रुद्रप्रयाग जनपद में तल्लानागपुर के मलकोटी गाँव में जन्मे हिंदी काब्य के महाकवि स्व चन्द्र कुंवर बर्तवाल, जिन्हें प्रकृति प्रेमियों ने हिमवंत कवि के रूप में जाना, आज उनका शताब्दी जन्मदिवस है।
20 अगस्त 1919 को मलकोटी में जन्मे प्राथमिक शिक्षा नागनाथ स्कूल, पौड़ी से हाईस्कूल, डीएवी देहरादून से इण्टर, इलहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक पास कर के कुछ समय अगस्त्यमुनि स्कूल में अध्यपन कार्य करने लगे। इसी बीच क्षय रोग से ग्रषित हो गए और मात्र 28 वर्षों के अल्प जीवन में ही 14 सितम्बर 1947 को परलोक चले गए।
उनकी हिंदी सहित्य में गहरी रुचि थी, जिससे उन्होंने कई कविताएं, कहानियाँ, निबन्ध, नाटक लिखे। उनमें प्रकृति की गहरी समझ थी। जिसका प्रभाव उनकी रचनाओं पर स्पष्ट दिखता है। उनके मित्र शंभू प्रसाद बहुगुणा ने उनकी कुछ रचनाओं का प्रकाशन किया तो साहित्य जगत ने उन्हें पहचाना और उन्हें हिमवंत कवि की उपाधि से अलंकृत किया।
निश्चित ही वह समस्त उत्तराखंडवासियों लिए प्रेरणास्रोत हैं और हमारे जिला, प्रदेश के लिए गौरव हैं। उन्हें वह स्थान नहीं मिल पाया, जिसके वे हकदार थे।
आज उनकी 100वीं जयन्ती धूमधाम से मानाने के लिये विधायक मनोज रावत ने विधायक निधि से धनराशि दी है। वे हर वर्ष इसके आयोजन हेतु देते रहे हैं।
महाकवि की स्मृति में उनके द्वारा रचित कविता की चार पंक्तियां इस प्ररका हैं-
स्वर्ग सरि मंदाकिनी, है सवर्ग सरि मन्दाकिनी।
मुझको डूबा निज काब्य में, हे स्वर्ग सरि मन्दाकिनी।।
गौरी पितापद निसृते, हे प्रेम वारि तरँगीते।
हे गीत मुखरे सुचि स्मिते, हे कल्याणी भीममनोहरे।।
हे गुह वासनी योगिनि, है कलुष तट तरु नाशनि ।
मुझको डूबा निज काब्य में हे स्वर्ग सरि मन्दाकिनी।।