उत्तराखंड का प्राचीन रघुनाथ मंदिर (Raghunath Temple) - Mukhyadhara

उत्तराखंड का प्राचीन रघुनाथ मंदिर (Raghunath Temple)

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उत्तराखंड का प्राचीन रघुनाथ मंदिर (Raghunath Temple)

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  डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

अयोध्या में भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा समारोह में भगवान की विग्रह प्रतिमा के अभिषेक हेतु देवभूमि उत्तराखंड की 28 पवित्र नदियों का जल अयोध्या भेजा गया है। गंगा, अलकनन्दा, भागीरथी, विष्णु गंगा, मंदाकिनी, यमुना, राम गंगा, गोरी गंगा, काली गंगा, कोसी, पिंडर नदी आदि का जल भगवान रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के समय पूजन विधि में उपयोग किया देवभूमि उत्तराखंड में भगवान राम के एक नहीं बल्कि 18 मंदिर हैं। जिसमें से 10 मंदिर गढ़वाल मंडल में तो आठ मंदिर कुमाऊं मंडल में हैं। देवप्रयाग में जहां ऐतिहासिक रघुनाथ मंदिर है जहां पर भगवान राम ने तपस्या की थी तो वहीं अल्मोड़ा में स्थित रामशिला मंदिर है जहां भगवान राम की चरण पादुका हैं।

गढ़वाल मंडल में भगवान राम के 10 मंदिर हैं। जिसमें से छह मंदिर तो हरिद्वार जिले में ही स्थित हैं। हरिद्वार में भूपत वाला स्थित श्री राम मंदिर लगभग 125 साल पुराना है। इसके साथ ही रूड़की में भी एक राम मंदिर स्थित है। उत्तरकाशी जिले में बड़कोट तहसील के खेर गांव तथा गंगाटाडी में भगवान राम के दो मंदिर हैं। लेकिन इन मंदिरों की स्थापना के बारे में कोई सटीक जानकारी नहीं है। इसके साथ ही रघुनाथ मंदिर भी गढ़वाल मंडल में ही है। जबकि कुमाऊं मंडल में भगवान राम के आठ मंदिर स्थित हैं। कुमाऊं मंडल के नैनीताल जिले में ही तीन राम मंदिर स्थित हैं। जिसमें से एक हल्द्वानी, एक रामनगर और एक गर्मपानी में स्थित है। अल्मोड़ा में चंद्र राजाओं द्वारा स्थापित किया गया राम मंदिर है। इस मंदिर में भगवान राम की चरण पादुकाएं हैं।

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चंपावत जिले में राम के दो प्रमुख मंदिर हैं। इसी तरह बागेश्वर जिले के ठाकुरद्वारा और पिथौरागढ़ जिले के गंगोली में भी भगवान राम का मंदिर मौजूद है। भगवान राम ने अपनी आखिरी तपस्या उत्तराखंड के देवप्रयाग में की थी। ये खूबसूरत जगह अब एक प्रसिद्ध तीर्थस्थल के तौर पर जानी जाती है। देवप्रयाग अलकनंदा-भागीरथी नदी के संगम पर बसा है। देवप्रयाग देवभूमि उत्तराखंड के पंच प्रयागों में से एक है। जिस स्थान पर भगवान राम ने तपस्या की थी वहां पर भव्य मंदिर रघुनाथ मंदिर की स्थापना की गई है। अल्मोड़ा जिले में स्थित रामशिला मंदिर में भगवान राम की चरण पादुकाएं मौजूद हैं। यहां पर भगवान राम के शिला रूपी चरण देखने को मिलते हैं। इस मंदिर की स्थापना राजा रुद्रचन्द ने अल्मोड़ा के मल्ला महल में साल 1588 में करवाई थी। बताया जाता है कि इस मंदिर का इतिहास 400 साल से भी ज्यादा पुराना है। राम भक्तों का आज लंबा इंतजार खत्म हो गया है।

प्राण प्रतिष्ठा के बाद लोग अयोध्या में राम मंदिर में भगवान राम के दर्शन घर बैठे भी कर रहे हैं।वहीं पूरा देश के साथ ही देवभूमि उत्तराखंड राममय है और लोग रामभक्ति में सराबोर हैं। उत्तराखंड में तमाम जगहों से कुछ ऐसी ही तस्वीरें सामने आई है। लोगों ने जगह-जगह एलईडी स्क्रीन पर रामलला प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम को देखा।रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर राज्य में आज छुट्टी घोषित की गई है।हालांकि इस मौके पर अस्पताल और आपात सेवाएं सुचारू हैं।

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देवप्रयाग के प्राचीन रघुनाथ मंदिर का उल्लेख न केवल केदारखंड में मिलता है, बल्कि इतिहासकार ह्वेनसांग ने भी अपने यात्रा वृतांत में इसका उल्लेख किया है। मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल के प्राचीन पंवार शासकों के कई पुराने ताम्र पत्रों में भी मंदिर का उल्लेख है। उत्तराखंड के मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है। उत्तराखंड के सभी जिलों के कई मंदिरों में सुंदर कांड का भी आयोजन किया है। महिलाओं व स्थानीय लोगों ने कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर भाग लिया।

देवप्रयाग जहां भागीरथी और अलकनंदा नदी मिलकर गंगा नाम धारण करती हैं। इस संगम तट पर आदि गुरु शंकराचार्य ने अपने उत्तराखंड भ्रमण के दौरान लंबा प्रवास किया और इस स्थान पर पूर्व से भगवान श्री रघुनाथ जोकि रावण वध के बाद रावण के एक ब्राह्मण होने के कारण ब्राह्मण हत्या के अभिशाप से ग्रस्त थे। उसकी मुक्ति के लिए इस स्थान पर भगवान श्री रामचंद्र जी ने कठोर तप किया, यहां भगवान की मूर्ति अकेले ही है यहां न सीता माता है न हनुमान है। हनुमान जैसे सच्चे सेवक कहां साथ छोड़ते हैं। वह प्रभु की इच्छा के बगैर यहां देवप्रयाग भी पहुंचे और जिस स्थान पर भगवान राम तपस्या में लीन थे उसके ठीक पीछे छिप कर बैठ गए इसीलिए रघुनाथ मंदिर देवप्रयाग के ठीक पीछे
हनुमान जी का मंदिर भी है।

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द्रविड शैली में बना रघुनाथ मंदिर, देवप्रयाग में 11 वीं शताब्दी के प्रारंभ में ही यहां विशिष्टा द्वैतवाद के जनक रामानुजाचार्य जी जिनकी भक्ति परंपरा में रामानंद और कबीर दास जैसे संत हुए,ने भी कुछ समय यहां रुक कर तपस्या की और भगवान श्री रघुनाथ जी, देवप्रयाग, संगम तथा
देवभूमि उत्तराखंड के आध्यात्मिक महत्व का वर्णन करते हुए 11 पदों की रचना की लेकिन करोड़ों धर्मावलम्बियों में से शायद कुछ ही को पता होगा कि अयोध्या के अलावा उत्तर भारत का पहला और प्राचीनतम राम मंदिर उत्तराखण्ड के टिहरी जिले के देवप्रयाग में है। भारत की सबसे पवित्र नदी गंगा के उद्गम पर बना यह रधुनाथ मंदिर जम्मू के डोगरा शासकों द्वारा निर्मित रघुनाथ मंदिर से भी कई सदियों पुराना है। यह ऐसा मंदिर है जिसका उल्लेख न केवल पुराणों और चीनी यात्री ह्वेनसांग के यात्रा वृतांत में है बल्कि इसका प्रमाणिक इतिहास मंदिर परिसर के शिलालेखों और गढ़वाल राज्य के प्राचीन पंवार शासकों के कई सदियों पुराने ताम्र पत्रों में भी दर्ज है।

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ईटी एटकिंसन ने तो हिमालयन गजेटियर में अल्मोड़ा में भी रामचन्द्र मंदिर का उल्लेख किया है। लेकिन बिडम्बना यह कि पौराणिक काल के इन राम मंदिरों का नामलेवा भी देवप्रयाग वासियों के अलावा कोई नहीं मिलता है। जम्मू और उत्तराखण्ड के अलावा देश के अन्य हिस्सों में और खास कर दक्षिण में भी कुछ राम मंदिर हैं जो कि देवप्रयाग के रघुनाथ मंदिर की तरह भूले बिसरे नहीं हैं। इमनें राम राजा मंदिर, मध्य प्रदेश, सीता रामचन्द्रस्वामी मंदिर, तेलंगाना, रामास्वामी मंदिर, तमिलनाडु, कालाराम मंदिर, नासिक, महाराष्ट्र त्रिप्रयार राम मंदिर, केरल, राम मंदिर, भुवनेश्वर, ओडिशा और कोदंडाराम मंदिर, कर्नाटक, श्रीराम तीर्थ अमृतसर और राम मंदिर हावड़ा पश्चिम बंगाल आदि शामिल हैं।

(यह लेखक के निजी विचार हैं)

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