…तो क्या अक्टूबर आखिर तक उत्तराखंड को लेकर आ सकता है नेतृत्व परिवर्तन का संदेश!!! 

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Travindra ani
भारतीय जनता पार्टी संघ और सरकार द्वारा करवाए गए विभिन्न सर्वे मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की पेशानी पर  बल डालते हुए नजर आ रहे हैं।  उदाहरण के लिए आम जनता की नाराजगी के साथ-साथ सरकार के मंत्रियों, विधायकों का असंतोष भी सामने देखने को  मिल रहा है। दो दिन पहले कैबिनेट मंत्री यशपाल आर्य इस्तीफे की धमकी दे चुके हैं। कैबिनेट के खाली तीन पद का लॉलीपॉप दिखाकर त्रिवेंद्र रावत हर दिन कुर्सी के डिफेंस में लगे हुए हैं।
हालात यह हैं कि यूं तो सार्वजनिक रूप से भाजपा का कोई भी विधायक अपनी सरकार के खिलाफ कुछ बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं, लेकिन अंदरखाने अधिकांश नाखुश बताए जा रहे हैं। जब तक उनकी ना खुशी सार्वजनिक भी  होती रहती हैं। भाजपा के ताजा सर्वे में जो बात असंतोष के रूप में प्रमुख रूप से सामने आई है, उनमें त्रिवेंद्र रावत सरकार के कार्यकाल के दौरान भारी मात्रा में अवैध भर्तियों, कानून व्यवस्था, लोकायुक्त की फाइल ठंडे बस्ते में डालना, स्थानांतरण एक्ट को दस प्रतिशत तक सीमित करना, मुख्यमंत्री के ओएसडी भाई और नजदीकियों के स्टिंग ऑपरेशन प्रमुख रूप से हैं। विधायकों द्वारा मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष में की गई भारी कटौती भी सर्वे में असंतोष का कारण बनकर उभरी है। शराब से संबंधित जिन फैसलों को लेकर सत्ता में आने को लेकर भाजपा मुखर थी, आज त्रिवेंद्र रावत सरकार में शराब की फैक्ट्री खुलना भी असंतोष का कारण बताया जा रहा है।
बेलगाम नौकरशाही द्वारा दिखाए जा रहे जलवे भी सर्वे में प्रमुख रूप से उभरकर सामने आए हैं। विगत कुछ समय से ऐसे कई उदाहरण देखने को मिले, जब हाईकमान ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भारी नाराजगी दिखाई। आराकोट में जिस दिन भीषण आपदा में दर्जनों लोग मारे गए, उस दिन त्रिवेंद्र रावत वेंटिलेटर पर लेटे अरुण जेटली से मिलने गए हुए थे।
बाद में अपने बचाव में वे गृह मंत्री से भी मिले और उन्होंने राहत की मांग की, किंतु दो दिन बाद खुद ही मुख्यमंत्री अपनी बात से पलट गए और उन्होंने घोषणा की कि आराकोट में आई आपदा को लेकर उन्हें किसी प्रकार की केंद्रीय सहायता की आवश्यकता नहीं है। टिहरी के कंगसाली में १० बच्चों की मृत्यु पर सरकार द्वारा की जा रही हीलाहवाली के बाद खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मृतकों के आश्रितों के लिए केंद्र से दो-दो लाख रुपए की धनराशि का प्रावधान करवाया।
विगत ढाई वर्षों में डबल इंजन की सरकार होने के बावजूद जिस प्रकार त्रिवेंद्र रावत सरकार प्रदेश में अपेक्षित रूप से हाईकमान की अपेक्षा पर खरे नहीं उतर पा रहे हैं, उससे हाईकमान में भारी नाराजगी बताई जा रही है। भाजपा द्वारा करवाए गए सर्वे के बाद मुख्यमंत्री की टीम ने बचाव में ताबड़तोड़ बैटिंग की है। गोदी मीडिया लोगों से बकायदा खबरें छपवाई जा रही है कि उत्तराखंड में कोई नेतृत्व परिवर्तन नहीं होने जा रहा है। गोदी मीडिया के ये लोग एक ओर स्वयं नेतृत्व परिवर्तन की खबरों को नकार रहे हैं, वहीं दूसरी ओर अपनी खबरों में अजय भट्ट, रमेश पोखरियाल निशंक, विजय बहुगुणा तक के नामों का जिक्र भी कर रहे हैं। आखिरकार यह कैसे संभव हो कि खुद ही खंडन कर रहे हैं और खुद ही संभावितों के नाम भी बता रहे हैं।
विश्वस्त सूत्रों के अनुसार ऐसे इनपुट आ रहे हैं कि हरियाणा, झारखंड व महाराष्ट्र के चुनाव परिणाम के बाद भाजपा हाईकमान उत्तराखंड पर फैसला करने का मन बना रही है। ऐसे में अब देखना यह है कि अक्टूबर 2019 के अंत में  उत्तराखंड की सियासी हवा किस दिशा को बहती है!!!
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