Header banner

केदारनाथ आपदा (kedarnath disaster) के 10 साल हुए पूरे, तबाही का मंजर

admin
kedarnath 1

केदारनाथ आपदा (kedarnath disaster) के 10 साल हुए पूरे, तबाही का मंजर

h 1 18

डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

देश भर से श्रद्धालु यहां चारधाम की यात्रा पर जाते हैं। कहा जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य ने चार मठों की स्थापना करने के बाद केदारनाथ धाम में ही समाधि ली थी। केदारनाथ मंदिर के ठीक बगल में यह समाधि बनी हुई थी, लेकिन आपदा में यह समाधि विलुप्त हो गई। राज्य सरकार दोबारा समाधि बनाने जा रही है। केदारनाथ धाम का प्रलयकारी मंजर! जिन्होंने प्रत्यक्ष देखा, उनकी आंखों में हमेशा के लिए समा गया। जिसने सुना, वह भुला नहीं सका और जिसने भोगा, उसके घाव आज तक नहीं भरे। ऐसा क्यों हुआ था? भक्तों पर आपदा क्यों आन पड़ी? कितनों के मृत शरीर नहीं मिले। कितनों की बर्फ में जीवित समाधि बन गई तो कितनों जल में.. कोई आकड़ा पूरा न हो सका।

यह भी पढें : सख्ती: लम्बे समय से गायब शिक्षकों के खिलाफ उत्तराखंड शिक्षा विभाग (Uttarakhand Education Department) ने की कार्रवाई करने की तैयारी

16 जून को केदारनाथ जल प्रलय में अपनों को खोने वालों के जख्म तो शायद ही कभी भर पाएं, लेकिन आपदा से सबक लेकर धाम को व्यवस्थित व सुरक्षित करने के प्रयास रंग लाए हैं। इस आपदा के दौरान जो कुछ अपनी आंखों से देखा और भोगा, वह शायद ही कभी भुलाया जा सकता है। हजारों लोगों असमायिक मौत के मुंह में समां गए। जबकि हजारों लोग लापता हो गए थे, जिनका आज भी कुछ पता नहीं चल पाया है। आपदा को गुजरे 10 साल हो गए हैं, लेकिन जब केदारनाथ आपदा की बात होती है, तो इस विनाशकारी त्रासदी में अपनों को खोने वाले विचलित हो जाते हैं। अपनों की तलाश में रोज सैकड़ों की तादाद में लोग यहां पहुंचते और हाथों में फोटो और पोस्टर लेकर सड़क का कोई भी कोना लेकर बैठ जाते। उस वक्त तीर्थनगरी की दीवारें मानों लापता लोगों के फोटो और पोस्टरों से पट गईं थीं। हर कोई इस उम्मीद में यहां पहुंचता की शायद उसके अपनों की खबर कहीं न कहीं से यहां तक तो पहुंच ही जाएगी।

यह भी पढें : ब्रेकिंग: उत्तराखंड में इस विभाग में हुई तबादलों (Transfers) की लिस्ट जारी, देखें पूरी सूची

आज भी करीब 4000 तीर्थ यात्री लापता है, इनका कहीं कोई सुराग नहीं लगा है। केदारनाथ धाम में2013 में जो आपदा आयी उसे विशेषज्ञ प्राकृतिक नहीं मान रहे थे। उनका यह कहना था कि यह प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का नतीजा है। मानव ने अपनी सुविधा के लिए नदियों-पहाड़ों का दोहन किया है जिसकी वजह से यह आपदा आयी। साल 2013 में जितनी बारिश हुई वह केदारनाथ के लिए असामान्य नहीं थी उतनी वर्षा वहां होती रहती है। उत्तराखंड के डिजास्टर मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर ने बताया था कि सड़क निर्माण के लिए प्रयोग हो रहे विस्फोटकों के कारण पहाड़ ज्यादा गिरे हैं। मंदाकिनी पर बन रही दो परियोजनाओं में 15 से 20 किमी की सुरंगें निर्माणाधीन थीं। ये परियोजनाएं केदारनाथ के नजदीक हैं। इन सुरंगों को बनाने के लिए भारी मात्र में विस्फोटों का प्रयोग किया गया था, जिससे पहाड़ हिल गये और टूटने लगे। मंदाकिनी नदी में पहाड़ों के बड़े-बड़े टुकड़े गिरे और आमतौर पर शांत वेग से बहने वाली मंदाकिनी मानो क्रोधित हो बिफर गयी और हजारों लोगों के लिए काल बन गयी।

यह भी पढें : सेना (Army) में भर्ती होने की तैयारी कर रहे उत्तराखंडी युवाओं के लिए अच्छी खबर: रानीखेत में 20 जून से होगी सेना की भर्ती रैली

प्रलय के बाद भी मंदिर का उसी भव्यता के साथ खड़ा रहना किसी अचरज से कम नहीं था। आज भी लोग इसे किसी चमत्कार से कम नहीं मानते। हालांकि मंदिर को उस प्रलय से बचाने में भीम शीला ने अहम योगदान रहा, जिसकी लोग अब पूजा करने लगे। बाढ़ और भूस्‍खलन के बाद बड़ी बड़ी चट्टाने मंदिर के पास आने लगी और वहीं रूक गई, जो अभी तक जस की तस है, लेकिन उसी में से एक चट्टान भी आई, जो मंदिर का कवच बन गई। इस चट्टान की वजह से ही मंदिर की एक ईंट को भी नुकसान नहीं पहुंचा। जिसके बाद इस चट्टान को भीम शिला का नाम दिया गया। यह चट्टान मंदिर के परिक्रमा मार्ग के बिल्कुल पीछे है। 2013 में हुई त्रासदी ने भोले के भक्तों में भय भर दिया था। तस्वीरें देखकर कलेजा मुंह को आ जाता था। कुदरत ने तबाही का वो खौफनाक मंजर दिखाया था, जिसे सोचकर लोग अभी भी कांप जाते हैं। आसमानी आफत ने केदार घाटी समेत पूरे उत्तराखंड में बर्बादी के वो निशान छोड़े, जिन्हें अब तक नहीं मिटाया जा सका लेकिन बीते 10 सालों में केदारनाथ धाम में फिर से रौनक लौट आई है।

यह भी पढें : ब्रेकिंग: जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा में मुठभेड़ (encounter in kupwara) में सेना ने 5 विदेशी आतंकवादी मार गिराए, सर्च ऑपरेशन जारी

केदारनाथ में तीर्थ यात्रियों का सैलाब उमड़ने से नए रिकार्ड बने हैं। इस आसमानी आफत ने केदार घाटी समेत पूरे उत्तराखंड में बर्बादी के वो निशान छोड़े, जिन्हें अब तक नहीं मिटाया जा सका है। इस जल प्रलय से प्रभावित क्षेत्रों के पुनर्निर्माण पर 2700 करोड़ रुपये खर्च हुए है। मंदाकिनी और सरस्वती नदी में बाढ़ सुरक्षा कार्य किए गए हैं। लेकिन वो भय आज भी जिंदा है। इस आपदा में लापता सरकारी आंकडों के हिसाब से इस भीषण आपदा में 3,183 लोगों का कोई पता नहीं चल पाया है। लेकिन कईयों को उम्मीद है कि उनके चहेते अब भी घर वापस लौटेंगे। बीते कई सालों तक जगह-जगह दबे हुए शव मिलते रहे हैं, तबाही इतनी ज्यादा थी कि रेस्क्यू कार्य करने में महीनों लग गए। यही नहीं रेस्क्यू के दौरान एमआई-17 हेलीकॉप्टर समेत तीन हेलीकॉप्टर दुर्घटनाग्रस्त हुए थे जिनमें 23 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। प्रकृति के रौद्र रूप के आगे भला कौन टिक पाया है लेकिन अब केदारनाथ धाम के चारों ओर सुरक्षा की दृष्टि से त्रिस्तरीय सुरक्षा दीवार का निर्माण किया गया है। लेकिन आज भी इस आपदा में कितने लोगों की जान गई इसका भी सटीक आंकड़ा किसी के पास नहीं है, हजारों लोगों की मरने की सूचना पुलिस रिकॉर्ड में दर्ज है जिनमें भारतीय ही नहीं बल्कि विदेशी नागरिक भी शामिल हैं। आपदा से अब केदारपुरी पूरीतरह उबर चुकी है. कम समय में ही पुनर्निर्माण कार्य पूरे हुए हैं।

यह भी पढें : खुशखबरी: उत्तराखंड के इस सेवायोजन कार्यालय में 24 जून को लगेगा रोजगार मेला (employment fair), 2100 पदों पर होगी भर्ती

उत्तराखंड के 200 साल से अधिक के आपदाओं के लिखित इतिहास में बहुत सारी घटनाओं के लिये कुदरत ज़िम्मेदार है लेकिन कई आपदाओं में इंसानी दखल भी स्पष्ट है। मिसाल के तौर पर जिस बिरही झील के 1894 में टूटने से कोई नुकसान नहीं हुआ वह जब1970 में फिर टूटी तो सिर्फ प्राकृतिक आपदा नहीं थी। तब अलकनंदा घाटी में बड़ी संख्या में पेड़ काटे जा रहे थे। महत्वपूर्ण है कि आज़ादी के बाद से ही हिमालयी क्षेत्र में वनांदोलन चल रहे थे और 1970 का दशक तो चिपको आन्दोलन के लिये जाना जाता ही है। इस बाढ़ में 55 लोग और 142 पशु मारे गये थे। साथ ही 6 मोटर ब्रिज और 16 पैदल यात्री पुल नष्ट हो गये। हिमालयी इतिहास के जानकार शेखर पाठक कहते हैं कि हम खुशकिस्मत रहे कि तब यहां बहुत आबादी नहीं थी।

यह भी पढें : Kedarnath dham: केदारनाथ आपदा के 10 वर्ष पूरे होने पर श्री केदारनाथ धाम पहुंचे सीएम पुष्कर धामी (Pushkar Dhami), हताहत लोगों की मुक्ति के लिए की प्रार्थना

चिपको के प्रमुख नेताओं में एक चंडीप्रसाद भट्ट कहते हैं कि उनके साथियों ने पूरे क्षेत्र में घूम-घूम कर पता किया कि जिन जगहों में बर्बादी (बाढ़, भूमि कटाव, भूस्खलन इत्यादि) हुई वहां पहाड़ों पर पेड़ों का अंधाधुंध कटान हुआ था। लेकिन 1970 की उस बाढ़ के 50 साल बाद न केवल पहाड़ पर विकास का कोई टिकाऊ मॉडल नहीं है बल्कि जो भी काम हो रहा है उसमें सभी पर्यावरणीय नियमों की अनदेखी हो रही है। केदारनाथ आपदा की बाढ़ के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ कमेटी ने अपनी जो रिपोर्ट जमा की थी उसमें ग्लेशियरों के पिघलने और पहाड़ में बड़े निर्माण कार्य (जलविद्युत परियोजनायें और उनके साथ अन्य निर्माण) को लेकर चेतावनी दी थी। दिसंबर 2014 में पर्यावरण मंत्रालय ने कोर्ट को दिये शपथपत्र में विशेषज्ञ कमेटी की सिफारिशों का संज्ञान लिया और माना कि 2,200 मीटर से अधिक ऊंचाई पर पहाड़ों में भूस्खलन का ख़तरा है। इसके बावजूद सरकार ने उत्तराखंड में कई विवादास्पद प्रोजेक्ट या तो पास कर दिये हैं या वह पाइपलाइन में हैं जबकि भू-विज्ञानियों के शोध और पर्यावरण के जानकार ऐसे प्रोजेक्ट के खिलाफ चेतावनी देते रहे हैं। हिमालयी क्षेत्र पर जलवायु परिवर्तन का असर स्पष्ट है। पिछले दो दशकों में कई वैज्ञानिक रिपोर्टों में यह चेतावनी सामने आ चुकी है। ग्लोबल वॉर्मिंग से यहां के जंगलों, नदियों, झरनों, वन्य जीवों और जैव विविधता पर तो संकट है ही अति भूकंपीय ज़ोन में होने के कारण भूस्खलन और मिट्टी के कटाव का ख़तरा ऐसे में बढ़ रहा है। सरकार कहती है कि पर्यटन और पनबिजली ही उत्तराखंड में राजस्व के ज़रिये हैं। इन दोनों ही मोर्चों पर उसकी नीति पर्यावरण के मूल नियमों से उलट है जो खुद संसद ने बनाये हैं आज 10 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी उत्‍तराखंड के लोगों के जहन में तबाही के जख्‍म हैं। आज 10 साल पूरे हो चुके हैं, लेकिन अब भी उत्‍तराखंड के लोगों के जहन में तबाही के जख्‍म हैं।

(लेखक दून विश्वविद्यालय कार्यरत हैं)

 

Next Post

ब्रेकिंग: उत्तराखण्ड में होगा आपदा प्रबंधन (Disaster Management) पर छटवीं विश्व कांग्रेस का आयोजन, 28 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2023 तक दून में प्रस्तावित

ब्रेकिंग: उत्तराखण्ड में होगा आपदा प्रबंधन (Disaster Management) पर छटवीं विश्व कांग्रेस का आयोजन, 28 नवम्बर से 1 दिसम्बर 2023 तक दून में प्रस्तावित देहरादून/मुख्यधारा आपदा प्रबंधन पर छटवीं विश्व कांग्रेस का आयोजन उत्तराखण्ड में किया जायेगा। यह आयोजन 28 […]
dhami 1

यह भी पढ़े