देहरादून। देवस्थानम बोर्ड के गठन से ऐन पहले बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के पदाधिकारियों ने समिति के बजट की बंदरबांट कर दी। बड़े शातिराना अंदाज में समिति के सदस्यों की निधि निर्धारित करते हुये लाखों रुपये के चेक काट दिये गये।
मंदिरों के पुननर्निर्माण, धार्मिक गतिविधियों और शिक्षा को प्रोत्साहन के नाम पर ये चेक विभिन्न संस्थाओं और समितियों के नाम पर काटे गये। इस पूरे प्रकरण में बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट-1939 का घोर उल्लंघन किया गया।
जैसे ही राज्य की त्रिवेन्द्र सरकार ने देवस्थानम बोर्ड के गठन का फैसला किया, बदरी-केदार मंदिर समिति (बीकेटीसी) को लगा कि अब उनके हाथ से अधिकार और शक्तियां छिनने जा रही हैं। आनन-फानन में बीते 12 जनवरी को बीकेटीसी के बोर्ड की बैठक आहूत की गई।
बैठक में मंथन के बाद योजना बनाई गई कि क्यों न समिति के बैंक अकाउण्ट में जमा धनराशि की बंदरबांट की जाये। मौखिक तौर पर तय किया गया कि समिति के सभी सदस्यों की निधि निर्धारित कर दी जायेगी, ताकि उसके बाद जिसे भी सदस्य कहेंगे, उस संस्था या समिति के नाम पर चेक काट दिये जायेंगे। इसके बाद समिति के सदस्यों ने अपने विश्वास की धार्मिक संस्था, समिति और शिक्षण संस्थानों की तलाश की और मंदिरों मंदिरों के पुननर्निर्माण, धार्मिक गतिविधियों और शिक्षा को प्रोत्साहन के नाम पर बीकेटीसी से उन्हें चेक के जरिये धनराशि दिलवा दी। मोटे तौर पर प्रत्येक सदस्य के जरिये 6.60 लाख रुपये धार्मिक व 75 हजार रुपये शैक्षिक कार्यों के लिये आवंटित किये गये। हैरानी की बात है कि मंदिर समिति के एक्ट में सदस्यों की निधि निर्धारित करने और उसके चैक बाहरी संस्थाओं के नाम काटने की कोई व्यवस्था है ही नहीं और न ही समिति के इतिहास में पहले कभी ऐसा हुआ।
निवर्तमान अध्यक्ष जवाब देने को तैयार नहीं
इस सम्बंध में समिति का पक्ष जानने के लिये निवर्तमान अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल से मोबाइल फोन पर सम्पर्क साधने का प्रयास किया तो उन्होंने कॉल रिसीव नहीं की। मैसेन्जर पर भेजे संदेश का भी जवाब उन्होंने नहीं दिया।
अध्यक्ष ने भी दिये प्रस्ताव
समिति के निवर्तमान अध्यक्ष मोहन प्रसाद थपलियाल समेत 9 सदस्यों ने सदस्य निधि खर्च करने के प्रस्ताव दिये। समिति के चार सदस्य आकाश अम्बानी, सज्जन जिंदल, अनिल कंसल और राकेश ओबराय (जो कि बड़े उद्योगपति हैं) को इस खेल से दूर रखा गया।
‘भ्रष्टाचार से जुड़ा यह बहुत ही गंभीर मामला है। बदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति एक्ट-1939 की मूल भावना है कि भाक्तों के दान से मिली धनराशि का उपयोग सिर्फ और सिर्फ समिति के अधीन आने वाले मंदिरों और यात्रियों के हित में किया जायेगा। समिति के पदाधिकारियों से पूछा जाना चाहिये कि उन्होंने किस अधिकार और नियम से दान से मिली धनराशि की बंदरबांट की है’।
– मनोज रावत, विधायक केदारनाथ
(साभार: दीपक फर्स्वाण)