राज्य गठन के बाद से सरकारी स्कूलों (government schools) में घटे छात्र - Mukhyadhara

राज्य गठन के बाद से सरकारी स्कूलों (government schools) में घटे छात्र

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राज्य गठन के बाद से सरकारी स्कूलों (government schools) में घटे छात्र

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

सरकारी सिस्टम की लाख कोशिशों के बाद भी शिक्षा विभाग सरकारी स्कूलों में छात्र संख्या नहीं बढ़ा पा रहा है।इसके अलावा अभिभावकों का भी लगातार सरकारी स्कूलों से मोह भंग होता जा रहा है। उत्तराखंड में पटरी से उतर रही शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के भले हमेशा से दावे किए जाते रहे हो, लेकिन हालात सुधरने के बजाए बिगड़ते जा रहे हैं। विभाग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के सरकारी स्कूल लगातार छात्रविहीन हो रहे हैं। हाल यह है कि 1671 सरकारी विद्यालयों में ताला लटक गया है, जबकि अन्य 3573 बंद होने की कगार पर हैं। हैरानी की बात यह है कि 102 स्कूल ऐसे हैं, जिनमें हर स्कूल में मात्र एक-एक छात्र अध्ययनरत हैं। प्रदेश में एक अप्रैल 2024 से नया शिक्षा सत्र शुरू हो रहा है, लेकिन इस सत्र के शुरू होने से पहले राज्य के कई विद्यालयों में ताला लटक गया है।

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शिक्षा महानिदेशालय ने हाल ही में राज्य के सभी मुख्य शिक्षा अधिकारियों से जिलों में बंद हो चुके विद्यालयों की रिपोर्ट मांगी थी। जिलों से मिली रिपोर्ट के मुताबिक, सरकारी विद्यालय छात्रविहीन होने से लगातार बंद हो रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 3,573 विद्यालयों में छात्र संख्या 10 या फिर इससे भी कम रह गई है। इसमें सबसे अधिक 785 स्कूल पौड़ी जिले के हैं, जबकि सबसे कम तीन स्कूल हरिद्वार जिले के हैं। राज्य में अल्मोड़ा जिले में 197, बागेश्वर में 53, चमोली में 133, चंपावत में 55, देहरादून में 124, हरिद्वार में 24, नैनीताल में 82, पौड़ी में 315, पिथौरागढ़ में 224, रुद्रप्रयाग में 53, टिहरी गढ़वाल में 268, ऊधमसिंह नगर में 21और उत्तरकाशी जिले में 122 स्कूलों में ताला लटक चुका है। प्रदेश की बेसिक और माध्यमिक शिक्षा विभाग के लिए प्रयोगशाला बनी हैं। पूर्व में अटल उत्कृष्ट विद्यालय, मॉडल विद्यालय, क्लस्टर विद्यालय आदि के रूप में कई प्रयोग किए जा चुके हैं, जबकि अब शिक्षा में फिनलैंड मॉडल अपनाने का दावा किया जा रहा है। इसे लेकर मंत्री के साथ विभागीय अधिकारियों की एक टीम चार दिन फिनलैंड और स्विटजरलैंड का दौरा कर चुकी है।

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राज्य के सभी जिलों से बंद हो चुके सरकारी विद्यालयों की रिपोर्ट मांगी गई थी। बंद हो चुके विद्यालयों का इस्तेमाल आंगनबाड़ी केंद्र, होम स्टे, एएनएम सेंटर एवं पंचायतघर के रूप में किया जाएगा, जिससे उपलब्ध भवन का इस्तेमाल होने से जनता को फायदा हो। उच्च प्राथमिक के छात्रों की उपस्थिति में गिरावट आ रही है जबकि शिक्षकों की उपस्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है। प्राथमिक और उच्च प्राथमिक दोनों स्कूलों में शिक्षकों की उपस्थिति 85 प्रतिशत है। लेकिन छात्र उपस्थिति में मामूली गिरावट देखी गई है, खासकर उच्च प्राथमिक विद्यालयों में, जो 2012 में 73.1 प्रतिशत से घटकर 2013 में 71.8 प्रतिशत हो गई है। उत्तराखंड राज्य पर्वतीय क्षेत्र में विकास की दरकार और रोजगार की वजह से ही एक अलग पहाड़ी राज्य की मांग हुई थी। ऐसे में बीजेपी सरकार की कोशिश है कि रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही जो प्रदेश में प्रकृति ने अनमोल तोहफे दिए हैं, उन तोहफों का बेहतर ढंग से इस्तेमाल किया जा सके। लिहाजा, सरकार का रोड मैप यही है कि युवाओं को रोजगार उपलब्ध कराने के साथ ही सीमित कृषि भूमि का बेहतर उपयोग, प्रदेश में मौजूद नदियों का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके।

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उत्तराखंड इन 23 सालों में एक बेहतर राज्य बनकर उभर सकता था, लेकिन प्रदेश की एक राजनीति में राजनीतिक अस्थिरता और साल 2013 में केदार घाटी में आई भीषण आपदा की वजह से वो तरक्की हासिल नहीं कर सकी, जो अभी तक कर सकती थी। क्योंकि, इन 23 साल के युवा राज्य को अभी तक 13 मुख्यमंत्री मिल चुके हैं. जिसके चलते कहीं ना कहीं के विकास पर भी इसका असर पड़ा है। इसके अलावा साल 2013 में आई भीषण आपदा के चलते भी उत्तराखंड राज्य की आर्थिक को बड़ा झटका लगा। क्योंकि, आपदा आने की वजह से प्रदेश में एक बड़ी आर्थिकी का संसाधन पर्यटन व्यवसाय पूरी तरह से ठप हो गया। लिहाजा, जानकार मानते हैं कि अगर राज्य की राजनीति में राजनीतिक अस्थिरता और आपदा न आई होती तो राज्य एक बेहतर मुकाम पर होता। उत्तराखंड को विशेष श्रेणी का दर्जा,औद्योगिक पैकेज और नए राज्य के प्रति केंद्र सरकारों के सहयोग के चलते ही इन 23 सालों में प्रदेश की जीडीपी और प्रति व्यक्ति आय में भी काफी वृद्धि हुई है।

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वर्तमान समय में अनुमानित उत्तराखंड की जीडीपी 3.33 लाख करोड़ और प्रति व्यक्ति आय 2,33,565 तक पहुंच गई है, लेकिन जब राज्य का गठन हुए था, उस दौरान राज्य की प्रति व्यक्ति आय करीब १४ हजार रुपए और जीडीपी करीब 1.60 लाख करोड़ रुपए थी। मुख्य रूप से देहरादून, हरिद्वार और उधमसिंह नगर जिलों की वजह से राज्य की जीडीपी में बड़ा उछाल देखा गया, लेकिन अभी भी प्रदेश के पर्वतीय जिलों की प्रतिव्यक्ति सालाना आय एक लाख के आसपास ही है। उत्तराखंड राज्य गठन के इन 23 सालों में ऐसा नहीं है कि अच्छे काम नहीं हुए हैं, बल्कि विकास के तमाम काम हुए हैं, लेकिन अभी भी जिन अवधारणा के साथ अलग राज्य बनाने की मांग उठी थी, उस अवधारणा को हम पूरा नहीं कर पाए हैं। वर्तमान समय में प्रदेशभर में भ्रष्टाचार व्याप्त है।कानून व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो गई हैबल्कि ब्यूरोक्रेसी सरकार पर हावी है और वही सरकार चल रही है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

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