सर्वपितृ अमावस्या : पितृ पक्ष का आखिरी दिन, आज पृथ्वी से वापस लौटते हैं पूर्वज पितृ, श्राद्ध का महत्वपूर्ण दिन, तर्पण-पिंडदान करने से मिलता है आशीर्वाद
देहरादून/मुख्यधारा
आज सर्वपितृ अमावस्या है। श्राद्ध पक्ष का आखिरी दिन । इस साल पितृ पक्ष की शुरुआत 18 सितंबर से हुई थी जिसका समापन आज को होने जा रहा है। गुरुवार, 3 अक्टूबर से शारदीय नवरात्रि आरंभ होने जा रही है। ऐसे में पितृ पक्ष का आखिरी दिन यानी सर्वपितृ अमावस्या पितरों को प्रसन्न करने और उनका आशीर्वाद प्राप्त करने का भी अंतिम दिन होता है। इस दिन उन पितरों को तर्पण दिया जाता है जिनका तिथि अनुसार श्राद्ध न हो पाया हो। इसलिए इसे सर्वपितृ अमावस्या कहा जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करने से उनकी आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। 15 दिनों से धरती पर आए हमारे पूर्वज पितृ दो अक्टूबर को विदा हो जाएंगे। ऐसी मान्यता है कि इन 15 दिनों के श्राद्ध पक्ष के दौरान जो लोग अपने पितरों को खुश रखते हैं, उन्हें वह आशीर्वाद देकर जाते हैं। पितरों को खुश रखने वाले परिवार में सुख, शांति और समृद्धि आती है। जीवन में कठिनाइयां खत्म हो जाती हैं। सनातन धर्म में सर्वपितृ अमावस्या को बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन लोग अपने पूर्वजों के लिए विभिन्न प्रकार के पूजा अनुष्ठान करते हैं।
सर्वपितृ अमावस्या के श्राद्ध पर भोजन में खीर पूड़ी का होना आवश्यक है। भोजन कराने और श्राद्ध करने का समय दोपहर होना चाहिए। ब्राह्मण को भोजन कराने के पूर्व पंचबली दें और हवन करें। श्रद्धा पूर्वक ब्राह्मण को भोजन कराएं। उनका तिलक करके दक्षिणा देकर विदा करें। बाद में घर के सभी सदस्य एक साथ भोजन करें और पितरों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करें।
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ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, पितृपक्ष के समय कुछ विशेष कार्यों से बचना आवश्यक है ताकि पितृ दोष से मुक्ति मिल सके। इसमें नई वस्तुओं की खरीदारी से परहेज करना, साथ ही बाल और नाखून नहीं कटवाना शामिल है, ताकि आप पितृ दोष के गंभीर प्रभावों से सुरक्षित रह सकें। इस दिन काले कपड़े पहनना अशुभ माना जाता है। इसके बजाय, सफेद या हल्के रंग के कपड़े पहनना अधिक उचित होता है, क्योंकि ये शांति और पवित्रता का प्रतीक होते हैं। सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर 12 बजकर 24 मिनट तक कुतुप मुहूर्त रहेगा। इसके बाद, रोहिण मुहूर्त दोपहर 12 बजकर 34 बजे से लेकर दोपहर के 01 बजकर 34 बजे तक होगा। वहीं पितरों के तर्पण और पिंडदान के लिए सबसे शुभ मुहूर्त दोपहर 01 बजकर 21 मिनट से लेकर दोपहर के 03 बजकर 43 मिनट तक है।