देहरादून/मुख्यधारा
कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष एवं दो बार के विधायक रहे किशोर उपाध्याय को बीते 2 विधानसभा चुनाव से कांग्रेसी ‘किशोर’ ठहराने का प्रयास करते दिखाई दे रहे हैं।
2017 के चुनाव में किशोर उपाध्याय को टिहरी की बजाय देहरादून की सहसपुर विधानसभा सीट से कांग्रेस ने टिकट थमाया तो उनकी हार के संकेत तभी से शुरू हो गए थे। बाद में जब चुनाव परिणाम आया तो वे संकेत हकीकत में बदले भी और यहां से कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा था।
किशोर उपाध्याय की परंपरागत सीट टिहरी विधानसभा क्षेत्र है और यहां उनका खासा जनाधार माना जाता है। किंतु प्रदेश संगठन द्वारा जिस तरह से किशोर को ज्यादा तरजीह न देते हुए उन्हें अलग-थलग कर दिया गया, इससे कहीं न कहीं ऐसी परिस्थितियां उन्हें भाजपा से नज़दीकियां बनाने का कारण बनी।
अब यह अलग बात है कि विधानसभा चुनाव 2022 की गहमागहमी के बीच कांग्रेस ने गत दिवस किशोर उपाध्याय से सभी पदों से उन्हें मुक्त कर दिया है। पार्टी संगठन का मानना है कि ऐन चुनाव के वक्त वह कोई भी जोखिम मोल नहीं लेना चाहती।
यही नहीं पार्टी ने अपने वरिष्ठ नेता पर कार्यवाही करते हुए अन्य छोटे नेताओं व कार्यकर्ताओं को भी संदेश देने की कोशिश की है कि अगर वे पार्टी लाइन से हटकर काम करते हैं तो उनके खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जा सकती है।
गत दिवस उत्तराखंड प्रभारी देवेंद्र यादव ने किशोर उपाध्याय को पत्र के माध्यम से कहा है कि प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ कांग्रेस का अभियान चल रहा है और वहीं आप उन्हीं पार्टियों से मेलजोल रख रहे हैं। ऐसे में यह गतिविधियां पार्टी को कमजोर कर रही हैं।
हालांकि राजनीतिक विश्लेषक कांग्रेस के इस कदम को किशोर उपाध्याय के हित में बताते हुए उनके लिए भारतीय जनता पार्टी में जाने का रास्ता साफ होने के रूप में देख रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि किशोर उपाध्याय भाजपा में शामिल होकर टिहरी विधानसभा सीट पर कमल खिलाने की कुव्वत रखते हैं।
वहीं भाजपा भी हर हाल में जिताऊ उम्मीदवारों पर ही दांव लगाने जा रही है। ऐसे में वह किशोर उपाध्याय को टिहरी विधानसभा सीट पर चुनाव मैदान में उतारती है तो किशोर भी भाजपा के लिए तुरुप का इक्का साबित हो सकते हैं।
वहीं दूसरी ओर कांग्रेस टिहरी सीट पर दिनेश धनै को मैदान में उतारकर भाजपा को कड़ी टक्कर देने की संभावना तलाश रही है। इस सीट पर 2012 में धनै निर्दलीय चुनाव जीते थे और उन्हें कांग्रेस सरकार में कैबिनेट मंत्री बनाया था। दिनेश धनै से ही 2012 के चुनाव में किशोर उपाध्याय हारे थे और उनकी सियासी पारी तभी से डगमगाने लगी। हालांकि धनै ने उत्तराखंड एकता पार्टी का गठन किया है। बावजूद इसके टिहरी में कॉन्ग्रेस किशोर उपाध्याय के विकल्प के रूप में दिनेश धनै को ही देख रही है। बताया यह भी जा रहा है कि यदि धनै कांग्रेस के सिंबल पर चुनाव नहीं भी लड़े तब भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कांग्रेस उनसे सामंजस्य स्थापित कर सकती है।
बहरहाल भाजपा कांग्रेस उत्तराखंड में इस बार सरकार बनाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाए हुए हैं। भाजपा जहां ओवर कॉन्फिडेंस में अबकी बार 60 पार के नारे के साथ चुनाव लड़ रही है, वहीं कांग्रेस अबकी बार कांग्रेस सरकार के नारे के साथ मतदाताओं की चौखट पर खड़ी है। हालांकि दोनों ही दल केवल जिताऊ उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में उतारने जा रही है। ऐसे में भाजपा करीब एक दर्जन सिटिंग विधायकों की सीटों पर कैंची चला कर जिताऊ कैंडिडेट को मैदान में उतारे तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए, वहीं कांग्रेस भी जांच-परख कर ही अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी।
अब देखना यह होगा कि कांग्रेस का ये ‘किशोर’ टिहरी में कहीं भाजपा का कमल खिलाकर विपक्षी दल के लिए अनुभवी उपाध्याय बनकर न उभरे!
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