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बिमला बहुगुणा का जीवन और संघर्ष उत्तराखंड के इतिहास में है एक महत्वपूर्ण अध्याय

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बिमला बहुगुणा का जीवन और संघर्ष उत्तराखंड के इतिहास में है एक महत्वपूर्ण अध्याय

शीशपाल गुसाईं

उत्तराखंड की सामाजिक और पर्यावरणीय आंदोलनों की अग्रणी नेत्री बिमला बहुगुणा का देहांत हो गया है। वह न केवल उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में होने वाले आंदोलनों की प्रमुख हस्ती थीं, बल्कि अपने पति सुंदरलाल बहुगुणा के साथ मिलकर समाज और पर्यावरण के लिए समर्पित जीवन जीने वाली महिला थीं। उनका जीवन और संघर्ष उत्तराखंड के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। सुंदरलाल बहुगुणा और बिमला नौटियाल दोनों सिराई व मालीदेवल गांव पट्टी जुवा टिहरी गढ़वाल (अब उत्तराखंड) के प्रतिष्ठित परिवारों से ताल्लुक रखते थे। सुंदरलाल के पिता अम्बादत्त बहुगुणा और बिमला के पिता नारायणदत्त नौटियाल रियासत काल में बड़े अधिकारी थे। हालांकि, दोनों के घर में विद्रोही संतानों ने जन्म लिया, जिन्होंने अपने परिवार की परंपरागत राह छोड़कर समाज सेवा और राष्ट्रीय आंदोलनों में भाग लिया। सुंदरलाल बहुगुणा ने लाहौर से शिक्षा प्राप्त की और भारत की आजादी की लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभाई, जिसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। वहीं, विमला नौटियाल ने सरला बहन (गांधीजी की शिष्या) के आश्रम, लक्ष्मी आश्रम कौसानी में शिक्षा प्राप्त की और समाज सेवा की ओर झुकाव रखा।

संकल्प और त्याग

1956 में, जब सुंदरलाल और बिमला के बीच रिश्ते की बात चली, तो बिमला ने एक शर्त रखी: सुंदरलाल को राजनीति छोड़नी होगी और दूरस्थ गांवों में जन सेवा का संकल्प लेना होगा। यह शर्त उस समय की सामाजिक और राजनीतिक परिस्थितियों को देखते हुए बहुत बड़ा त्याग था। सुंदरलाल ने इस शर्त को स्वीकार किया और दोनों ने टिहरी से 40 किलोमीटर दूर सिलियारा गांव में एक छोटा सा आश्रम बनाया। यह आश्रम उनके सहजीवन और समर्पण की शुरुआत थी।

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1960 के दशक में शराबबंदी आंदोलन

1960 के दशक में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में शराबबंदी आंदोलन चला। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य शराब के दुष्प्रभावों से समाज को मुक्त करना था। शराब से कईयों के परिवार बर्बाद हो रहे थे। 1965 में घनसाली व 1971 में टिहरी में शराब की दुकान बंद कराने के लिए बिमला बहुगुणा ने अपने पति के साथ इस आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई।उन्होंने महिलाओं को संगठित किया और शराब के खिलाफ जागरूकता फैलाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके प्रयासों से कई गाँवों में शराब की बिक्री पर रोक लगी और समाज में एक नई चेतना का संचार हुआ।

चिपको आंदोलन में भूमिका

1979 में, टिहरी (अब उत्तराखंड) के कीर्तिनगर क्षेत्र में वनों की कटान के खिलाफ एक महत्वपूर्ण आंदोलन शुरू हुआ। यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के साथ-साथ स्थानीय लोगों के जीवन, आजीविका और सांस्कृतिक परंपराओं को बचाने के लिए भी था। इस आंदोलन की अगुवाई बिमला बहुगुणा और उनके पति सुंदरलाल बहुगुणा ने की। बिमला बहुगुणा ने इस संघर्ष में न केवल पर्यावरण के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई, बल्कि यह भी साबित किया कि महिलाएं सामाजिक न्याय और पर्यावरणीय संरक्षण के आंदोलनों में अग्रणी भूमिका निभा सकती हैं। कीर्तिनगर के जंगलों को बचाने का यह आंदोलन स्थानीय लोगों के अधिकारों और पर्यावरण के प्रति जागरूकता का प्रतीक था। वनों की कटान से न केवल पेड़ों का नुकसान हो रहा था, बल्कि स्थानीय समुदायों की आजीविका, जो वन संसाधनों पर निर्भर थी, भी खतरे में पड़ गई थी।

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इसके अलावा, यह क्षेत्र पारंपरिक और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़ा हुआ था, जो वनों के साथ गहराई से जुड़े हुए थे। इनके अलावा कई अन्य प्रमुख नेताओं ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इनमें धूम सिंह नेगी, कुंवर प्रसून , विजय जड़धारी और राजीव नयन बहुगुणा शामिल थे। ये सभी नेता स्थानीय समुदाय के हितों और पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रतिबद्ध थे। उनके प्रयासों ने इस आंदोलन को एक व्यापक जन आंदोलन बना दिया। 1979 में एक रात, बिमला बहुगुणा और उनकी पांच सहयोगियों को रात के तीन बजे गिरफ्तार कर लिया गया। यह गिरफ्तारी तब हुई जब वे अपने अधिकारों और पर्यावरण के लिए संघर्ष कर रही थीं। बिमला को सहारनपुर जेल भेज दिया गया। उनके साथ उनका 6 वर्षीय बेटा प्रदीप बहुगुणा भी जेल गया। यह घटना उस समय के सामाजिक और राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाती है, जब पर्यावरण और स्थानीय अधिकारों के लिए संघर्ष करने वालों को दबाने की कोशिश की जाती थी।

टिहरी बांध का ऐतिहासिक आंदोलन

टिहरी बांध आंदोलन भारत के उत्तराखंड राज्य में एक प्रमुख पर्यावरणीय और सामाजिक आंदोलन था, जो टिहरी बांध के निर्माण के विरोध में चलाया गया। यह बांध भागीरथी नदी पर बनाया गया था और इसका उद्देश्य पनबिजली उत्पादन, सिंचाई और पेयजल आपूर्ति करना था। हालांकि, इसके निर्माण से पर्यावरण और स्थानीय समुदाय पर गंभीर प्रभाव पड़ने की आशंका थी, जिसके कारण यह आंदोलन शुरू हुआ। सुंदरलाल बहुगुणा और बिमला बहुगुणा इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे, जिन्होंने अपने जीवन के 15 साल इस संघर्ष में लगा दिए। उन्होंने टिहरी बांध के विरोध में भी अहम भूमिका निभाई। उनका मानना था कि बांध के निर्माण से पर्यावरण को भारी नुकसान होगा, जंगलों का विनाश होगा, और स्थानीय लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। उन्होंने भागीरथी नदी के तट पर एक झोपड़ी (कुटी) में रहकर इस आंदोलन को आगे बढ़ाया। यह झोपड़ी उनके संघर्ष का प्रतीक बन गई और लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनी। टिहरी बांध आंदोलन एक शांतिपूर्ण और अहिंसक आंदोलन था, जिसमें सुंदरलाल बहुगुणा ने भूख हड़ताल जैसे तरीकों का इस्तेमाल किया।

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उन्होंने लंबी भूख हड़ताल की, जिससे सरकार और जनता का ध्यान इस मुद्दे की ओर आकर्षित हुआ। बिमला बहुगुणा ने भी इस दौरान उनका पूरा साथ दिया और आंदोलन को मजबूती प्रदान की 2005 में, जब टिहरी बांध का निर्माण पूरा हो गया और टिहरी शहर को जलमग्न कर दिया गया, बिमला बहुगुणा उस शहर को छोड़ने वाली अंतिम व्यक्ति थीं। उनके विस्थापन की तस्वीरें चर्चा में रहीं, जिनमें वह झील के ऊपर नाव पर अपने देवी-देवताओं की मूर्तियों को लेकर जाती हुई दिखाई दे रही थीं। यह तस्वीरें उनके संघर्ष और त्याग की गवाही देती हैं। हालांकि टिहरी बांध का निर्माण हो गया, लेकिन सुंदरलाल और बिमला बहुगुणा के संघर्ष ने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया। उनके प्रयासों ने यह स्पष्ट कर दिया कि विकास के नाम पर पर्यावरण और स्थानीय लोगों की अनदेखी नहीं की जा सकती। उनका आंदोलन भारत में पर्यावरणीय आंदोलनों के इतिहास में एक मील का पत्थर साबित हुआ।

दलितों का मंदिर में प्रवेश कराया, 1995 में जमुना लाल बजाज पुरुस्कार से सम्मानित

सर्वोदयी विमला बहुगुणा एक प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता थीं, जिन्होंने उत्तराखंड के चारधाम सहित कई प्रमुख मंदिरों में दलितों को प्रवेश दिलाने के लिए महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनके इस संघर्ष में बहुगुणा, का हर कदम पर उनका साथ दिया। दलितों के मंदिरों में प्रवेश के मामले में उन्हें विरोध का भी सामना करना पड़ा। बिमला बहुगुणा ने समाज में समानता और न्याय के लिए कई वर्षों तक काम किया और उनके प्रयासों को 1995 में जमना लाल बजाज पुरस्कार से सम्मानित किया गया। यह पुरस्कार उन्हें समाज सेवा के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए दिया गया था। उनका कार्य न केवल धार्मिक समानता, बल्कि सामाजिक न्याय और मानवाधिकारों के क्षेत्र में भी प्रेरणादायक रहा है।

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बहुगुणा जी के साथ कदम- कदम पर चली 65 साल

बिमला बहुगुणा और सुंदर लाल बहुगुणा का विवाह 1956 में हुआ था। उनका साथ 65 वर्षों तक रहा, जो एक अद्भुत और मजबूत रिश्ते का प्रतीक है। सुंदर लाल बहुगुणा का 2021 में निधन हो गया, लेकिन उनका यह लंबा और प्रेरणादायक साथ हमेशा याद किया जाएगा। उनका जीवन एकता, समर्पण और प्रेम का उत्कृष्ट उदाहरण है।

भाई प्रसिद्ध साहित्यकार व पूर्व विधायक थे

बिमला बहुगुणा के भाई प्रसिद्ध कहानीकार और कम्युनिस्ट नेता पूर्व विधायक विद्यासागर नौटियाल थे। विद्यासागर नौटियाल हिंदी साहित्य में अपनी कहानियों के लिए जाने जाते हैं और उन्होंने कम्युनिस्ट राजनीति में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उत्तरप्रदेश विधानसभा के लिए 1980 में वह टिहरी जिले की देवप्रयाग विस् सीट से सीपीआई के विधायक चुने गए। उनकी रचनाएँ उत्तर बायां है’, ‘यमुना के बागी बेटे’, ‘भीम अकेला’, ‘झुंड से बिछुड़ा’, ‘फट जा पंचधार’, ‘सुच्ची डोर’, ‘बागी टिहरी गाए जा’, ‘सूरज सबका है’ उनकी प्रतिनिधि रचनाएं हैं. जो बहुत चर्चाओं में रही। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया। 2012 में सागर जी का 79 उम्र में निधन हो गया था।

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अभी हाल ही में 9 जनवरी 2025 को सुंदर लाल बहुगुणा जी की 98 वीं जयंती पर दून लाइब्रेरी में बिमला बहुगुणा भी शामिल हुई थी। अब वह हमारे बीच नहीं रही। लेकिन उनके कामो का उल्लेख होता रहेगा। विनम्र श्रद्धांजलि।

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