ज्वलंत सवाल: विकराल होती वनाग्नि (forest fire), बेबस वन कर्मी व बजट का ‘रोना’ रोते DFO

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देहरादून/मुख्यधारा

वर्तमानि फायर सीजन में वनाग्नि (forest fire) विकराल होती जा रही है, जिसके आगे तमाम इंतेजाम का दावा करने वाले वन कर्मी बेवश नजर आ रहे हैं। अब तक करीब 50 लाख की वन संपत्तियां जलकर खाक हो गई हैं, जबकि 1216 घटनाएं वनाग्नि की सामने आ चुकी हैं।

उत्तराखंड में हर वर्ष 15 फरवरी से फायर (forest fire) सीजन घोषित किया गया है। बावजूद इसके वन विभाग समय पर इंतजाम करने में विफल रहा है। फलस्वरूप इस फायर सीजन में अब तक उत्तराखंड में 1216 आग लगने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जिनमें से 523 गढ़वाल क्षेत्र में और 625 कुमाऊं मंडल में वनाग्नि (forest fire) के मामले शामिल हैं। इसके अलावा 68 क्षेत्र ऐसे भी हैं, जो वन्य जीवों के लिए संरक्षित क्षेत्र घोषित हैं।

forest fire

इस फायर (forest fire) सीजन में 1872 हैक्टेयर वन क्षेत्रों के आग में जलकर खाक होने की घटनाओं से प्रदेश की जनता वाकिफ है। वन विभाग ने अब तक 50 लाख से ज्यादा के नुकसान का आंकलन किया है। जंगल की आग से इस बार अब तक चार लोगों के झुलसने की खबरें हैं, जबकि एक व्यक्ति की मौत हो चुकी है। किन्हीं क्षेत्रों में आग इतनी विकराल रूप ले रही हैं वह रिहायशी इलाकों तक भी आ जा रही है। ऐसे में लोगों के सामने बड़ी चुनौती बन रही है। कई छानियां अब तक जंगल की आग (forest fire) की चपेट में आ चुकी हैं, जिससे काश्तकारों का काफी नुकसान हो चुका है।

गत दिवस ही 124 क्षेत्रों में वनाग्नि (forest fire) की घटनाएं सामने आई हैं। धूप की तपिश और तेज हवाओं के एक साथ चलने से वन कर्मियों की राह और मुश्किल होती जा रही है। विकट परिस्थितियों का सामना कर रहे वन कर्मियों की हालत को भांपते हुए वन विभाग ने अब जनपदों से मदद की गुहार लगाई है।

इस संबंध में गत दिवस गढ़वाल कमिश्नर सुशील कुमार ने सभी डीएम व एसएसपी को समन्वय बनाकर वनाग्नि (forest fire) की रोकथाम को लेकर काम करने को कहा है। साथ ही ग्राम पंचायतों के साथ ही सिविल सोसाइटी की मदद लेने के लिए भी कहा गया है। इसके अलावा डीआईजी गढ़वाल ने आग लगाने वालों को चिन्हित कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के लिए भी सख्त निर्देश दिए गए हैं। इस दौरान फायर बजट, उपकरणों की उपलब्धता, फायर कर्मियों के लिए आवश्यक सामान आदि विषयों पिर भी मंथन किया।

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बजट का रोना रोते डीएफओ

भले ही विभाग बजट की कमी न होने का दावा कर रहा हो, किंतु अधिकांश प्रभागीय मौजूदा फायर सीजन में बजट का रोना रो रहे हैं। कई डीएफओ का कहना है कि बजट न होने से वनाग्नि (forest fire) से बचाव व जागरूकता के लिए वे प्रचार-प्रसार नहीं कर पा रहे हैं।

सवाल यह है कि जब फायर सीजन (forest fire) में ही सभी वन प्रभागों तक पर्याप्त बजट उपलब्ध नहीं हो पाएगा तो जब ये दुश्वारियां खत्म हो जाएंगी, तब यहां बजट भेजने का क्या औचित्य होगा, यह समझ से परे है।

कुल मिलाकर वन हम सबकी अमूल्य संपदा हैं, जिससे धरावासियों को प्राणवायु प्रदान होती है। ऐसे में वनाग्नि (forest fire) रोकथाम को लेकर जितनी जिम्मेदारी वन विभाग की है, उतनी ही आम जन की भी जिम्मेदारी है कि वह न तो स्वयं आग लगाएं और न ही दूसरों को लगाने दें। ऐसे में वन विभाग को भी हर वर्ष फायर सीजन शुरू होने से पूर्व तक सभी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर लेनी चाहिए, ताकि जब वनाग्नि अपने चरम पर पहुंचेगी तो तब वन कर्मियों को विवशता न झेलनी पड़े।

बहरहाल, अधूरी व्यवस्थाओं के बीच वन कर्मियों की आसमां की ओर टकटकी लगी है कि कब बारिश की बूंदे धरा पर गिरेंगी और वनाग्नि (forest fire) से राहत की सांस ली जा सके।

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