सियासत: विपक्ष में कमजोर होती जा रही कांग्रेस के लिए कर्नाटक (Karnataka) की जीत ने बढ़ाया रुतबा, राहुल गांधी भी मजबूत हुए
शंभू नाथ गौतम
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ी जीत के लिए तरस रही थी। इसके साथ कांग्रेस विपक्ष में भी कमजोर होती जा रही थी। लेकिन कर्नाटक ने कांग्रेस को संजीवनी दे दी है। कांग्रेस ने कर्नाटक में सरकार बनाने की तैयारी शुरू कर दी है।
भाजपा हाईकमान भी कर्नाटक में हुई बुरी हार के बाद मंथन करने में लगा हुआ है। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी का किला ध्वस्त करके कांग्रेस ने सिर्फ सत्ता में ही वापसी नहीं की है बल्कि मजबूत स्थिति में भी आ गई है। किसी बड़े राज्य में लंबे समय बाद कांग्रेस को जीत हासिल हुई है और इसका श्रेय राहुल गांधी को दिया जा रहा है। दक्षिण भारत में मिली इस जीत ने कांग्रेस को विपक्षी एकता के केंद्र में लाकर खड़ा कर दिया है।
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गत लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद जब राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया, तब कांग्रेस के नेताओं में राहुल को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। लेकिन राहुल गांधी अपनी बात पर अडिग रहे। इसी दौरान कपिल सिब्बल, पी चिदंबरम, गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा जैसे अनेक नेताओं ने कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे गांधी परिवार की कार्यशैली पर ऐतराज भी जताया। तब एक बार फिर सोनिया गांधी को ही अंतरिम अध्यक्ष बना दिया गया। नेताओं को उम्मीद थी कि आज नहीं तो कल राहुल गांधी अध्यक्ष पद स्वीकार कर लेंगे। लेकिन गत वर्ष यह उम्मीद भी बेकार साबित हुई और मल्लिकार्जुन खडग़े को कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना ही पड़ा। कांग्रेस गांधी परिवार से मुक्त हुई तो राहुल गांधी ने अपने दम पर भारत जोड़ों यात्रा निकाली। हालांकि इस यात्रा के दौरान ही कांग्रेस को गुजरात में बुरी हार का सामना करना पड़ा। लेकिन अब जब कर्नाटक में कांग्रेस की शानदार जीत हुई है, तब जीत का श्रेय राहुल गांधी को ही दिया जा रहा है।
राजनीतिक समीक्षक भी मानते हैं कि राहुल की भारत जोड़ों यात्रा 21 दिन कर्नाटक में ही रही, इसलिए कांग्रेस को जीत हासिल हुई। राहुल ने कांग्रेस के किसी पद पर नहीं रहते हुए कर्नाटक में जीत दिलवाई है। इसलिए अब कांग्रेस में राहुल के नेतृत्व को चुनौती देने वाला कोई नहीं है। संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल से लेकर रणदीप सुरजेवाला तक राहुल को अपना नेता मानते हैं। राहुल ने यह प्रदर्शित किया है कि वे पद के बगैर भी कांग्रेस का नेतृत्व कर सकते हैं।
कांग्रेस की लगातार हो रही हार के कारण विपक्ष में भी कांग्रेस की स्थिति बेहद कमजोर हो गई थी। ममता बनर्जी, शरद पवार, अखिलेश यादव, अरविंद केजरीवाल आदि को भी राहुल गांधी से बड़ा माना जाने लगा। लेकिन कर्नाटक की जीत ने विपक्ष में कांग्रेस का दबदबा बढ़ा दिया है। मौजूदा समय में राजस्थान, छत्तीसगढ़, कर्नाटक और हिमाचल में कांग्रेस की सरकार है तो तीन राज्यों में कांग्रेस के समर्थन से सरकार चल रही है। ऐसी स्थिति किसी अन्य विपक्षी दल की नहीं है। कर्नाटक की जीत के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने तो राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद का दावेदार भी बता दिया। विपक्ष का कोई नेता माने या नहीं लेकिन विपक्ष में सबसे मजबूत स्थिति मौजूदा समय में कांग्रेस की है।
कांग्रेस अपनी इस स्थिति को कब तक बरकरार रखती है इसका पता इसी वर्ष होने वाले राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना के विधानसभा चुनाव में पता चल जाएगा। कर्नाटक की जीत के बाद जब देश भर में राहुल गांधी की चर्चा हो रही है, तब सबसे ज्यादा खुशी मां सोनिया गांधी को ही है। 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद पूरे देश में कांग्रेस को जिस तरह हार का सामना करना पड़ा, उसमें भी सबसे ज्यादा निराशा सोनिया गांधी को हुई। क्योंकि कांग्रेस की हार का ठीकरा उनके पुत्र राहुल गांधी के सिर पर ही फोड़ा गया। हिमाचल की जीत से पहले तो कांग्रेस की सिर्फ दो राज्यों में ही सरकार रह गई थी। एक साथ 23 कांग्रेस नेताओं ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी का विरोध किया तो तब कांग्रेस को सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा, लेकिन कर्नाटक की जीत से कांग्रेस उसे बुरे दौर से बाहर निकलेगी। सोनिया गांधी को भी इस बात की खुशी है कि अब कांग्रेस में उनके पुत्र को चुनौती देने वाला कोई नहीं है।
कर्नाटक में कांग्रेस को मिली है बाबाजी के बाद विपक्ष के नेताओं के भी बदले सुर
कर्नाटक में कांग्रेस को मिली बंपर जीत के बाद विपक्ष के नेताओं के भी अब सुर बदल गए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए विपक्षी एकता की कवायद हो रही है, जिसमें कर्नाटक चुनाव से पहले तक कांग्रेस बैकफुट पर खड़ी थी। कांग्रेस इस मिशन के लिए खुद पहल करने के बजाय पर्दे के पीछे से दांव चल रही थी। विपक्षी एकता के लिए बुने जा रहे सियासी तानेबाने में अभी तक कांग्रेस से दूरी बनाकर चलने वाले दलों के सुर कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद बदलने लगे हैं।
कर्नाटक चुनाव नतीजे पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, यह साल 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के अंत की शुरूआत है। कर्नाटक के बाद छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में भी बीजेपी को हार का सामना करना पड़ेगा। ममता ने कहा, ‘कांग्रेस जहां मजबूत है, हम उसका समर्थन करने के लिए तैयार हैं, लेकिन कांग्रेस को यहां हमारे खिलाफ हर दिन लड़ना बंद करना चाहिए। पीडीपी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर की पूर्व सीएम महबूबा मुफ्ती ने कर्नाटक चुनाव के नतीजों को ‘उम्मीद की किरण’ बताया। साथ ही ओडिशा के सीएम और बीजेडी चीफ नवीन पटनायक ने भी बीजेपी पर इशारों ही इशारों में तंज कसा है। पटनायक ने कहा, सिंगल या डबल इंजन की सरकार कोई मायने नहीं रखती, बल्कि सुशासन ही किसी पार्टी को जिताने में मदद करता है।
वहीं, शिवसेना नेता व सांसद संजय राउत ने कहा, कर्नाटक तो झांकी है, अभी पूरा हिंदुस्तान बाकी है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को संजय राउत ने विपक्ष की जीत बताई। साथ ही कहा कि महाविकास अघाड़ी में आंतरिक रूप से कोई गलतफहमी नहीं है और न कोई मतभेद है। हम एकजुट हैं और 2024 में बीजेपी का नाम लेवा कोई नहीं होगा। महाविकास अघाड़ी में शामिल शिवसेना (उद्धव गुट), एनसीपी और कांग्रेस तीनों दल अभी तक अलग-अलग सुर में बात कर रहे थे। कांग्रेस और एनसीपी नेताओं के बीच बयानबाजी से एमवीए के बिखरने का संदेश जा रहा था, लेकिन कर्नाटक चुनाव नतीजे के बाद बैठक कर एकजुट रहने का संदेश दिया।
इसके साथ ही यह भी कहा कि महाराष्ट्र में होने वाले एमवीए की रैली में तीनों ही दल के नेता शामिल होंगे। एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा कि कर्नाटक के नतीजों से सभी को एक संदेश मिला है और सभी विपक्षी पार्टियों को एक रास्ता दिखाया है। साथ ही उन्होंने कहा कि कर्नाटक जैसी स्थिति अन्य राज्यों में पैदा करने की जरूरत है। कर्नाटक जैसे हालात पैदा करने के लिए दूसरे राज्यों में भी मेहनत करने की जरुरत है। पवार ने एनडीए के खिलाफ विपक्षी दलों को लामबंद करने की अपील करते हुए कहा कि अलग-अलग राज्यों में समान विचारधारा वाली पार्टी एक साथ आकर जनता को एक विकल्प दे सकती हैं। कुछ महीने पहले विपक्षी एकता की कवायद पर टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी कहा था कि उनकी पार्टी लोकसभा चुनाव में अकेले लड़ेगी। कांग्रेस को दरकिनार कर विपक्षी एकता की बात ममता कर रही थी, लेकिन कर्नाटक के चुनावी नतीजे और हाल ही में नीतीश कुमार से मुलाकात के बाद से उनके रुख में कुछ बदलाव आया है। इतना ही नहीं बीजेपी के प्रति नरम रुख अपना रखने वाले नवीन पटनायक के सुर बदल गए हैं।