इमरजेंसी (Emergency) के 47 साल : 21 महीनों तक नागरिकों की आजादी कैद में रही, खत्म कर दिए गए थे मौलिक अधिकार - Mukhyadhara

इमरजेंसी (Emergency) के 47 साल : 21 महीनों तक नागरिकों की आजादी कैद में रही, खत्म कर दिए गए थे मौलिक अधिकार

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शंभू नाथ गौतम

लोकतंत्र के लिए 25 जून एक ऐसी तारीख है जो कभी भुलाई नहीं जा सकती है। आज से 47 साल पहले 25-26 जून की रात 1975 में इंदिरा सरकार ने देश में आपातकाल (इमरजेंसी)(Emergency) लगाई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल की घोषणा के साथ ही सभी नागरिकों के मौलिक अधिकार खत्म कर दिए गए थे। अभिव्यक्ति का अधिकार ही नहीं, लोगों के पास जीवन का अधिकार भी नहीं रह गया था। प्रेस सेंसरशिप, नसबंदी, दिल्ली के सौंदर्यीकरण के नाम पर जबरन झुग्गियों को उजाड़ा जाना और कई ऐसे फैसले रहे, जिसकी वजह से भारत के आपातकाल(Emergency) को देश का सबसे काला दिन कहा जाता है।

पूरे देश में अफरा-तफरी का माहौल था। इंदिरा गांधी के आपातकाल(Emergency) के दौरान जुल्म और ज्यादतियों के खिलाफ आवाज उठाने वाले नेताओं से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं तक को जेल में डाल दिया गया था। जेलों में जगह नहीं बची थी, लेकिन आपातकाल के विरोध में आवाज बुलंद करने वालों के हौसले बचे हुए थे और उन्होंने इस काम को बखूबी किया है।

इसी का नतीजा था कि 21 महीने के बाद 21 मार्च 1977 को देश से आपातकाल(Emergency) हटा लिया गया। देश की जनता ने कुछ ही महीनों के बाद वोट देने की अपनी ताकत से इंदिरा गांधी को सत्ता से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी के तानाशाही रवैए के खिलाफ आवाज उठाने वालों में जयप्रकाश नारायण प्रमुख नेता बनकर उभरे थे।

इसके अलावा राज नारायण, अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी, जॉर्ज फर्नांडिस, चौधरी चरण सिंह, मोरारजी देसाई, नानाजी देशमुख, वीएम तारकुंडे, एच डी देवेगौड़ा, अरुण जेटली, राम विलास पासवान, डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी, शरद यादव, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे नेताओं को इंदिरा गांधी ने जेल में डलवा दिया था। हालांकि, बाद में इन्हीं नेताओं ने कांग्रेस को सत्ता से उखाड़ फेंका।

आइए जानते हैं आपातकालीन (Emergency) इंदिरा सरकार ने क्यों लगाया

12 जून 1970 को आपातकाल (Emergency) देश में लगाने की उल्टी गिनती शुरू हो गई थी

देश में इंदिरा सरकार के इमरजेंसी(Emergency) लगाने का मुख्य कारण इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले को माना जाता है। आपातकाल की नींव 12 जून 1975 को ही रख दी गई थी। इस दिन ‘इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को रायबरेली के चुनाव अभियान में सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करने का दोषी पाया था और उनके चुनाव को खारिज कर दिया था, इतना ही नहीं, इंदिरा पर छह साल तक चुनाव लड़ने पर और किसी भी तरह के पद संभालने पर रोक भी लगा दी गई थी’।

बता दें कि राज नारायण ने वर्ष 1971 में रायबरेली में इंदिरा गांधी के हाथों चुनाव हारने के बाद मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट में दाखिल कराया । जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने यह फैसला सुनाया था। हालांकि 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी। एक दिन बाद जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा के इस्तीफा देने तक देश भर में रोजाना प्रदर्शन करने का आह्वान कर दिया।

उसके बाद देश भर में इंदिरा गांधी के खिलाफ हड़तालें, विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गए। जय प्रकाश नारायण, मोरारजी देसाई सहित कुछ नेताओं के नेतृत्व में सड़क पर उतर कर इंदिरा सरकार के खिलाफ प्रदर्शन शुरू कर दिया। इन विपक्षी नेताओं के भारी दबाव के आगे भी इंदिरा आसानी से सिंहासन खाली करना नहीं चाहती थीं।

दूसरी ओर इंदिरा के पुत्र संजय गांधी कतई नहीं चाहते थे कि उनकी मां के हाथ से सत्ता जाए। उधर विपक्ष सरकार पर दबाव बना रहा था। आखिरकार इंदिरा गांधी ने 25 जून की रात देश में आपातकाल (Emergency) लागू करने का फैसला लिया। आधी रात इंदिरा ने तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से आपाताकाल के फैसले पर दस्तखत करवा लिए। उसके बाद देश में आपातकाल घोषित कर दिया गया था।

आपातकाल (Emergency) में विपक्षी नेताओं ने इंदिरा गांधी के खिलाफ देश भर में भड़का दिया था गुस्सा

देशभर में विपक्षी नेताओं और जनता के बीच आपातकाल (Emergency) को लेकर गुस्सा पूरे चरम पर था। ‘इंदिरा सरकार के विरोध में लोगों का आक्रोश बढ़ता जा रहा था। इंदिरा गांधी भी अब समझने लगी थी कि देश में इमरजेंसी बहुत दिनों तक थोपी नहीं जा सकती है, आखिरकार 21 माह के बाद 21 मार्च 1977 को देश से इमरजेंसी खत्म कर दी गई। उसके बाद धीरे-धीरे विपक्षी नेताओं को जेल से रिहा भी कर दिया गया।

वर्ष 1977 में देश एक बार फिर से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गया। ‘देश की जनता का गुस्सा देख इंदिरा भी इस बात को जान रही थी कि इस बार सत्ता में वापसी आसान नहीं होगी’।

आपातकाल के दौरान जयप्रकाश नारायण (जेपी) सबसे ‘बड़े नेता’ के रूप में उभरकर सामने आए। उस दौरान इंदिरा सरकार के खिलाफ जेपी के चलाए गए आंदोलन को आज भी लोग नहीं भूले हैं। जेपी की लड़ाई निर्णायक मुकाम तक पहुंची, इंदिरा को सिंहासन छोड़ना पड़ा।

मोरारजी देसाई की अगुवाई में जनता पार्टी का गठन हुआ। 1977 में फिर आम चुनाव हुए, इन चुनाव में कांग्रेस बुरी तरह हार गई थी। इंदिरा खुद रायबरेली से नहीं जीत सकीं । ‘देश में जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई 80 साल की उम्र में प्रधानमंत्री बने, ये आजादी के तीस साल बाद बनी पहली गैर कांग्रेसी सरकार थी।

जेपी (जयप्रकाश नारायण) के प्रयासों से सभी एकजुट होकर जनता पार्टी ने केंद्र में सरकार बनाई। जेपी ने जिस उद्देश्य सरकार बनाई थी वह पूरा नहीं हुआ। जयप्रकाश ने आपस में ही कई बड़े नेताओं में खींचतान शुरू हो गई। इमरजेंसी (Emergency) के सबसे बड़े नायक के रूप में उभरे जेपी निराश हो गए। आपातकाल के खिलाफ पूरे आंदोलन का मुख्य चेहरा रहे, इसीलिए इन्हें जेपी आंदोलन के जनक के नाम से भी जाना जाता है।

1974 से लेकर 25 जून 1975 तक देश में किसान और छात्रों का आंदोलन को एक नया मुकाम दिया। जेपी की राजनीतिक कुशलता थी कि उन्होंने समाजवादी और दक्षिणपंथी नेताओं को एकजुट कर इंदिरा गांधी के खिलाफ आंदोलन चलाया। आखिरकार जयप्रकाश नारायण का 8 अक्टूबर 1979 को निधन हो गया।

देश में इमरजेंसी (Emergency) को आज 47 साल पूरे हो गए हैं, लेकिन अभी भी देशवासियों के जेहन में लोकतंत्र में उस काले अध्याय की भयावह यादें ताजा हैं।

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