भारत-चीन अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर स्थित नेलांग घाटी (Nelong Valley) में पर्यटकों को मिलेगी रात्री विश्राम की सुविधा
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
सीमा पर चीन की ओर से घुसपैठ की आशंका से निपटने के लिए भारतीय सेना सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने में जुटी है। इस कड़ी में उत्तरकाशी की नेलांग घाटी में भी भारत-चीन सीमा पर सुरक्षा गतिविधियों का विस्तार किया जा रहा है। इसके लिए गंगोत्री नेशनल पार्क की ओर से सेना को 51 हेक्टेयर और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस बल (आइटीबीपी) को आठ हेक्टेयर वन भूमि दी जा रही है। देश के कई ऐसे हिस्से हैं जो आंतरिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से संवेदनशील माने जाते हैं। कई ऐसे इलाके होते हैं जहां आदिम जनजातियां हैं , नृजातीय जनसंख्या की बहुलता और उनकी नृजातीय चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भी क्षेत्रों में संचरण पर प्रतिबंध लगाया जाता है।
देश के सीमावर्ती गांव या घाटियों में भी मुक्त संचरण पर पाबंदियां लगाई जाती हैं। उसके पीछे कारण यह भी होता है कि दो देशों के मध्य संशय और विवाद की स्थिति ना उत्पन्न हो। मसलन चीन भारत से लगी अपनी सीमा पर जनसंख्या के अधिक बसाव , पर्यटकों की मुक्त आवाजाही से आशंकित होकर सीमावर्ती क्षेत्रों में कोई गलत कदम न उठाए। इसी क्रम में भारत सरकार ने इनर लाइन परमिट जैसी व्यवस्था का प्रावधान किया है और भारत के कई राज्यों में कुछ ऐसे स्थान हैं जहां नागरिकों के मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया गया है अथवा ऐसा प्रावधान किया गया है कि एसडीएम से अनुमति लेते हुए ही किसी ऐसे संवेदनशील क्षेत्र में जाया जा सकता है।उत्तराखंड के चमोली जिले के नीति वैली और उत्तरकाशी के नेलांग वैली क्षेत्र में इनर लाइन परमिट के जरिए जो मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया गया है। उसको खत्म करने के लिए उत्तराखंड सरकार ने केंद्र सरकार से गुहार लगाई है।
यहां यह समझना आवश्यक है कि उत्तराखंड सरकार ऐसे प्रतिबंधों को हटाने के लिए निवेदन क्यों कर रही है? उत्तराखंड सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्री के साथ बैठक में इन दोनों ही घाटियों से इनर लाइन परमिट को हटाने का अनुरोध किया है जिससे बेहतर सीमा प्रबंधन को दिशा दिया जा सके। इसके साथ ही उत्तराखंड सरकार का मानना है कि इनर लाइन परमिट को हटाकर यहां पर्यटन क्षेत्र के विकास के जरिए और स्थानीय आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देकर राज्य की अर्थव्यवस्था, स्थानीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती दी जा सकेगी। उत्तराखंड में इन परमिट लाइन के प्रावधान के तहत ऐसी व्यवस्था है कि पर्यटकों को चीन की सीमा से लगे हुए उत्तराखंड के जिलों पिथौरागढ़, उत्तरकाशी
चमोली आदि के कुछ क्षेत्रों में यात्रा करने के लिए औपचारिक अनुमति लेनी जरूरी है। जहां उत्तराखंड सरकार ने केवल नीति और नेलांग घाटी में इनर परमिट लाइन को हटाने का निवेदन किया है वहीं स्थानीय जनता का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए सभी अन्य क्षेत्रों में इनर परमिट लाइन की व्यवस्था को हटा देना ठीक रहेगा और इससे स्थानीय लोग सीमावर्ती क्षेत्रों में होने वाली गतिविधियों पर निगरानी भी रख सकेंगे जिससे आंतरिक सुरक्षा के कार्य में मदद मिलेगी। ऐसे तर्क के साथ उत्तराखंड सरकार और उसकी जनता गृह मंत्रालय से अनुरोध में लगी है। एक तर्क यह भी दिया गया है कि इनर परमिट लाइन हटाने से ऐसे क्षेत्रों में पलायन की समस्या रुकेगी उत्तराखंड के कई ऐसे गांव और घाटी क्षेत्र हैं जहां पर मुक्त आवाजाही पर प्रतिबंध होने के चलते आसपास के इलाकों से भी बड़ी संख्या में पलायन होता है और इससे आजीविका असुरक्षा भी उत्पन्न होती है। इसलिए इन समस्याओं के निदान के लिहाज से इनर लाइन परमिट को हटाने पर विचार किया जाना आवश्यक है।
गौरतलब है कि उत्तराखंड चीन के साथ 350 और नेपाल के साथ 275 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है। उत्तराखंड के कुल 13 जिलों में से 5 जिले बॉर्डर डिस्ट्रिक्ट के रूप में अथवा सीमा जिलों के रूप में हैं। जहां चमोली और उत्तरकाशी चीन के साथ सीमा साझा करते हैं वहीं उधमसिंह नगर और चंपावत नेपाल के साथ सीमा साझा करते हैं। वहीं पर पिथौरागढ़ अधिक संवेदनशील रूप में चीन और नेपाल दोनों के साथ सीमा साझा करता है। ऐसे में इन देशों के साथ सीमा साझा करने वाले जिलो में स्थित घाटियों व अन्य ऐसे प्रमुख क्षेत्रों जहां पर इनर लाइन
परमिट का प्रावधान किया गया है, उसके क्रियान्वयन पर तार्किक निर्णय किया जाना जरूरी है। पिछले वर्ष उत्तराखंड सरकार ने सुदूर सीमावर्ती जिलों में मोबाइल टॉवर्स को लगाने के लिए सब्सिडी देने का प्रावधान किया था ताकि सीमा क्षेत्रों में संचार तंत्र को मजबूती देते हुए सुरक्षा व्यवस्था को सही दिशा दी जा सके। नेलांग घाटी एक इनर लाइन क्षेत्र है जो भारत चीन सीमा पर स्थित है। यह केवल दिन के समय घरेलू पर्यटकों के लिए खुला रहता है।
उत्तरकाशी मुख्यालय से यह लगभग 100 किलोमीटर दूर है।इस घाटी में नेलांग और जडोंग दो गांव हैं जो 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद निर्जन हो गए थे क्योंकि युद्ध के समय लोग इन गांवों से पलायन कर डुंडा और उत्तरकाशी तहसीलों में आ गए थे। आईटीबीपी और सेना को वहां तैनात किया गया। चीन सीमा जड़ोंग गांव से 60 किलोमीटर की दूरी पर है। ऐसे में विदेशी पर्यटकों के लिए इस क्षेत्र में जाना वर्जित है जबकि घरेलू पर्यटक आईएलपी लेकर जा सकते हैं। अधिकतम 24 लोग ही यहां जा सकते हैं और रात्रि में वहां नहीं रह सकते। दिन में ही वापस लौटने का प्रावधान किया गया है। अगर आईएलपी नियमों में ढील दी गई तो यहां पर्यटकों की संख्या में वृद्धि होगी और स्थानीय लोगों के लिए आजीविका के अवसर उपलब्ध होंगे और पलायन भी रुकेगा।
पिथौरागढ़ जिले के धारचूला की व्यास घाटी में नाभी और कुटी गांवों में भ्रमण के लिए भी एसडीएम ऑफिस से इनर लाइन परमिट लेकर ही जा सकने का प्रावधान है। छियालेख से आगे जाने के लिए परमिट की जरूरत है। पिथौरागढ़ के ही मुनस्यारी के मिलम गांव की बात करें तो मिलम गांव तक पर्यटकों का जान मान्य है लेकिन मिलम घाटी के लिलम गांव से आगे जाना भी मान्य है जब इनर लाइन परमिट हो। आईटीबीपी इस क्षेत्र में एक सीमित संख्या में लोगों का आना स्वीकार करती है। वहीं चमोली के नीति घाटी की बात करें तो यह जोशीमठ में है और चीन सीमा पर अंतिम जनसंख्या वाला गांव है। विदेशी पर्यटक जोशीमठ से आईएलपी लेकर एक दिन के लिए नीति गांव का भ्रमण कर सकते हैं लेकिन रात में वहां रुकना प्रतिबंधित है।इन सब बातों से स्पष्ट है कि कुछ जरूरी संवेदनशील सुरक्षा चिंताओं के चलते घाटी क्षेत्रों
में इनर लाइन परमिट की जरूरत तय की गई है।
सीमावर्ती गांव , क्षेत्र देश के अन्य सामान्य गांवों या क्षेत्रों की तरह नहीं होते। यदि वहां इनर लाइन परमिट की व्यवस्था हटानी हो तो उसके लिए पड़ोसी देशों के साथ कैसे संबंध हैं , इस बात का ध्यान रखा जाना जरूरी है। यदि पिथौरागढ़ के नेपाल से लगी सीमा पर भारत मुक्त आवाजाही को बढ़ाता है और नेपाल यह सोच सकता है कि भारतीय भू क्षेत्रों पर उसके दावों को प्रभावहीन करने के लिए ऐसा किया जा सकता है। हो सकता है नेपाल चीन ऐसा ना सोचें और यह सोचें कि भारत का भूभाग है वह चाहे जैसी अनुमति दे उसका काम है। लेकिन इस बात की गारंटी नहीं है कि ये देश सीमावर्ती क्षेत्रों में इतने सद्भाव के साथ सोचेंगे। ऐसे में इनर लाइन परमिट हटाने से पहले घाटी क्षेत्रों में सुरक्षा , निगरानी तंत्र , द्विपक्षीय संबंधों के लिए विश्वास पूर्ण माहौल निर्मित करना जरूरी है। यहां गौर करने लायक बात यह भी होनी चाहिए कि भारत और बांग्लादेश ने त्रिपुरा और मेघालय के बांग्लादेश से लगी सीमा पर बॉर्डर हाट ( सीमा बाजार ) खोलने के लिए अपने द्विपक्षीय विश्वास के लिए लंबे समय तक कार्य कर सकारात्मक माहौल बनाया जिससे दोनों देश साझे रूप से सहमत हो जाएं कि सीमावर्ती क्षेत्रों में ऐसी कार्यवाहियां स्थानीय सीमा व्यापार के लिए हैं न कि रणनीतिक लाभों के लिए। भारत-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर स्थित नेलांग घाटी में रात को भी पर्यटक ठहर सकेंगे। पहले इनरलाइन बाध्यताओं के चलते यहां पर रात को रूकने की मनाही थी। लेकिन अब इस रोक को हटा दिया गया है। (इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।)