय बिटिया शाम को करीब 7.30 बजे अपनी गौशाला से वापस आ रही थी। रास्ते में घात लगाकर बैठे गुलदार ने उस पर हमला कर दिया। ग्रामीणों के शोर से गुलदार तो भाग गया था, लेकिन तब तक बिटिया इस दुनिया को अलविदा कह चुकी थी। राजस्व उपनिरीक्षक विनोद कुमार ने इस घटना की पुष्टि की है।
बताया गया कि इसके बाद भी गुलदार वहीं आस-पास दुबका रहा और कुछ देर बाद गैरबारम गांव के हरेढोन तोक में एक घर में घुसकर हमला किया, लेकिन वे सौभाग्यशाली रहे कि वह गुलदार के हमले में बच गए।
इन घटनाओं के बाद से क्षेत्रवासी काफी डरे हुए हंै। प्रशासन और वन विभाग को लेकर भी ग्रामीणों में काफी रोष है और उनका कहना है कि यदि समय रहते वहां सुरक्षा मुहैया कराई जाती तो इस घटना को होने से बचाया जा सकता था।
बताते चलें कि यूं तो देहरादून, हरिद्वार (रायवाला) जैसे सुगम इलाकों में भी गुलदार व तेंदुए के हमले में लोगों को जान गंवानी पड़ती है, लेकिन इसकी मार पहाड़ी जनपदों में अधिक पड़ती है। किन्हीं इलाकों में गुलदार, कहीं तेंदुए तो कहीं भालू के आतंक से ग्रामीणों का जीना पहाड़ जैसा हो गया है।
२३ अप्रैल २०२० को पिथौरागढ़ के खतीगांव जंगल में चारा पत्ती लेने गई महिला पर तेदुएं ने हमला कर दिया था, लेकिन उनके साथ गई अन्य महिलाओं ने तेंदुए से भिड़कर अपनी सहेली की जान बचा ली।
मार्च में रुद्रप्रयाग के अगस्त्यमुनिक ब्लॉक के बावई क्यार्क गांव में गुलदार ने राजेंद्र सिंह पर हमला कर दिया था। इस पर समय रहते अन्य ग्रामीण वहां पहुंच गए और राजेंद्र की जान बचाने में सफल रहे।
११ जनवरी को हरिद्वार के भेल सेक्टर में एक व्यक्ति जब ड्यूटी से लौट रहे थे तो गुलदार ने उसे मौत के घाट उतार दिया था।
आठ मई को हल्द्वानी में काठगोदाम के निकट सोनाकोट गांव में एक महिला को निवाला बना लिया था।
भालुओं का आतंक भी कम नहीं
पाठक शायद ही भूले होंगे कि मार्च में पौड़ी गढ़वाल के कोट ब्लॉक के कोटा गांव में भालू ने किस तरह से पांच महिलाओं को बुरी तरह जख्मी कर दिया था। यदि समय रहते एयर लिफ्ट कर उन्हें हायर सेंटर नहीं पहुंचाया जाता तो बड़ी अनहोनी हो सकती थी।
जाहिर है कि जिस तरह से गुलदार व तेदुओं का पहाड़ में आतंक है, उसी प्रकार किन्हीं इलाकों में भालुओं का आतंक भी कम नहीं है।
इन कुछ उदाहरणों से महसूस किया जा सकता है कि उत्तराखंड में वन्य खूंखार जानवर किस तरह मानव जाति के लिए अभिशाप बनते जा रहे हैं, लेकिन विडंबना यह है कि वन्य जीव कानून के तहत जानलेवा हमले के बचाव के रूप में भी वन्य जीवों पर हमला नहीं किया जा सकता। ऐसे में वन विभाग की सुस्त सुरक्षा व्यवस्था के भरोसे ग्रामीणों को खौफ के साये में जीने के साथ ही जब-तब गुलदार, तेंदुए, बाघ और भालू जैसे खूंखार जानवरों का शिकार होना पड़ता है, लेकिन पहाड़ है, यहां के जन पहाड़वासी हैं तो उनकी व्यथा सुनने के लिए किसी राजनेता या प्रशासनिक अमले को ऐसे पहाड़ी इलाकों में पहुंचने की जरूरत हो भी कैसे सकती है! हां चुनावी मौसम में वे वहां रेंगते व घोषणाएं करते हुए दिखाई दें तो इससे किसी ऐसे प्रभावित क्षेत्रवासियों को कोई संदेह भी नहीं है।
बहरहाल, वन विभाग को चाहिए कि वह शीघ्र ऐसे इलाकों को चिन्हित करे, जहां ग्रामीण नरभक्षी गुलदार, तेंदुए, बाघ या भालू के हमलों में अपनी जान गंवाते आए हैं। उन इलाकों में सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए जाएं और ऐसे खूंखार जानवरों को पकड़कर किसी पार्क क्षेत्र में छोड़े जाएं। ऐसे में वन्य जीव जहां सुरक्षित रहेंगे, वहीं ग्रामीण भी वन्य जीवों के हमलों के कोपभाजन नहीं बन सकेंगे। अब देखना यह होगा कि वन विभाग ऐसे प्रभावित इलाकों को लेकर क्या कदम उठाता है?