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विश्व के सभी खट्टे फल गलगल का जन्मस्थल हिमालय है

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विश्व के सभी खट्टे फल गलगल का जन्मस्थल हिमालय है

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत में सातवीं-आठवीं ईसा पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में इस फल का वर्णन है ग्रंथ के अनुसार यह वात व कफ नाशक है, भूख बढ़ाता है, सांसों की गति को सुचारू रखता है। पश्चिमी हिमालय में गलगल के पौधे को पवित्र माना जाता है और कच्चे गलगल पूजा में शामिल किया जाता है। सामाजिक व अन्य गृह कार्यों में इसकी पत्तियों का भी इस्तेमाल किया जाता है। खट्टे फल दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया, दक्षिण पूर्व एशिया, और ऑस्ट्रेलिया में मूल रूप से पाए जाते हैं। प्राचीन काल से इन क्षेत्रों में विभिन्न खट्टे फलों की प्रजातियों का उपयोग किया गया है। वहां से इसकी खेती औस्ट्रोनेशी प्रसार (3000-1500 ईसा पूर्व) द्वारा माइक्रोनेसिया और पोलिनेशिया और धूप के व्यापार मार्ग के माध्यम से मध्य पूर्व और भूमध्य सागर में फैल गई।

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वहीं जीनोमिक डीएनए का अध्ययन, जातिवृत्तीय (विकास का अध्ययन) और जैव-भौगोलिक (समय के माध्यम से प्रजातियों के प्रवास और वितरण का अध्ययन) के अध्ययनों ने अब साबित कर दिया है कि आज उपलब्ध सभी खट्टे फलों की प्रजातियां विशेष रूप से हिमालय के दक्षिण-पूर्वी तलहटी, असम के पूर्वी क्षेत्र, उत्तरी म्यांमार और चीन में पश्चिमी युन्नान से आई हैं। 15 से अधिक वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय समूह ने नींबू, संतरे और अंगूर सहित खट्टे फलों की 60 विभिन्न प्रजातियों का अध्ययन किया, और निष्कर्ष निकाला कि फल के मूल रूप से सिर्फ तीन पूर्वज थे। भारत में उपलब्ध प्रसिद्ध खट्टे फल मेयर नींबू क्लेमेंटाइन, लाल संतरा, गलगल, चकोतरा, टंगर और हैंड ऑफ बुद्धा हैं।

भारत में उपलब्ध खट्टे फलों की शीर्ष किस्में निम्न हैं मौसम्बी : उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय जलवायु में उगने वाला मौसम्बी फल काफी रसीला और खट्टा मीठा होता है। यह भारत में पाए जाने वाले खट्टे फलों के जूस में से सबसे आम है। संतरा : संतरा खट्टे वंश के मीठे
संतरे समूह से प्राप्त होने वाला फल है और भारत में सबसे महत्वपूर्ण कृषि उत्पाद है,विशेष रूप से नागपुर और कूर्ग। ब्राजील और चीन के बाद भारत दुनिया में संतरे का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है। गलगल (पहाड़ी नींबू), हिमाचल प्रदेश में पूर्वी हिमालय, भारत के उत्तराखंड और नेपाल में पाए जाने वाले बड़े सुगंधित नींबू हैं जो आमतौर पर भारतीय करी और पारंपरिक दवाओं में उपयोग किए जाते हैं। गलगल उन तीन शुरुआती साइट्रस प्रजातियों में से एक है जिनसे प्राकृतिक या कृत्रिम संकरण के माध्यम से अन्य साइट्रस किस्मों का विकास किया गया था। पहाड़ी नींबू न सिर्फ हमारी सेहत के लिए फायदेमंद है बल्कि इसके पौष्टिक मोटे छिलके का उपयोग औषधीय प्रयोजनों के लिए भी किया जाता है।

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दिलचस्प बात यह है कि गलगल (जिसे खट्टा या पहाड़ी नींबू के नाम से भी जाना जाता है) 25 F तापमान तक का सामना कर सकता है। इसके अलावा, ये गूदेदार हिल नींबू अत्यधिक अम्लीय और न्यूनतम चीनी सामग्री वाले होते हैं। विटामिन सी का अच्छा स्रोत होने के कारण, गैलगल या साइट्रस दिल के स्ट्रोक के खतरे को कम करता है। आम तौर पर पाए जाने वाले नींबू का सेवन आपकी दैनिक विटामिन सी की 51% आवश्यकता को पूरा करता है। इसकी तुलना में, गलगल में विटामिन सी की मात्रा अधिक होती है। शोध से पता चला है कि विटामिन सी से भरपूर सब्जियों और फलों को अपने आहार में शामिल करने से हृदय रोग का खतरा काफी कम हो जाता है। विटामिन सी के अलावा, गलगल नींबू में उच्च फाइबर और पोटेशियम सामग्री होती है जो दिल के दौरे के खतरे को कम करने में भी भूमिका निभाती है।

नींबू का उपयोग आमतौर पर वजन घटाने वाले आहार में किया जाता है। इसका एक कारण पेक्टिन फाइबर की उच्च सांद्रता है जो पेट में फैलकर आपको लंबे समय तक पेट भरा हुआ महसूस कराता है।हालाँकि, पेक्टिक नींबू के रस में नहीं बल्कि नींबू के गूदे और छिलके में पाया जाता है। गलगल नींबू के छिलके मोटे होते हैं जो पेक्टिन से भरपूर होते हैं।चपटे आहार का पालन करने वाले किए गए एक अध्ययन में नींबू के छिलकों से पॉलीफेनॉल अर्क दिया गया। अन्य चूहों के समूह की तुलना में चूहों का वजन न्यूनतम बढ़ा। इस प्रकार, गलगल के छिलके तेजी से
वजन घटाने को बढ़ावा देने में प्रभावी हैं। पेक्टिन का एक समृद्ध स्रोत हैं, एक घुलनशील फाइबर जो कई स्वास्थ्य लाभों के लिए जिम्मेदार है। यह न केवल आंत के स्वास्थ्य में सुधार करता है बल्कि स्टार्च और चीनी के पाचन को भी धीमा कर देता है, जिससे रक्त शर्करा का स्तर कम हो जाता है। हालाँकि, इस फाइबर का अधिकांश हिस्सा गलगल जूस के बजाय गूदे में मौजूद होता है। गलगल नींबू पोषक तत्वों से भरपूर है और इसे अपने आहार में शामिल करने से हृदय स्वास्थ्य, संज्ञानात्मक स्वास्थ्य और गुर्दे के स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलता है।

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नीबू के विपरीत, ये बड़े आकार के नींबू विटामिन सी, साइट्रिक एसिड, पेक्टिन और फाइटोन्यूट्रिएंट्स का एक समृद्ध स्रोत हैं।राज्य सरकार ने वर्ष 2022-23 के लिए माल्टा और पहाड़ी नीबू का न्यूनतम समर्थन_मूल्य घोषित कर दिया है। च्सीज् ग्रेड माल्टा और पहाड़ी नीबू (गलगल) फलों के लिए क्रमशःआठ रुपये एवं पांच रुपये प्रति किलोग्राम घोषित किया है।इस फल में पाए जाने वाले यह घुलनशील फाइबर और खट्टापन मोटापे को कंट्रोल करते हैं और अगर एक्सरसाइज के साथ गलगल का सेवन किया जाए तो यह वजन भी कम कर देता है, क्योंकि इसके खट्टेपन में फैट को गलाने की क्षमता है। इस फल में पोटेशियम भी पाया जाता है, जो हड्डियों को भी स्वस्थ रखता है। चूंकि इसमें विटामिन सी खूब है, इसलिए यह शरीर को एनीमिक होने से बचाता है। यह पेट को संक्रमित होने से भी रोकता है। ऐसा भी माना जाता है कि इसके सेवन से किडनी में स्टोन का दोष नहीं बन पाता है।

एक रिपोर्ट यह भी बताती है कि इसके अर्क (रस) में एंटीऑक्सीडेंट व मधुमेह विरोधी गुण भी मौजूद हैं. गलगल का सहज रूप से सेवन किया जाए तो किसी प्रकार का साइड इफेक्ट नहीं है, लेकिन अधिक मात्रा में खाए जाने पर यह दांतों को बेहद खट्टा कर देगा, साथ ही पेट में मरोड़ भी पैदा कर सकता है। कुछ समय पहले तक यहां इनके सैकड़ों पेड़ थे, पर अब लोग मेहनत से कतराते हैं। नतीजतन पौधे रखरखाव की कमी के कारण सूखते गए और नए लगाने का काम हुआ नहीं, करीब डेढ़ दशक पहले के अनेक गांवों में गलगल की बागवानी होती थी। एक पौधे से चार से पांच क्विटल गलगल की पैदावार होती थी। स्वाद में पूरी तरह खट्टेपन से युक्त यह फल सबसे ज्यादा आचार के काम ही आता है और इसके एक फल का वजन आधा किलो तक होता है। इसमें विटामिन सी की भरपूर मात्रा पाई जाती है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कई रोगों से लड़ने की ताकत को बढ़ाता है। आयर्न की कमी को दूर करता है, पाचन तंत्र को दुरुस्त और गैस आदि बीमारियों को भी दूर करने में अत्यंत लाभदायक फल है। बाहरी राज्यों से आने वाली गलगल पर होना पड़ रहा निर्भरगलगल के फल उपलब्ध होने और उसके आचार का आनंद लेने के लिए अब लोगों को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है।

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गलगल एक बहुत ही महत्वपूर्ण फल है, अपने में अनेक गुणों को लिए समेटे हुए है। गलगल का उत्पत्ति स्थल भारत माना जाता है और यह हजारों वर्षों से हिमालयी और आसपास के क्षेत्रों में फल-फूल रहा है। नींबू से बहुत बड़ा गलगल रस से भरपूर होता है। काटकर निचोड़ेंगे तो भरभराकर रस गिरने लगेगा। कुछ चिकना, कुछ अनगढ़ सा गलगल पकने के बाद अपने पीले रूप में गजब तौर पर आकर्षित करता है। इसका स्वादिष्ट शरबत और चटनी तो बनती ही है, मुरब्बा और अचार भी बेहद पसंद किया जाता है। असल में इसका मोटा छिलका अचार में रंग और स्वाद भरता है। पहाड़ी इलाकों में जब सर्दियों के दौरान घरों में मेहमान आते हैं जो उन्हें थाली में गलगल के छोटे टुकड़े काटकर उसमें मसाले और हल्की सी चीनी डालकर बनाया गया विशेष आहार खिलाया जाता है। इस आहार को खिलाना मेहमान को सम्मान देना माना जाता है। स्वाद में पूरी तरह खट्टेपन से युक्त यह फल सबसे ज्यादा आचार के काम ही आता है और इसके एक फल का वजन आधा किलो तक होता है।

नींबू प्रजाति के इस फल में अनेकों गुण है। इसमें विटामिन सी की प्रचुर मात्रा पाई जाती है। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर कई रोगों से लड़ने की ताकत को बढ़ाता है आयरन की कमी को दूर करता है पाचन तंत्र को दुरुस्त और गैस आदि बीमारियों को भी दूर करने में अत्यंत लाभदायक फल है। 10-15 साल पहले समूचे कंडी इलाका में नींबू प्रजाति के फलों और गलगल की काफी मात्रा में पैदावार होती थी, लेकिन धीरे धीरे नींबू प्रजाति का अस्तित्व खतरे में आ गया है। इसका प्रमुख कारण अच्छी किस्म के पौधे न मिलना और लोगों विशेषकर युवाओं का खेती से विमुख होना है। दूसरे लोग मेहनत करके अचार बनाने की तुलना में रेडीमेड अचारों को तरजीह देने लग गए हैं। दूसरे इस प्रजाति के फलों का सही मूल्य न मिलना भी एक कारण रहा है।

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किसानों का कहना है। क्षेत्र में गलगल की भरपूर पैदावार होती थी। नींबू प्रजाति की उचित देखभाल की जानकारी न मिलना और मार्केटिग सही न होने के कारण गलगल की बागवानी दम तोड़ती हुई दिख रही है। जिससे अब इसका स्वाद लेने के लिए बाहरी राज्यों से आने वाले गलगल पर निर्भर होना पड़ रहा है। पहले कंडी इलाका गलगल की खेती में अव्वल था, लेकिन नींबू प्रजाति के इस तरह पांव उखड़ना कहीं न कहीं कोई कमी तो आ गई है। क्षेत्र में पर्याप्त सिचाई साधन भी न होना भी बागवानी की राह में रोड़ा बन गए हैं। उत्तराखंड आत्मनिर्भर बने इसके लिए नए सिरे से विकास नीति यहां की भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार तय हो ,तभी उत्तराखंड राज्य अपने वजूद को कायम रख सकता है।

( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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