किल्मोड़ा का अवैध दोहन कर किया करोडों का खेल - Mukhyadhara

किल्मोड़ा का अवैध दोहन कर किया करोडों का खेल

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किल्मोड़ा का अवैध दोहन कर किया करोडों का खेल

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड में कई तरह की वनस्पतियां उत्पन्न होती हैं और इनका उपयोग आयुर्वेदिक दावों में भी होता रहा है। दुनिया भर में बढ़ती डिमांड के कारण इनकी तस्करी भी तेजी से होती रही है और अंतरराष्ट्रीय बाजार में इनकी भारी कीमतों और हाथों-हाथ बिक्री के कारण तस्कर इन पर पहनी निगाह भी रखते हैं। किलमोड़ा भी ऐसी ही वनस्पति है। किलमोड़ा के पौधे की जड़ को औषधि के रूप में उपयोग किया जाता है। इसकी पत्तियां कांटेदार होती हैं और इसकी जड़ को सबसे उपयोगी माना जाता है। इस वनस्पति से छोटे-छोटे फल भी निकलते हैं जो औषधीय गुण वाले होते हैं। लेकिन इसका अधिक उपयोग नुकसान भी कर सकता है। दुनिया भर में किलमोड़ा की 450 प्रजातियां हैं। इस वनस्पति की अधिकतर मौजूदगी एशिया में है। इस जड़ी बूटी के जरिए शुगर की दवाई, आई ड्रॉप, पीलिया और हाई बीपी के दवाई के लिए भी किया जाता है। किलमोड़ा की जड़ से तेल भी निकाला जाता है जो बेहद उपयोगी होता है। करीब 7 किलमोड़ा की लकड़ी से करीब डेढ़ सौ से 200 ग्राम तेल निकलता है। बाजार में दवा कंपनियां करीब ₹600 प्रति किलो तक इस तेल को आसानी से खरीद भी लेती हैं।

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दूसरी तरफ किसानों का मानना है कि इस लकड़ी की कीमत बाजार में ₹6000 प्रति कुंतल तक होती है. किलमोड़े के फल में पाए जाने वाले एंटी बैक्टीरियल तत्व शरीर को कई बींमारियों से लड़ने में मदद देते हैं। दाद, खाज, फोड़े, फुंसी का इलाज तो इसकी पत्तियों में ही है।अगर आप दिनभर में करीब 5 से 10 किलमोड़े के फल खाते रहें, तो शुगर के लेवल को बहुत ही जल्दी कंट्रोल किया जा सकता है। इसके अलावा खास बात ये है कि किलमोड़ा के फल और पत्तियां एंटी ऑक्सिडेंट कही जाती हैं। एंटी ऑक्सीडेंट यानी कैंसर की मारक दवा। किलमोडा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। हालांकि वैज्ञानिकों और पर्यवरण प्रेमियों ने इसके खत्म होते अस्तित्व को लेकर चिंता जताई है। इसके साथ किलमोड़े के तेल से जो दवाएं तैयार हो रही हैं, उनका इस्तेमाल शुगर, बीपी, वजन कम करने,अवसाद, दिल की बीमारियों की रोक-थाम करने में किया जा रहा है। इसके पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं और एक खास मौसम में इस पर बैंगनी फल आते हैं।

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किलमोडा की ताज़ा जड़ों का उपयोग मधुमेह और पीलिया के इलाज के लिए किया जाता है। जड़ों में कुल क्षारीय सामग्री 4% और उपजी में है, 1.95% जिनमें से बेरबेरिन क्रमशः 09 और 1.29% है। किलमोडा (बर्बेरिस एशियाटिक) अर्क ने शक्तिशाली एंटीऑक्सिडेंट गतिविधि को दिखाया जो स्वस्थ दवा और खाद्य उद्योग दोनों में लागू होता है। यह गठिया के इलाज में भी उपयोगी होता हैं7किलमोड़ा के फलों के रस और पत्तियों के रस का इस्तेमाल कैंसर की दवाएं तैयार करने के लिए किया जा सकता है। इस पौधे में एंटी डायबिटिक, एंटी इंफ्लेमेटरी, एंटी ट्यूमर , एंटी वायरल और एंटी बैक्टीरियल तत्व पाए जाते हैं। डायबिटीज के इलाज में इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है। इस पौधे की जडो का रस  पेट दर्द में तुरंत आराम देती है। किलमोडा़ (बरबरिस अरिस्टाटा ):-इसमें एंटी बायोटिक, एंटी ट्यूमर, एंटी इंफ्लेमेटरी ,एंटीबैक्टीरियल, एंटीवायरल गुण होते हैं। मधुमेह,पीलिया,दस्त,मलेरिया ,टाइफाइड,त्वचा व नेत्र के रोगों के लाभदायक। जब वन मंत्री सुबोध उनियाल द्वारा इस सब्जी के परिवहन पर रोक लगाने के करीब एक सप्ताह बाद मंत्री गणेश जोशी ने जड़ी-बूटी अनुसंधान एवं विकास संस्थान को प्रतिबंध हटाने के निर्देश दिए।

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उत्तरकाशी जिले में पेड़ों के हिस्सों की तस्करी की कुछ मीडिया रिपोर्टें आई हैं। वन मंत्री ने मामले की जांच के आदेश दिये हैं। इतना ही नहीं, इस प्रजाति की अवैध तस्करी का मुद्दा राज्यपाल के समक्ष भी उठाया था और कैबिनेट मंत्री से जड़ी-बूटी की तस्करी को रोकने के लिए सहयोग मांगा था। आशंका जताई कि इस पेड़ की प्रजाति की तस्करी के पीछे वन विभाग में स्थानीय स्तर पर बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार व्याप्त हो सकता है और इसलिए, उन्होंने वरिष्ठ वन अधिकारियों द्वारा जांच के आदेश दिए हैं। गौरतलब है कि स्थानीय समाचार पत्रों ने अपनी रिपोर्ट में किल्मोरा पेड़ की जड़ों की तस्करी के पीछे स्थानीय वन अधिकारियों की संलिप्तता का आरोप लगाया था। इसके पौधे कंटीली झाड़ियों वाले होते हैं और एक खास मौसम में इस पर बैंगनी फल आते हैं। पहाड़ के क्षेत्रों में बच्चे इसे बड़े चाव से खाते हैं।

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शोध के अनुसार प्रति 10 ग्राम किलमोड़ा रस में प्रोटीन 6.2 प्रतिशतए कार्बोहाइड्रेट 32.91 प्रतिशत, पॉलीफेनोल 30.47 मिलीग्राम, संघनित टैनिन 7.93 मिलीग्रामए एस्कॉर्बिक एसिड 31.96 मिलीग्रामए बीटा.कैरोटीन 4.53 माइक्रोग्राम तथा लाइकोपीन 10.62 माइक्रोग्राम जैसे तत्व पाये जाते हैं। यह सभी तत्व हमारे शरीर को स्वस्थ्य रखने तथा कयी प्रकार के घातक रोगों शरीर की रक्षा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसलिए लोगों को इसकी उत्पादकता को बढ़ाए रखने पर विचार करना चाहिए। यह जूस इतना लोकप्रिय हो रहा है कि इसकी माँग बाहरी राज्यों से भी आ रही है। स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग, आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कृषि आधारित व्यवसायिक व ओद्योगिक समृद्धिकरण के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि पर्वतीय क्षेत्र से ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोका जा सके और पर्वतीय जनों की जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाया जा सके पहाड़ का काश्तकार किलमोड़ा की झाडिय़ों को नष्ट करता है। जबकि इसके इस्तेमाल से दो फायदे होंगे। खेत के चारों तरफ बाउंड्री वॉल के तौर पर लगाकर जंगली जानवरों के नुकसान से बचा जा सकता है। साथ ही फल बेचकर पैसे मिलेंगे। सदियों से उपेक्षा का शिकार हो रहा ये पौधा बड़े कमाल का है।

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स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षित सदुपयोग, आधुनिक तकनीकों के प्रयोग से कृषि आधारित व्यवसायिक व ओद्योगिक समृद्धिकरण के माध्यम से पर्वतीय क्षेत्र के युवाओं के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना है, ताकि पर्वतीय क्षेत्र से ग्रामीण युवाओं के पलायन को रोका जा सके और पर्वतीय जनों की जीवन शैली में आवश्यक बदलाव लाया जा सकेण् इसलिए लोगों को इसकी उत्पादकता को बढ़ाए रखने पर विचार करना चाहिए।पहाड़ी क्षेत्र के किसान जो जंगली जानकरों तथा आवारा पशुओं से खेती में हो रहे नुकसान से त्रस्त हैं, वह अपने खेतों में बाढ़ के रूप में किलमोड़ा के कटीले पेड़ लगाकर अपनी फसल को बचा सकते हैं। किसान अपने खेतों की बाढ़ में लगायें गये किलमोड़ा से प्राप्त होने वाली जड़ों को बेचकर भी अच्छी आय अर्जित कर सकते हैं, बसर्तें इसके लिए सरकार से अनुमति ली होनी चाहिए।

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उत्तराखण्ड में लोग किल्मोड़ा के जड़ों और तनों का उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं के रूप में प्राचीनकाल से करते आये हैं। राज्य में कई क्षेत्रों में
पाई जाने वाली इस बेश कीमती जड़ी किल्मोड़ा से आंखों की दवा से लेकर डायबिटीज जैसी अनेक गंभीर बीमारियों की दवाये बनाई जाती है। यह जड़ी किसानों के खेतों से लेकर जंगल तक पैदा होती हैं इसके उत्पादन की निगरानी का जिम्मा कई विभागों पर होता है। पता चला है कि जिन किसानों के खेतों में जड़ी उत्पन्न होने का रवन्ना वन व कृषि विभाग के अधिकारियों द्वारा काट कर हेरा फेरी की गई उन्हें इसकी जानकारी तक नहीं है। खैर 25 से 30 हजार टन किल्मोड़ा के अवैध पातन के जरिए विभागीय अधिकारियों द्वारा करोड़ों कमा लिए गए। वन मंत्री का कहना है कि उन्होंने इस मामले की जांच के आदेश दे दिए हैं तथा दोषियों को बक्शा नहीं जाएगा। देखना यह है कि क्या कृषि मंत्री भी इस पर कोई एक्शन लेंगे या नहीं। इसकी जांच कहां तक पहुंच पाती है यह आने वाला समय ही बताएगा लेकिन किल्मोड़ा में करोड़ों का खेला होने के इस मामले के उजागर होने से सरकार की भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस की नीति जरूर सवालों के घेरे में आ गई है। इसके लिए सरकार और राजनेताओं को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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