बेरोज़गारी(unemployment)से तबाह हुए युवा कैसे बनेगा विकसित भारत - Mukhyadhara

बेरोज़गारी(unemployment)से तबाह हुए युवा कैसे बनेगा विकसित भारत

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बेरोज़गारी (unemployment) से तबाह हुए युवा कैसे बनेगा विकसित भारत

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

देश में इन दिनों सियासत और क्रिकेट दोनों की पिच पर जबरदस्त खेला हो रहा है। राजनीति में जहां सत्ता पक्ष और विपक्ष एक दूसरे के खिलाफ चौको-छक्कों की बारिश कर रहे हैं,पीएम के दस सालों में दावे और वादे तो तमाम हुए, लेकिन आँकड़े बताते हैं कि इस दौरान देश के युवा बेरोज़गारी से तबाह हो गये। मोदी सरकार अच्छे दिनों से लेकर 2047 तक भारत को विकसित करने का नारा देते रहे लेकिन युवा बेरोज़गारी से तंग आकर ख़ुदकुशी करते रहे। बीते तीन सालों में साढ़े पैंतीस हज़ार युवाओं ने बेरोज़गारी से तंग आकर ख़दकुशी की है।
अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के सहयोग से जारी भारत रोज़गार रिपोर्ट 2024 के अनुसार दस सालों में युवा बेरोज़गारी 6 फ़ीसदी बढ़ी है। देश के बेरोज़गारों की कुल संख्या में 83 फ़ीसदी युवा हैं।

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26 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन(आईएलओ) और मानव विकास संस्थान ने च्इंडिया एम्प्लॉयमेंट रिपोर्ट 2024 जारी की। इसके अनुसार भारत के शिक्षित युवाओं में बेरोज़गारी बढ़ी है। जिन युवाओं ने उच्च शिक्षा प्राप्त की है उनमें बेरोज़गारी की दर तेज़ी से बढ़ी है। साल 2000 में कुल शिक्षित बेरोज़गार युवाओं की संख्या 54.2 फ़ीसदी थी, जो अब बढ़कर 65.7 फ़ीसदी हो गयी है। बेरोज़गार युवाओं में महिलाओं की संख्या 76.7 फ़ीसदी है तो युवा पुरुषों की संख्या62.2 फ़ीसदी। सेकेंडरी एजुकेशन के बाद स्कूल छोड़ने की दर लगातार ऊंची बनी हुई है। रिपोर्ट के अनुसार उच्च शिक्षाओं में नामांकन तो बढ़ा है लेकिन शिक्षा की गुणवत्ता ख़राब हुई है। सबसे ख़राब स्थिति उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, मध्यप्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ में है। इन क्षेत्रों में रोज़गार की स्थिति बहुत ख़राब है।

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रिपोर्ट में कहा गया है कि कामगार लोगों का बहुत छोटा प्रतिशत ही सामाजिक सुरक्षा के दायरे में आता है। कई जगहों पर ठेकेदारी प्रथा में वृद्धि देखी गई है। रिपोर्ट बताती है कि नियमित काम और अपना कारोबार कर रहे लोगों के वेतन में 2019 के बाद गिरावट आई है। जिन लोगों के पास दक्षता नहीं है, ऐसे तमाम लोगों को वर्ष 2022 में निर्धारित न्यूनतम वेतन तक नहीं मिला। लोगों का पलायन बड़ी संख्या में देखा गया है। सबसे अधिक पलायन देश के पूर्वी इलाकों और केंद्रीय हिस्सों से पश्चिम और दक्षिण की तरफ़ रहा है। युवाओं में स्किल्स यानी दक्षता की भारी कमी देखी गयी है। युवाओं का एक बड़ा हिस्सा डिजिटल रूप से साक्षर नहीं है। उनके पास डिजिटल की बुनियादी जानकारी भी नहीं है। ये लोग बेरोजगारी की चपेट में सबसे अधिक हैं।

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रिपोर्ट असमानता को अहम मानते हुए बताती है कि आरक्षण के बावजूद दलित और आदिवासी वर्ग बेहतर नौकरियों तक पहुँच के मामले में बहुत पीछे है। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोग कम वेतन और अनौपचारिक रोज़गार में अधिक संख्या में हैं। भारत में दुनिया की बहुत बड़ी आबादी युवाओं की है। सालाना 70 से 80 लाख नये युवा रोज़गार की दौड़ में शामिल होते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि रोज़गार सृजन पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। शिक्षा क्षेत्र में गुणवत्ता पर ध्यान देना बहुत जरूरी है ताकि कौशल पर काम किया जा सके।श्रम बाजारों में असमानताओं को दूर करने पर ध्यान देना जरूरी है। कौशल और श्रम बाज़ार की नीतियों को मज़बूत बनाने की आवश्यकता है। भारत रोज़गार रिपोर्ट के आंकड़े बेहद चिंताजनक है। ऐसे में भारत को विश्व की सर्वोच्च तीन अर्थव्यवस्थाओं में शामिल करना किसी चुनौती से कम नहीं होगा। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सपना, 2047 तक भारत को विकसित राष्ट्र की श्रेणी में लाना भी आसान नहीं होगा। सवाल यह भी उठता है कि क्या भारत की वृद्धि दर भारत की रोज़गार की समस्या को कम कर पा रही है? और भारत अपनी आधारभूत
संरचनाओं में सुधार करने के लिए क्या और कैसे कदम उठा रहा है?

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार भारत के बेरोजगार युवा निराश होकर आत्महत्या कर रहे हैं। तीन सालों में करीब 35000 हज़ार छात्रों ने खुदकुशी की है। जिनमें से सबसे अधिक संख्या दिहाड़ी मजदूरों की है। केंद्र सरकार आठ सालों में आवेदन कर चुके 22 करोड़ युवाओं में से केवल 7.22 लाख को ही नौकरियां ही दे सकी हैं। (मीडिया विजिलके अनुसार) रिपोर्ट जारी करते हुए सीईए नागेश्वरन ने कहा कि यह सोचना ‘सही नहीं’ है कि सरकार को ‘हर सामाजिक या आर्थिक समस्या’ के लिए हस्तक्षेप करना चाहिए। “हमें इस मानसिकता से बाहर निकलने की जरूरत है। सामान्य दुनिया में, यह कॉमर्शियल सेक्टर है, और जो लोग फायदे चाहते हैं, उन्हें भर्ती करने की जरूरत है”। वहीं इसके पीछे राजनीतिक लोगों की कमजोर इच्छा शक्ति और अधिकारियों में दूरदर्शिता की कमी भी साफ तौर पर देखी जा सकती है।

(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत  हैं )

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