हिमालय में सिकुड़ रहा भौंरों का आवास
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
दुनिया में एक अमर प्रेम कहानी अब खत्म होने की कगार पर पहुंच गई है। भंवरे ने खिलाया फूल फूल ले गया कोई राजकुमार ‘प्रेम रोग’ फिल्म का यह गाना आपने जरूर सुना होगा। इस गाने में फूल और भौंरा यानी फूल- कीट के प्रेम संबंध को बताया गया है। यहां फूल-भौंरा दोनों एक दूसरे से कनेक्ट हैं। बिना फूल पर बैठे न तो भौंरा रह पाता है और बिना भौंरा के फूल की सुंदरता भी नहीं बढ़ पाती है।फूलों और कीटों के बीच बहुत पुराना संबंध है, लेकिन जलवायु परिवर्तन की वजह से धीरे-धीरे इनके रिश्तों में दूरियां आ रही हैं।पहले फूलों पर कीट परागण की प्रक्रिया बहुत होती थी। न्यू फाइटोलॉजिस्ट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन में पाया गया है कि फूल अब परागण की प्रक्रिया कम करते हैं,जिससे कीटों की संख्या में गिरावट आ रही है। परागण का संबंध कीट-पंतगो जैसे तितली, भंवरा, मधुमक्खी मक्खी, ततैया से है, जो फूलों पर बैठकर उसकी सुंदरता बढ़ाते हैं।
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रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने इनके भविष्य के खतरों को लेकर चेताया है।कहा, वर्ष 2050 से 2070 तक भौरे अपने प्राकृतिक वास का बड़ा हिस्सा खो देंगे। जिनके मात्र 15 प्रतिशत आवास सुरक्षित रहेंगे। वैज्ञानिकों ने अध्ययन रिपोर्ट में भौरों के प्राकृतिक वास प्रभावित होने की बड़ी वजह जलवायु परिवर्तन के साथ ही शहरीकरण, बढ़ती कृषि गतिविधियों, कीटनाशकों के अंधाधुंध उपयोग एवं भूमि उपयोग में परिवर्तन को बताया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक, इससे अगले 50 वर्षों में भौरों की अधिकतर प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवास में कमी आएगी। अध्ययन के दौरान पाया कि हिमालयी क्षेत्र का 30 प्रतिशत से अधिक हिस्सा भौरों की केवल तीन प्रजातियों के लिए उपयुक्त है। 20 से 30 प्रतिशत क्षेत्र भौरों की केवल दो प्रजातियों एवं 10 प्रतिशत से कम क्षेत्र 16 प्रजातियों के लिए उपयुक्त हैं। हिमालयी क्षेत्र के भौरों की 32 प्रजातियों पर अध्ययन किया।
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अध्ययन से यह पता चला है कि भौरों का आवास संकटग्रस्त श्रेणी में आ चुका है। यही हाल रहा तो आने वाले समय में भौरों के आवास धीरे-धीरे समाप्त हो जाएंगे और हिमालयी क्षेत्र में होने वाले सुंदर फूलों में परागण की प्रक्रिया न होने से फूल नहीं खिल पाएंगे। देखा जाए तो इन 25 प्रजातियों में से, केवल बी ल्यूकोरम अपने वर्तमान आवास का करीब 63.87 फीसदी खो देगी, लेकिन साथ ही उसे इस बीच 58.26 फीसदी नए उपयुक्त आवास भी मिलेंगे। वहीं भंवरे की प्रजाति बी जेनैलिस के मौजूदा उपयुक्त आवास का करीब 94.59 फीसदी हिस्से पर प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं पांच प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास में वृद्धि का अनुभव करेंगी। वहीं यदि 2070 के लिए जारी पूर्वानुमान को देखें तो भौंरों की सभी प्रजातियों के अनुकूल आवास क्षेत्रों में 5.13 से 100 फीसदी तक की गिरावट आने का अंदेशा है। देखा जाए तो प्रजातियों के अनुकूल आवास क्षेत्र में गिरावट या वृद्धि प्रजातियों पर निर्भर करेगा।
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रिसर्च में यह भी सामने आया है कि 2070 तक 13 प्रजातियां अपने मौजूदा अनुकूल आवास क्षेत्रों में 90 फीसदी से ज्यादा की गिरावट का सामना करेंगी। वहीं 11 प्रजातियां 50 से 90 फीसदी की गिरावट का सामना करेंगी। यदि हिमालय क्षेत्र में इनके उपयुक्त आवास को देखें तो 2070 तक हिमालय का 20 फीसदी से अधिक क्षेत्र केवल दो प्रजातियों के लिए उपयुक्त होगा। वहीं 10 फीसदी से अधिक क्षेत्र केवल दो
प्रजातियों बी लेपिडस और बी जेनैलिस के लिए उपयुक्त रह जाएगा। वहीं चार प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास क्षेत्रों में वृद्धि का अनुभव करेंगी । अध्ययन में जो पूर्वानुमान सामने आए हैं, उनके मुताबिक 2050 तक, हिमालय क्षेत्र में भौंरों की 75 फीसदी से अधिक प्रजातियां उपयुक्त आवास क्षेत्रों में गिरावट का अनुभव करेंगी।
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इनमें से 40 फीसदी से अधिक प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास के 90 फीसदी हिस्से में गिरावट का सामना करेंगी। वहीं 45 फीसदी से अधिक प्रजातियों के पास एक फीसदी से भी कम उपयुक्त आवास क्षेत्र होगा। इतना ही नहीं 2070 तक में स्थिति में सुधार आने के कोई संकेत नहीं है, क्योंकि इस दौरान 85 फीसदी से अधिक प्रजातियां अपने उपयुक्त आवास में गिरावट का सामना करेंगी। वहीं उनमें 40 फीसदी से अधिक को अपने आवास क्षेत्रों में 90 फीसदी गिरावट का सामना करना होगा। वहीं 35 फीसदी से अधिक प्रजातियों के लिए उपयुक्त आवास क्षेत्र सिकुड़ कर एक फीसदी से कम क्षेत्र में रह जाएगा।चूंकि हिमालयी क्षेत्र में भौरों के यह उपयुक्त आवास कई देशों में फैले हुए हैं।
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ऐसे में इनके संरक्षण के लिए इन हिमालयी देशों को मिलकर प्रयास करने चाहिए, ताकि पारिस्थितिक तंत्र के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण इन नन्हे जीवों को बचाया जा सके। लगभग 90% जंगली पौधे और 75% प्रमुख वैश्विक खाद्य फसलें प्रजनन के लिए पशु परागणकों पर निर्भर हैं, और उस काम का बड़ा हिस्सा मधुमक्खियों द्वारा किया जाता है। मधुमक्खियों की घटती आबादी के बढ़ते सबूतों के बावजूद, जंग लगी भौंरा महाद्वीपीय संयुक्त राज्य अमेरिका में केवल दो मधुमक्खियों में से एक है जो वर्तमान में लुप्तप्राय प्रजाति अधिनियम के तहत संरक्षित है। फ्रैंकलिन की भौंरा को 2021 में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध किया गया था लेकिन आखिरी बार 2006 में देखा गया था।
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जलवायु परिवर्तन के कारण भौंरों की संख्या में कमी विशेष रूप से चिंताजनक है क्योंकि वे पहले से ही अन्य तनावों का सामना कर रहे हैं। ‘ यह वास्तव में बहुत निराशाजनक है क्योंकि हम जानते हैं कि मधुमक्खियों के पास कई अन्य समस्याएं हैं। हमने शायद इसके आने का अनुमान लगाया होगा लेकिन यह स्पष्ट रूप से उनकी परेशानियों को बढ़ाता है, और इससे निपटना काफी मुश्किल है, इसका कोई सरल समाधान नहीं है।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)