नरसंहार (narsanhar) के 33 साल : लोकतंत्र की बहाली के लिए आंदोलित नागरिकों पर बरसाईं थी गोलियां, मारे गए थे हजारों लोग  - Mukhyadhara

नरसंहार (narsanhar) के 33 साल : लोकतंत्र की बहाली के लिए आंदोलित नागरिकों पर बरसाईं थी गोलियां, मारे गए थे हजारों लोग 

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शंभू नाथ गौतम

भारत का पड़ोसी देश चीन कई देशों के लिए तो खतरनाक है ही साथ ही भारत के लिए भी सिरदर्द बना हुआ है। चीन को ‘ड्रैगन’ के नाम से भी जाना जाता है। इस देश की दमनकारी नीतियों से श्रीलंका, हॉन्गकोंग, तिब्बत, नेपाल समेत कई देश है जो चंगुल में फंसे हुए हैं।

यह देश अपने विस्तारवादी नीतियों से भारत को भी 60 वर्षों से तनाव देता आ रहा है। चीन की कम्युनिस्ट सरकार की कठोर नीतियों से जनता भी पूरी तरह आजाद नहीं है। अभी 2 साल पहले चीन में कोरोना संकट काल के दौरान कई ऐसी तस्वीरें आईं थीं जो सरकार की दमनकारी नीतियों का हाल बयां कर गई। आज 4 जून है ।

आज यह तारीख चीन में हुए विश्व के सबसे बड़े ‘नरसंहार’ (narsanhar) की याद दिलाती है। 33 साल पहले 4 जून 1989 को चीन की राजधानी बीजिंग के ‘थियानमेन’ चौक पर लोकतंत्र समर्थकों ने सबसे बड़ा विरोध प्रदर्शन किया था। विरोध को दबाने के लिए चीनी सरकार के आदेश पर हुई सैन्य कार्रवाई में 10 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी।

बता दें कि इस विरोध प्रदर्शन की शुरुआत अप्रैल 1989 में चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के उदारवादी, सुधारवादी नेता हू याओबांग की मौत के बाद हुई थी। याओबांग चीन के रुढ़िवादियों और सरकार की आर्थिक, राजनीतिक नीतियों के विरोध में थे और हारने के कारण उन्हें हटा दिया गया था। छात्रों ने उन्हीं की याद में एक मार्च आयोजित किया था। चीन की राजधानी बीजिंग के थियानमेन चौक पर छात्रों के नेतृत्व में विशाल विरोध प्रदर्शन शुरू हुआ। ये सभी छात्र चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ एकजुट हुए और देश में लोकतंत्र बहाल करने की मांग कर रहे थे।

छात्र, कई सप्ताह से इस चौक पर प्रदर्शन कर रहे थे। चीन की कम्युनिस्ट सरकार के खिलाफ छात्रों का गुस्सा इतना बढ़ गया कि उसने एक आंदोलन का रूप ले लिया। थियानमेन चौक पर तीन और चार जून, 1989 को सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू हुआ। प्रदर्शन को देखकर ऐसा लगने लगा था कि चीन में नए लोकतंत्र की स्थापना होने जा रही है, लेकिन सरकार के तानाशाही रवैये से पूरे दुनिया को हिला कर रख दिया था। लेकिन इस प्रदर्शन का जिस तरह से हिंसक अंत हुआ, वो चीन के इतिहास में कभी नहीं हुआ था। चार जून 1989 को चीन में लोकतंत्र की मांग को लेकर थियानमेन चौक जाने वाली सड़कों पर एकत्र हुए छात्रों और कार्यकर्ताओं पर चीनी सेना ने भीषण बल प्रयोग किया ।

आंदोलन को कुचलने के लिए चीनी सरकार ने सड़कों पर उतार दिए थे टैंक और सेना

सेना ने आंदोलन को कुचलने के लिए टैंक उतार दिए थे। हजारों की संख्या में छात्र और मजदूर उस रात चौक से जाने को तैयार नहीं थे। वहीं सेना के पास सरकार के आदेश को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। चीनी सेना ने बंदूकों और टैंकरों से अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी और शांतिपूर्वक प्रदर्शन कर रहे हजारों नागरिक मारे गए।

एक रिपोर्ट के मुताबिक इस सैन्य कार्रवाई में सड़कों पर करीब 10 हजार से अधिक लोगों की मौत हुई थी। दो साल पहले सार्वजनिक हुए ब्रिटिश खुफिया राजनयिक दस्तावेज में इस घटना का पूरा ब्योरा दर्ज है। इसमें बड़ी संख्या में छात्र और मजदूर भी शामिल थे।

पूरी दुनिया में चीन की दमनकारी नीतियों का खुलकर हुआ था विरोध

इस घटना को लेकर पूरी दुनिया में चीन सरकार की काफी आलोचना हुई थी, लेकिन चीनी प्रशासन और सरकार इस कदम को सही ठहराता है। आज भी चीनी सरकार थियानमेन चौक पर प्रदर्शनकारियों पर 1989 में की गई कार्रवाई को सही नीति करार देती है।

चीन का कहना था कि वह घटना एक राजनीतिक अस्थिरता थी और केंद्र सरकार ने संकट को रोकने के लिए कदम उठाए, जो एक सही नीति थी। वहीं लाखों लोकतंत्र समर्थक चीन में हर साल 4 जून को शोक दिवस के रूप में मनाते हैं। थियानमेन चौक पर हजारों लोग इकट्ठा होकर लोकतंत्र के बहाली के लिए अपनी जान गंवाने वाले लोगों को श्रद्धांजलि देते हैं।

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