STSS: जानलेवा बैक्टीरिया से डरा जापान, पीड़ित मरीज की 48 घंटे में ही हो जाती है मौत, जानिए क्या है यह दुर्लभ और खतरनाक बीमारी
मुख्यधारा डेस्क
मौजूदा युग में कई चीजें उल्टी-पुल्टी हो रही हैं। बात की शुरुआत आज गर्मी से करेंगे। इस बार किसी ने सोचा भी नहीं होगा कि प्रचंड गर्मी पूरे उत्तर भारत में कहर बरपा देगी। मैदानी जिलों के अलावा पहाड़ भी इस बार तप रहे हैं। एक महीने से अधिक का समय हो गया है गर्मी के तेवर बरकरार हैं। इस बार भारत में हुए मौसम परिवर्तन को लेकर वैज्ञानिक भी हैरान हैं। अब बात को आगे बढ़ाते हैं। गर्मी के अलावा आज तमाम देशों में ऐसी दुर्लभ बीमारी भी सामने आ रही है, जिसे दुनिया टेंशन में है। ऐसे ही एक और खतरनाक और जानलेवा बैक्टीरिया जापान देश में कहर बरपा रहा है। बीमारी का नाम है स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (STSS)।
यह एक रेयर हेल्थ कंडीशन है, जो विषाक्त पदार्थ यानी टॉक्सिन्स पैदा करने वाले बैक्टीरियल ग्रुप स्ट्रेप्टोकोकल के कारण होती है। यह बैक्टीरिया हमारे मांस को खाना शुरू कर देता है और बहुत जल्द बॉडी ऑर्गन्स को डैमेज कर देता है। इस रेयर हेल्थ कंडीशन ने जापान में कहर बरपा रखा है। सबसे डरावनी बात ये है कि इससे पीड़ित शख्स आमतौर पर 48 घंटे के अंदर मर जाता है। इसका डेथ रेट भी 30% के करीब है।
टोक्यो महिला चिकित्सा विश्वविद्यालय में संक्रामक रोगों के प्रोफेसर केन किकुची ने ब्लूमबर्ग को बताया, अधिकांश मौतें 48 घंटों के भीतर हो जाती हैं। सुबह जैसे ही मरीज को पैर में सूजन दिखती है, दोपहर तक यह घुटने तक फैल सकती है और मरीज की मौत हो सकती है। लोगों से हाथ की स्वच्छता बनाए रखने और किसी भी खुले घाव का उपचार करने का आग्रह किया गया है। ऐसे मरीज जिनकी आंतों में ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस (GAS) होता है, जो मल के माध्यम से हाथों को दूषित कर सकता है।
स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम (STSS) एक दुर्लभ लेकिन गंभीर जीवाणु संक्रमण है। यह तेजी से विकसित होता है और जीवन के लिए खतरा बन जाता है। बैक्टीरिया गहरे ऊतकों और रक्तप्रवाह में फैल जाता है और कुछ विषैले पदार्थ छोड़ता है, जिससे आघात और अंग विफलता की स्थिति पैदा हो सकती है।
स्ट्रेप्टोकोकल टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम को अक्सर मांस खाने वाले बैक्टीरिया” से जोड़ा जाता है, क्योंकि यह ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस (जीएएस) के गंभीर संक्रमण के कारण हो सकता है, जिससे संक्रमण तेजी से फैल सकता है और मांसपेशियों, वसा और त्वचा सहित कोमल ऊतकों को नष्ट कर सकता है, जिससे ऐसा प्रतीत होता है कि मांस खाया जा रहा है। एक बार प्रारंभिक लक्षण दिखने पर, हाइपोटेंशन सामान्यतः 24 से 48 घंटों के भीतर विकसित हो जाता है।
एसटीएसएस के शुरुआती लक्षणों में बुखार और ठंड लगना, मांसपेशियों में दर्द, मतली और उल्टी शामिल हैं। लक्षण दिखने के तुरंत बाद, इसके परिणामस्वरूप निम्न रक्तचाप (हाइपोटेंशन), अंग विफलता, टैचीकार्डिया (सामान्य से अधिक तेज़ हृदय गति) और टैचीपनिया (तेज सांस लेना) होता है। यूएस रोग नियंत्रण एवं रोकथाम केंद्र ने एक उदाहरण देकर कहा किडनी फेलियर से पीड़ित व्यक्ति को पेशाब नहीं आता।
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लिवर फेलियर से पीड़ित व्यक्ति को बहुत अधिक रक्तस्राव या चोट लग सकती है या उसकी त्वचा और आंखें पीली हो सकती हैं। किसी अन्य बीमारी की तरह ही एसटीएसएस का खतरा बच्चों और बुजुर्गों में ज्यादा होता है। इस बीमारी के ज्यादा मामले भी 50 साल से अधिक उम्र वालों में आते हैं। खुले घाव वाले लोगों में एसटीएसएस का खतरा बढ़ जाता है। इसमें वे लोग भी शामिल हो सकते हैं जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई हो या कोई वायरल संक्रमण हुआ हो। इससे बचाव के लिए साफ-सफाई बनाए रखना जरूरी है। इसके अलावा किसी भी खुली चोट या फिर जख्म का सही उपचार करना भी जरूरी है। संक्रमितों की आंतों में ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकस हो सकता है, जो मल के जरिए व्यक्ति के हाथों को दूषित कर सकता है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में ये भी दावा किया गया है कि जापान के अलावा, कई अन्य देशों में भी हाल ही में एसटीएसएस के मामले सामने आए हैं।
साल 2022 के अंत में, कम से कम पांच यूरोपीय देशों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को इनवेसिव ग्रुप ए स्ट्रेप्टोकोकल बीमारी के मामलों में हो रही बढ़ोतरी की सूचना दी थी।