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होलाष्टक शुरू : होलाष्टक (Holashtak) से ही रंगीला हो जाता है समूचा ब्रज, आज मथुरा के बरसाना में खेली जा रही लड्डू मार होली

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होलाष्टक शुरू : होलाष्टक (Holashtak) से ही रंगीला हो जाता है समूचा ब्रज, आज मथुरा के बरसाना में खेली जा रही लड्डू मार होली

मुख्यधारा डेस्क

आज से होलाष्टक शुरू हो गए हैं। यह 8 दिनों तक रहते हैं। लेकिन इस बार होलाष्टक 9 दिन 27 फरवरी से लेकर 8 मार्च तक रहेंगे। होलाष्टक के शुरू होते ही होली की भी शुरुआत मानी जाती है। वहीं आज से मथुरा में होली की शुरुआत हो गई है। मथुरा के बरसाना में लड्डू मार होली खेली जा रही है। होलाष्टक के दिनों में विवाह, गृह प्रवेश, मुंडन जैसे शुभ कर्म नहीं किए जाते हैं। इन दिनों में पूजा-पाठ के साथ ही ग्रंथों का पाठ करने की भी परंपरा है। इसके साथ ही जरूरतमंद लोगों को दान-पुण्य भी जरूर करें।

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होलाष्टक में विष्णु पुराण और भागवत कथा जैसे ग्रंथों का पाठ करना चाहिए या इनका पाठ सुनना चाहिए। विष्णु पुराण में विष्णु जी की महिमा बताई गई है, जबकि भागवत कथा में विष्णु जी के अवतार श्रीकृष्ण की कथा है। इन कथाओं का पाठ करें और इनमें बताए गए संदेशों को जीवन में उतारने का संकल्प लेना चाहिए। इन ग्रंथों का मूल संदेश यह है कि हमें धर्म का पालन करते हुए कर्म करना चाहिए और फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। धर्म-कर्म करने वाले लोगों को भगवान की कृपा से सभी सुख प्राप्त होते हैं। जो लोग अधर्म करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा नहीं मिलती है।

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होलाष्टक शब्द होली और अष्टक दो शब्दों से मिलकर बना है। जिसका भावार्थ होता है होली के आठ दिन। होलाष्टक फाल्गुन शुक्ल पक्ष अष्टमी से शुरू होकर फाल्गुन शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तक रहता है। अष्टमी तिथि से शुरू होने से भी इसे होलाष्टक कहा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार होलिका दहन से 8 दिन पहले तक प्रह्लाद को उनके पिता हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रताड़ित किया था। प्रह्लाद को ये यातनाएं विष्णु भक्ति छुड़ाने के लिए दी गई थीं जिस कारण से भी होलाष्टक के दिनों में किसी भी प्रकार का मंगलकारी कार्य नहीं किया जाता। ऐसा माना जाता है कि इस समय नकारात्मक ऊर्जा हावी रहती है और इन 8 दिन में हर दिन अलग-अलग ग्रह अस्त और रुद्र अवस्था में होते हैं। इसके अतिरिक्त, तांत्रिक विद्या की साधना भी इस अवधि में ज्यादा होती है।

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मथुरा-वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में 8 दिनों तक होली की रहती है धूम, लाखों लोग देश-विदेश से आते हैं

मथुरा-वृंदावन की होली केवल देश ही बल्कि पूरे विश्व में मशहूर मानी जाती है। दुनिया भर से लाखों लोग इस होली को देखने के लिए आते हैं। बरसाना में सबसे पहले आज 27 फरवरी को लड्डू की होली हो रही है। यह मथुरा से लगभग 50 किमी दूर है। लड्डू होली में उत्सव के दौरान एक दूसरे पर लड्डू फेंके जाते हैं।

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बता दें की बरसाना के लाडली जी मंदिर में लड्डू मार होली खेली जा रही है। पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में राधा रानी के पिता वृषभानु जी नंदगांव में श्रीकृष्ण के पिता को होली खेलने का न्योता देते हैं। बरसाने की गोपियां होली का आमंत्रण पत्र लेकर नंदगांव जाती है। जिसे कान्हा के पिता नंदबाबा सहहर्ष स्वीकार करते हैं। एक पुरोहित के जरिए न्योता स्वीकृति पत्र बरसाना पहुंचाया जाता है। बरसाने में पुरोहित का आदत सत्कार किया जाता है। इसके अलावा लट्ठमार होली 28 फरवरी को बरसाना में होगी। लठ का अर्थ है ‘छड़ी’ और मार का अर्थ है ‘पीटना’।

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लठमार होली उत्तर प्रदेश के ब्रज में सबसे लोकप्रिय उत्सव है। इस दिन महिलाएं पुरुषों को लट्ठ मारकर होली मनाती है जबकि पुरुष ढाल के जरिए लट्ठ से बचने के प्रयास करते हैं। बरसाना की होली के बाद 1 मार्च को नंदगांव में लठमार होली का आयोजन होगा। इसके बाद तीन मार्च को रंगभरी एकादशी के अवसर मथुरा और वृंदावन में फूलों की होली होगी। यह मुख्य तौर पर यहां के बांके बिहारी मंदिर में मनायी जाती है जिसे दुनिया में भगवान कृष्ण का सबसे पवित्र और सबसे प्रसिद्ध मंदिर माना जाता है। वृंदावन स्थित बांके बिहारी मंदिर में ठाकुरजी अपने भक्तों संग होली खेलेंगे। इसके साथ ही इस मौके पर देश-विदेश से आए श्रद्धालु-पर्यटक वृंदावन की परिक्रमा भी करेंगे, जिसमें जमकर अबीर-गुलाल उड़ेगा। सुबह से शुरू होकर देर रात तक परिक्रमा का सिलसिला जारी रहता है। वहीं रंगभरनी एकादशी के मौके पर ही मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर भी होली खेली जाएगी। चार मार्च को गोकुल में छड़ी मार होली का आयोजन किया जाएगा।

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मान्यता है कि श्रीकृष्ण ने गोकुल में अपने बचपन के दिन बिताए थे। इस प्रकार वहां के उत्सवों में कृष्ण को एक बच्चे के रूप में माना जाता है। 7 मार्च को होलिका दहन का आयोजन किया जाएगा। 8 मार्च को पूरे देश में होली का त्योहार मनाया जाएगा।

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