स्वतंत्रता संग्राम के साथ कई आंदोलनों में लोकनायक जयप्रकाश (Jayprakash Narayan) ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका, संपूर्ण क्रांति का भी दिया नारा
मुख्यधारा डेस्क
आज बात करेंगे महान स्वतंत्रता सेनानी और देश के कई आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण (Jayprakash Narayan) की। साल 1975 में इमरजेंसी के दौरान उनका ‘संपूर्ण क्रांति’ का दिया नारा लोग आज भी नहीं भूले हैं।
लोकनायक जयप्रकाश(Jayprakash Narayan) ने जहां एक ओर स्वाधीनता संग्राम में योगदान दिया, वहां 1947 के बाद भूदान आंदोलन और खूंखार डकैतों के आत्मसमर्पण में भी प्रमुख भूमिका निभाई। 1970 के दशक में तानाशाही के विरुद्ध हुए आंदोलन का उन्होंने नेतृत्व किया। इन विशिष्ट कार्यों के लिए शासन ने 1998 में उन्हें मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया।
जयप्रकाश (Jayprakash Narayan) का जन्म 11 अक्तूबर, 1902 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में हुआ था। पटना में पढ़ते समय उन्होंने स्वाधीनता संग्राम में भाग लिया। 1920 में उनका विवाह बिहार के प्रसिद्ध गांधीवादी ब्रजकिशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती से हुआ। 1922 में वे उच्च शिक्षा के लिए विदेश गये।
शिक्षा का खर्च निकालने के लिए उन्होंने खेत और होटल आदि में काम किया। अपनी माताजी का स्वास्थ्य खराब होने पर वे पीएचडी अधूरी छोड़कर भारत आ गये। 1929 में भारत आकर नौकरी करने की बजाय वे स्वाधीनता आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें राजद्रोह में गिरफ्तार कर हजारीबाग जेल में रखा गया। दीपावली की रात में वे कुछ मित्रों के साथ दीवार कूदकर भाग गये।
इसके बाद नेपाल जाकर उन्होंने सशस्त्र संघर्ष हेतु आजाद दस्ता बनाया। उन्होंने गांधी जी और सुभाष चंद्र बोस के मतभेद मिटाने का भी प्रयास किया। 1943 में वे फिर पकड़े गये। इस बार उन्हें लाहौर के किले में रखकर अमानवीय यातनाएं दी गयीं।
1947 के बाद नेहरू जी ने उन्हें सक्रिय राजनीति में आने को कहा पर वे ब्रिटेन की नकल पर आधारित संसदीय प्रणाली के खोखलेपन को समझ चुके थे, इसलिए वे प्रत्यक्ष राजनीति से दूर ही रहे। 19 अप्रैल, 1954 को उन्होंने गया (बिहार) में विनोबा भावे के सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की।
जनता की कठिनाइयों को लेकर वे आंदोलन करते रहे। 1974 में बिहार का किसान आंदोलन इसका प्रमाण है। 1969 में कांग्रेस का विभाजन, 1970 में लोकसभा चुनावों में विजय तथा 1971 में पाकिस्तान की पराजय और बांग्लादेश के निर्माण जैसे विषयों से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का दिमाग चढ़ गया। उनकी तानाशाही वृत्ति जाग उठी।
कांग्रेस की अनेक राज्य सरकारें भ्रष्टाचार में डूबी थीं। जनता उन्हें हटाने के लिए आंदोलन कर रही थी। पर इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुई। इस पर जयप्रकाश जी भी आंदोलन में कूद पड़े। लोग उन्हें लोकनायक कहने लगे।
जयप्रकाश (Jayprakash Narayan) के नेतृत्व में छात्रों द्वारा संचालित आंदोलन देशव्यापी हो गया
पटना की सभा में हुए लाठीचार्ज के समय वहां उपस्थित नानाजी देशमुख ने उनकी जान बचाई। 25 जून, 1975 को दिल्ली के रामलीला मैदान में हुई विशाल सभा में जयप्रकाश जी ने पुलिस और सेना से शासन के गलत आदेशों को न मानने का आग्रह किया। इससे इंदिरा गांधी बौखला गयी। 26 जून को देश में आपातकाल थोपकर जयप्रकाश जी तथा हजारों विपक्षी नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया। इसके विरुद्ध संघ के नेतृत्व में हुए आंदोलन से लोकतंत्र की पुनर्स्थापना हो सकी।
मोरारजी देसाई के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी। यदि जयप्रकाश (Jayprakash Narayan) चाहते, तो वे राष्ट्रपति बन सकते थे पर उन्होंने कोई पद नहीं लिया। जयप्रकाश जी की इच्छा देश में व्यापक परिवर्तन करने की थी। इसे वे संपूर्ण क्रांति कहते थे पर जाति, भाषा, प्रांत, मजहब आदि के चंगुल में फंसी राजनीति के कारण उनकी इच्छा पूरी नहीं हो सकी। 8 अक्तूबर, 1979 को दूसरे स्वाधीनता संग्राम के इस सेनानायक का निधन हो गया।