एक्सक्लूसिव: जीरो टोलरेंस में ऐसा अतिक्रमण क्यों सरकार! कोर्ट में हो सकती है फजीहत
उत्तराखंड के भोले-भाले सीधे-सपाट मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत अभी तक के कार्यकाल में सत्ता पक्ष या विपक्ष से इतने दुखी नहीं रहे, जितना उन्हें चंडाल चौकड़ी के चक्कर में न्यायालय में झेलना पड़ा। उनकी सरकार के फैसलों को न्यायालय ने कई बार पलटा और कई बार सरकार को फटकार भी लगी है।
अभी एक सप्ताह भी नहीं बीता है कि देहरादून की रिंग रोड के पास 6 नंबर पुलिया में लगने वाली अवैध सब्जी मंडी पर नगर निगम द्वारा जोर जबरदस्ती से अतिक्रमण कर 80 से अधिक नई ठेलियां लगाई गई। इस क्षेत्र को ‘स्मार्ट वेंडिंग जोनÓ लिखा गया है। हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा देहरादून ही नहीं, उत्तराखंड के किसी भी सरकारी भूमि पर किसी भी प्रकार के कब्जे को अतिक्रमण माना गया है।
न्यायालय के आदेश पर उत्तराखंड सरकार ने अतिक्रमण हटाने के लिए स्पेशल टास्क फोर्स भी बनाया है। इसी स्पेशल टास्क फोर्स ने देहरादून के हर उस अतिक्रमण को चिन्हित कर तोडऩे का काम किया है, जिस पर कब्जे थे। इस स्मार्ट वेंडिंग जोन से एक किलोमीटर पहले से लेकर फव्वारा चौक तक आने वाली नहर के ऊपर बने सारे कब्जे तोड़ दिए गए। यहां तक कि एक-दो फीट वाले कब्जों को भी जेसीबी द्वारा ध्वस्त कर दिया गया।
अब सवाल यह है कि जिस सिंचाई की नहर पर एक किलोमीटर पहले जेसीबी लगाकर उसे ध्वस्त किया गया, वही नहर आखिरकार स्मार्ट वेंडिंग जोन में कैसे चिन्हित हो गई? यदि सिंचाई विभाग की जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया स्मार्ट वेंडिंग जोन वैध है तो सरकार ने सैकड़ों लोगों के अतिक्रमण क्यों हटाए?
हाईकोर्ट नैनीताल द्वारा दिए गए आदेश के बावजूद नगर निगम ने मनमर्जी कर नियम कायदे कानूनों को उच्च न्यायालय के आदेश को धता बताते हुए इस काम को अंजाम दिया और सिंचाई विभाग की जमीन पर कब्जा कर ठेलियां लगवा दी।
मजेदार बात यह है कि सिंचाई विभाग के अधिकारी भी उसी स्पेशल टास्क फोर्स के हिस्सा हंै, जो देहरादून में अतिक्रमण हटा रही है। सिंचाई विभाग द्वारा नगर निगम को यहां पर अतिक्रमण करने के लिए नोटिस जारी किया है। जिस नगर निगम को अतिक्रमण हटाओ अभियान का हिस्सा बनाया हुआ है, उसी नगर निगम ने अतिक्रमण हटाने की बजाय सिंचाई विभाग को लिखित में जवाब दिया है कि उन्हें इस स्थान पर स्मार्ट वेंडिंग जोन लगाने के लिए अनुमति दी जाए। अर्थात अतिक्रमण करने की अनुमति दी जाए।
सिंचाई विभाग का कहना है कि उसने नगर निगम को ऐसी कोई भी अनुमति देने से इंकार कर दिया है और नगर निगम के अधिकारियों व मेयर ने मुख्यमंत्री को लाकर स्मार्ट वेंडिंग जोन का रिबन कटवाया और सिंचाई विभाग की जमीन पर अतिक्रमण कर डाला। सड़क के बीचोंबीच डिवाइडर लगा दिए, जो कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित किए हुए हैं।
हाईकोर्ट के स्पष्ट आदेश हैं कि अतिक्रमण करने वालों पर मुकदमा भी किया जाए। ऐसे में इस नए अतिक्रमण का मुकदमा कौन किस पर करेगा, यह बड़ा रोचक है। अतिक्रमण हटाओ टास्क फोर्स के सर्वेसर्वा आईएएस अधिकारी ओमप्रकाश मुख्यमंत्री के सचिव भी हैं। ऐसे में उन्हें ही इस पर कार्यवाही करनी लाजिमी प्रतीत होती है। क्या सचिव ओमप्रकाश हाईकोर्ट को बताएंगे कि यह नया अतिक्रमण कानून की किस धारा के अंतर्गत हुआ है?
देहरादून में बढ़ते अपराधों की लंबी फेहरिस्त के बीच यह ठेली-पटरी वाले कहां से आए और कहां को जाएंगे, का हिसाब किसी के पास नहीं है। यह भी बताया जा रहा है कि यह उत्तराखंड के लोग नहीं है। उत्तराखंड में भ्रष्टाचार के मामले में जीरो टॉलरेंस की सरकार चल रही है और गोदी मीडिया सरकार की गोद में नींद पूरी कर रहा है।
बहरहाल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को ऐसे लोगों से बचकर रहना चाहिए, ताकि वे न्यायालय की इन झंझटों से दूर रहें और विकास के कार्यों पर अधिक समय लगा पाएं।