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डॉक्टर्स डे विशेष (Doctors’ Day): बीमारी में सबसे पहले डॉक्टर ही याद आते हैं, उनकी सेवा और संकल्पों को करें ‘धन्यवाद’

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शंभू नाथ गौतम

एक ऐसा ‘पेशा’ जिससे जुड़े लोगों को भगवान का दर्जा दिया जाता है। जब किसी को कोई बीमारी हो जाती है, तब उसे डॉक्टर याद आते हैं। मरीजों से इनका सीधा ही संबंध रहता है।

आज 1 जुलाई है हम बात कर रहे हैं डॉक्टर्स (चिकित्सक) की। हर साल आज के ही दिन देश में डॉक्टर्स डे (Doctors’ Day) मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य चिकित्सा क्षेत्र में डॉक्टरों के अमूल्य योगदान के प्रति सम्मान प्रकट करना है। डॉक्टरों के इसी सेवा भाव, जीवन रक्षा के लिए किए जा रहे प्रयत्नों और उनके काम को सम्मान देने के लिए हर साल एक जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। ये दिन डॉक्टरों को धन्यवाद देने का होता है।

कोरोना संकटकाल में देश के डॉक्टरों ने मरीजों की जान बचाने में अपनी जान की भी परवाह नहीं की। कोरोना काल में डॉक्टर्स ने जिस तरह से अपनी जिम्मेदारी निभाई और लाखों लोगों की जान बचाई, देशवासी उसे कभी नहीं भूल पाएंगे। हजारों डॉक्टर अपने घर छोड़कर अस्पतालों में मरीजों की सेवा करने में लगे रहे। डॉक्टर लोगों को जीवनदान देते हैं। ऐसे में लोग डॉक्टर्स (Doctors’ Day) को धरती पर इंसान के रूप में पूजते हैं।

बता दें कि हर साल, राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस का उत्सव एक समर्पित विषय पर केंद्रित होता है जो हमें एक समान और समकालिक संचार में मदद करता है।

इस बार राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस (Doctors’ Day) की थीम ‘फ्रंट लाइन पर पारिवारिक डॉकटर है’। हमारे देश के डॉक्टरों ने दुनिया भर में अपनी सेवा से अलग पहचान बनाई है। आज दुनिया के अधिकांश देशों में भारतीय चिकित्सक मिल जाएंगे। राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस पहली बार 1 जुलाई 1991 को मनाया गया था।

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देश के महान चिकित्सक बिधान चंद्र रॉय के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है डॉक्टर्स डे (Doctors’ Day)

केंद्र सरकार ने साल 1991 में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाने की शुरुआत की थी। डॉक्टर्स डे देश के महान चिकित्सक डॉ बिधान चंद्र रॉय के जन्म दिवस के मौके पर मनाया जाता है।

डॉ. बिधान चंद्र रॉय पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री भी थे। उन्होंने लोगों के लिए अपने जीवन का योगदान दिया, कई लोगों का इलाज किया और लाखों लोगों को प्रेरित किया।

इसके अलावा, वह महात्मा गांधी के निजी चिकित्सक भी थे।‌ 1 जुलाई 1882 को पटना के बांकीपुर में जन्मे डॉ. रॉय ने इंग्लैंड में पढ़ाई की थी। 1911 में भारत लौटने के बाद कोलकाता में नए हॉस्पिटल शुरू किए। वे 1948 से 1962 तक लगातार 14 साल पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री रहे। 1961 में उन्हें भारत सरकार ने भारत रत्न से सम्मानित किया। 1962 में जन्मदिन पर दिल का दौरा पड़ने से उनका डॉ बिधान चंद्र रॉय का निधन हो गया।

वर्ष 1976 में चिकित्सा, विज्ञान, सार्वजनिक मामलों, दर्शन, कला और साहित्य के क्षेत्रों में काम करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्ति को पहचानने के लिए उनकी स्मृति में बीसी रॉय राष्ट्रीय पुरस्कार (Doctors’ Day) की स्थापना की गई थी।

 

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