टीएचडीसी के निजीकरण का मामला सदन में गूंजा
देहरादून। टिहरी हाइड्रो डेवलपमेंट कारर्पोरेशन (टीएचडीसी) के निजीकरण की सुगबुगाहट के बीच कांग्रेस ने मामला विधानसभा में उठाया। पार्टी का कहना था कि हितधारकों की चिन्ता किए बगैर केन्द्र सरकार लाभ वाली परियोजना को राजकोषीय घाटे की पूर्ति के विनिवेश की श्रेणी में डाल रही है।
मंगलवार को कार्यस्थगन प्रस्ताव के अन्तर्गत नेता प्रतिपक्ष डा. इन्दिरा हृदयेश ने टीएचडीसी को दूसरी संस्था में विलय करने का विरोध किया। उनका कहना था कि टीएचडीसी राष्ट्र की धरोहर है, जिसे विनिवेश के बहाने दूसरी संस्था को दिया जा रहा है। अभी तक विस्थापन व मुआवजे के कई प्रकरण लंबित हैं। कांग्रेस के ही प्रीतम सिंह ने कहा कि वे लोग बार-बार कहते हैं कि कांग्रेस ने 70 साल में किया क्या? जो धरोहर दी, उसे वे अब बेचने में लगे हैं। परियोजना निर्माण से 125 गांव विस्थापित हुए। हमने जब आंदोलन किया तो मुख्यमंत्री कहते हैं कि कांग्रेस के लोगों को रात में स्वप्न आते हैं और फिर उसी काम में लग जाते हैं।
उन्होंने कहा यह सरकार कुंभकर्णी नींद में सोई है, जिसे यह भी जानकारी नहीं कि टीएचडीसी को दूसरे हाथों में दिया जा रहा है। राज्य सरकार समय पर चेती होती तो केन्द्र ऐसा तुगलकी निर्णय नहीं लेता। गोविन्द सिंह कुंजवाल ने कहा कि केन्द्र सरकार ने लाभ की संस्थाओं को निजी हाथों में सौंपने का मन बना लिया है। इस गंभीर विषय पर राज्य सरकार का मौन आश्चर्य जनक है। कांग्रेस के ही हरीश धमी और ममता राकेश ने भी गंभीर विषय पर सदन में चर्चा की मांग की।
विपक्ष द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब देते हुए संसदीय कार्य मंत्री मदन कौशिक ने कहा कि टीएचडीसी के विनिवेश आदि के संबंध में अभी तक राज्य सरकार को औपचारिक सूचना प्राप्त नहीं है। जब भारत सरकार ऐसा कुछ करेगी तो राज्य सरकार परियोजना में हिस्सेदारी, पुनर्वास और कर्मचारियों आदि के हितों के साथ खड़ी होकर पूरी पैरवी करेगी। सरकार का पक्ष आने के बाद अध्यक्ष ने कार्यस्थगन की सूचना को अग्राह्य घोषित कर दिया।