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उत्तराखंड: पुल टूटने (bridge collapse) का कारण अवैध खनन तो नहीं!

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पुल टूटने (bridge collapse) का कारण अवैध खनन तो नहीं!

Harishchandra Andola

  • डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

हमारे देश की दो मुख्य नदियाँ- गंगा और यमुना का उद्गम स्थल उत्तराखंड राज्य में है, गंगा और यमुना की सहायक नदियां जो राज्य के लिए प्राकृतिक संसाधनों का भंडार हैं।

उत्तराखंड राज्य में राजस्व आय का एक बड़ा हिस्सा इन्ही नदियों में होने वाले खनन से आता है, लेकिन आज राज्य की नदियों में होने वाला अवैध खनन प्रकृति और राजस्व दोनों के लिए खतरा बनता जा रहा है। नदियों में होने वाला अवैज्ञानिक और अवैध खनन प्रकृति के साथ- साथ राज्य के खजाने को भी दो तरफा नुकसान पहुंचा रहा है।

पहला अवैध खनन के चलते खनन का सही मूल्य पूर्ण रूप से राज्य सरकार के खजाने तक नहीं पहुंच पाता, वहीं दूसरी ओर अधिक मुनाफा कमाने के लालच में खनन माफिया मानक से अधिक खनन करते हैं। मानक से अधिक खनन हो जाने के कारण बरसात के समय नदियां विकराल रूप धारण कर तबाही मचाती हैं।

नदी में आये तेज बहाव के कारण जो नुकसान इन नदियों पर बने पुल और नदियों के किनारों को होता है उसका हर्जाना भी राज्य सरकार को अपने खाते से ही भरना पड़ता है।

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उत्तराखण्ड में मानसून सीजन के दौरान भूधसाव, भू-स्खलन, पुलों व पुलियाओं का टूटना यूं तो लेकिन हर सीजन मैं नदियों पर बने इन पुलों के टूटने की घटनाए बताती है कि कहीं तो कुछ गड़बड़झाला है।

लोगों का मानना है कि इन पुलों के नजदीक होने वाला खनन ही इन पुलों के टूटने का मुख्य कारण है, जिस पर प्रशासन भी मौन है। तो राज्य में अवैध खनन एक बड़ी समस्या है। इससे न सिर्फ राज्य के राजस्त को ठेंगा दिखाया जाता है बल्कि अवैध खनन के चलते बरसाती सीजन में क्षेत्रवासियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

पौड़ी जनपद के कोटद्वार में भारी बरसात के बीच मालन पुल के गिर जाने से 35 से ज्यादा गांवों का सम्पर्क टूट गया है। जिससे लोगों को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि पुल के उत्तर व दक्षिण दिशाओं में अवैध खनन के कारण गड्ढे हो गये थे। जिस कारण बाढ़ का कटाव तेज होने पर पिलर की जड़े कमजोर होने के कारण पुल ढहा है।

इससे पूर्व बीते वर्षों के दौरान मानसूनी सीजन में देहरादून-ऋषिकेश के बीच रानीपोखरी क्षेत्र में एक बड़ा पुल टूट गया था। जिस दौरान भी स्थानीय लोगों का आरोप था कि पुल के आस पास हो रहे अवैध खनन के कारण ही यह पुल टूटा है। हालांकि सरकार ने इसकी जांच के आदेश भी दिये थे लेकिन फिर भी राज्य की नदियों और खास तौर पर पुल के नजदीक होने वाले खनन पर सरकार अब तक कोई कार्यवाही नहीं कर सकी है।

सूत्रों का कहना है कि राज्य के कई पुलों के आस पास अब भी लगातार अवैध खनन का कार्य जारी है। लेकिन स्थानीय प्रशासन इस पर अंकुश लगाने में नाकामयाब है। सरकार को अगर इन पुलों की उम्र लम्बी करनी है तो उसे इन पुलों के आस पास होने वाले अवैध खनन पर लगाम कसनी होगी नहीं तो राज्य में अन्य पुलों को ध्वस्त होने से नहीं रोका जा सकेगा।

नेपाल के जल अधिग्रहण क्षेत्र और जिले में हो रही बारिश से नदियों के जलस्म्र में उफान जारी है। सभी नदियों के जलस्तर में वृद्धि हो चुकी है वहीं कुछ नदियों का जलस्तर खतरा के निशान के करीब पहुंच चुका है।

नदियों में आयी उफान के कारण लोगों को बाढ़ की आशंका सताने लगा है। नदी के किनारे के लोग बाढ़ को लेकर स्वयं की तैयारी करने लगे हैं। बागमती में उफान से जहां शिवहर मोतिहारी सड़क बाधित है, वहीं कोपल डैम के ध्वस्त होने से रुन्नीसैदपुर के खड़का से लेकर कटौझा तक के बांध पर उपधारा का दबाव बढ़ता जा रहा है।

इधर सुप्पी में ढेंग पुल से लेकर गम्हरिया गांव तक पानी का दबाव पूर्व की ओर बढ़ने लगी है, जिससे आसपास गांवों में भय का आलम है। इसके साथ ही जिले के अधवारा, झीम व लालबकैया में जलस्तर में उतार- चढ़ाव जारी है। अधिकतर नदियों का जलस्म्रर खतरा के निशान के करीब पहुंच चुका है।

वहीं वर्तमान में लगातार हो रही बारिश के कारण नदियों के जलस्तर में वृद्धि की संभावना व्यक्त की जा रही है। दूसरी तरफ बारिश के कारण बागमती के जलस्तर में वृद्धि जारी है। इससे नदी के पूर्वी किनारे के कटाव वाले क्षेत्र में ढंग पुल से लेकर गमहरिया तक दवाव बढ़ रहा है।

स्थानीय निवासी तक ठेकेदारों द्वारा मिट्टी की खुदाई की गई है, जिससे बने गड्ढों के कारण अब नदी की धारा पूर्व की ओर मुड़ने का खतरा मंडराने लगा है। इस अवैध खनन के कारण अगर नदी अपना धारा बदलता है तो किसानो के हजारों एकड़ खेतिहर जमीन नदी में विलीन हो जाएंगे।

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नदियों में होने वाला अवैज्ञानिक और अवैध खनन प्रकृति के साथ-साथ राज्य के खजाने को भी दो तरफा नुकसान पहुंचा रहा है, पहला अवैध खनन के चलते खनन का सही मूल्य पूर्ण रूप से राज्य सरकार के ख़ज़ाने तक नहीं पहुंच पाता।

वहीं दूसरी ओर अधिक मुनाफा कमाने के लालच में खनन माफिया मानक से अधिक खनन करते हैं। उपलब्ध जानकारी के अनुसार वर्ष 2020-21 में कुल 506.24 करोड़ रुपये का राजस्व राज्य सरकार को प्राप्त हुआ। खनन से प्राप्त राजस्व के

इस हिस्से और राज्य में लगातार बढ़ते अवैध खनन के बारे में, पूर्व कमिश्नर ऑफ़ गढ़वाल रह चुके, सेवानिवृत बोर्ड ऑफ रिन्यू और आईएएस अधिकारी सुरेन्द्र पांगति कहते हैं कि आज उत्तराखंड की नदियों से करोड़ो रुपये का खनन होता है लेकिन राज्य सरकार को राजस्व के रूप में एक छोटा हिस्सा ही मिल पता है, खनन से आने वाली आय के एक बड़े हिस्से पर खनन माफियाओं का कब्जा है, अधिकांश खनन के पट्टे सत्ताधारियों और उनके रिश्तेदारों के ही होते हैं इसलिए ये लोग किसी की परवाह किये बिना नदियों से अवैध खनन कर ज्यादा से ज़्यादा मुनाफा कमाने की कोशिश करते हैं। आज खनन माफियाओं के हौसले इतने बुलंद हो चुके हैं कि यदि कोई इनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठता है तो उसको किसी न किसी प्रकार से चुप करा दिया जाता है। सरकार की खनन नीति पर

सवाल उठाते हुए कहते हैं कि रेत बजरी के लिए नदियों में होने वाला खनन माइनर मिनरल के तहत आता है, जिसको लघु वनोपज भी कहा जाता है, वर्ष 1993 में हुए 73 वें संशोधन के अनुसार लघु वनोपज का अधिकार भी पंचायतों को मिलना चाहिए। यदि ये अधिकार पंचायतों को मिलता तो खनन करने का अधिकार पंचायतों के पास होता जिससे गांव के बेरोजगार युवाओं को विभिन्न प्रकार के रोजगार गांव के आस पास ही मिल जाते और गांव का युवा अपने गाँव में जिम्मेदारी के साथ खनन करता और यदि कोई अवैध गतिविधि भी करता तो उसको रोका जा सकता था, लेकिन ऐसा नहीं है।

आज अधिकांश खनन माफ़िया क्षेत्र के बाहर से आते हैं जो केवल अपने मुनाफे के बारे में सोचते हैं, क्षेत्र की जनता और क्षेत्र की जमीन को होने वाले नुकसान के बारे में नहीं। आज खनन माफ़िया पर्वतीय जिलों तक पहुंच चुका है, जो राज्य की शांति प्रिय संस्कृति को भी प्रभावित कर रहा है।

आज सरकार से यह सवाल पूछना बहुत जरुरी हो जाता है कि क्यों सरकार अवैध खनन के इतने बड़े मुद्दे को लेकर कोई ठोस निति नहीं बना पा रही है? क्यों 73 वें संशोधन को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया जा रहा है?

राज्य की नदियां और जंगल यहां के पारिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, यदि किसी प्रकार से नदी और जंगल प्रभावित होते है तो इसका सीधा प्रभाव यहां के पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ता है। लेकिन राज्य सरकार द्वारा आपदा प्रबंध 2005 के नाम पर नई खनन नीतियों में लगातार पर्यावरण सुरक्षा मानकों में ढील दी गयी है, जिस कारण नदियों में खनन और भी आसान हो गया है।

नई खनन नीति के अनुसार नदी में खनन करने से नदी में आने वाली आपदाओं को रोका जा सकता है, परन्तु पिछले कुछ वर्षों में इसके विपरीत नतीजे देखने को मिले हैं, जिसका मुख्य कारण खनन को लेकर पर्यावरण नियमों को अनदेखा करना है। कुछ जगहों से नदियों में जमा आरबीएम को निकालना सही हो सकता है लेकिन मुनाफे के लिए लगातार अधिक मात्रा में खनन नदियों के पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित करता है।

यदि इसी प्रकार नदियों में लगातार खनन होता रहा तो भविष्य में और भी ख़तरनाक नतीजे देखने को मिलेंगे। लेकिन यदि नदियों से अधिक मात्रा में इन मिनरल को निकला जाता है तो इससे नदी तंत्र प्रभावित होता है जो कहीं न कहीं पर्यावरण के लिए हानिकारक है।

खनन प्रकृति के अतिरिक्त स्थानीय लोगों के लिए भी खतरा बनता जा रहा है, कई बार तो खनन के लिए किये गए गड्ढो में डूब कर लोगों की जाने भी गयी हैं। विशेषज्ञों आगे कहते हैं कि हमारी सरकारों को केवल आय के स्रोत के रूप में नदियों को न देखते हुए नदियों के प्राकृतिक महत्त्व की ओर भी ध्यान देना चाहिए।

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नदियों की सुरक्षा और अवैध खनन की रोक थाम के लिए सरकार को सुझाव देते हैं कि उत्तराखंड सरकार नदियों में खनन बहुत ही अपारदर्शी और गैर जिम्मेदाराना तरीके से कर रही है सरकार को खनन करने से पहले विश्वसनीय तरीके से रिप्लेनिशमेंट स्टडी, पर्यावरण प्रभाव आँकलन, डिस्ट्रिक सर्वे रिपोर्ट को पब्लिक डोमेन में रखकर विशेषज्ञ से राय लेनी चाहिए, अवैध और अनसस्टेनेबल खनन की निगरानी के लिए स्थानीय लोगों और स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति का गठन करना चाहिए, उत्तराखंड सरकार को खनन विभाग की वेबसाइट अपडेट किए सालों हो गए हैं, जिसका समय से अपडेट होना आवश्यक है।

साथ ही खनन माफिया को रोकने के लिए हेल्पलाइन नंबर भी जारी करना चाहिए ताकि समय से जानकारी मिलने पर प्रशासन उचित कदम उठा सके।

उत्तराखंड में हो रही लगातार भारी बारिश में भूस्खलन के कारण सड़के बंद होने और नदियों पर बने पुलों के बहने की खबरे आ रही हैं। अब भी समय है, जब राजनीतिक दलों को विषय में गंभीरता से सोचना चाहिए। विडम्बना यह है इस ओर हमारे दायित्व के प्रति हम सबने आंखें मूंद रखी हैं।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं।)

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