उत्तराखंड(Uttarakhand) में डरा देने वाले हालात
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
उतराखण्ड पिछले हफ्ते उत्तराखंड में हुई भारी बारिश के कारण राज्य की चार प्रमुख नदियों ने अपना रास्ता बदल लिया है। इसके बाद वन विभाग को नदी चैनलों और इस परिवर्तन के प्रभाव पर स्टडी करने के लिए आईआईटी.रुड़की को की मदद ले रहा है। 17 अक्टूबर से विनाशकारी बारिश के बाद वन विभाग ने पाया कि कुमाऊं कोसी गौला नंधौर और डबका में उफनती नदियों ने अपना मार्ग बदल दिया है। कुछ क्षेत्रों में यह लोगों की बस्तियों की ओर बहने लगी हैं। वहीं अन्य क्षेत्रों मेंए परिवर्तन ने वन विभाग के खनन और पेट्रोलिंग जैसे कार्यों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है।
पश्चिमी सर्कल (उत्तराखंड) के मुख्य वन संरक्षक ने बताया कि नदियों के मार्ग में बदलाव हमारे लिए एक चिंता का विषय है। उत्तराखंड के तमाम इलाकों में बारिश के कारण नदियां उफान पर हैं। बारिश के कारण पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन की घटनाएं हो रही हैं। वहीं देहरादून समेत तमाम हिस्सों में नदियों का जलस्तर बढ़ने के कारण तटीय इलाकों में खतरा बना हुआ है। हादसे का मुख्य कारण ऑल वेदर रोड के लिए सड़क की कटिंग को माना जा रहा है। इस भूस्खलन की चपेट में आकर इलाके की पेयजल लाइनए बिजली लाइन गांव जाने वाला मार्ग क्षतिग्रस्त हो चुका है बारिश के कारण पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन बारिश के कारण पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन उत्तराखंड में एक बार फिर से मौसम की मार झेल रहा हैए लगातार हो रही बारिश से उत्तराखंड के लागों को काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। यहां लगातार बारिश हो रही है और पहाड़ों में भूस्खलन हो रहे हैं।
मौसम के इस कहर की वजह से उत्तराखंड में प्रलय जैसी स्थिति बन गई है। भूस्खलन के कारण कई घर तबाह हो गए हैं वहीं कई लोगों की जान चली गई है। उत्तराखंड में बारिश और भूस्खलन के कारण कई सड़कें बह गई हैं। लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाने के लिए सरकार लगातार प्रयास कर रही है।
मौसम विभाग का कहना है कि उत्तराखंड के कई जिलों में भारी बारिश की संभावना है। देहरादूनए टिहरी ,पौड़ी, नैनीताल, बागेश्वर, चंपावत और पिथौरागढ़ में चमक के साथ तेज बारिश होने का येलो अलर्ट जारी किया गया है। उत्तराखंड में भी भूस्खलन और बादल फटने से 10 लोगों की मौत हो गई है। वहीं मद्महेश्वर धाम में भारी बारिश के कारण वहां फंसे सभी 293 लोगों को बचा लिया गया है। बचाए गए लोगों में अधिकतर श्रद्धालु हैं। अधिकारियों ने कहा कि चमोली जिले के हेलंग में एक घर ढह जाने से दो सौतेले भाइयों की मौत हो गई और पांच अन्य घायल हो गएए जबकि दो दिन पहले एक रिसॉर्ट में भूस्खलन के बाद मलबे में दबे सभी लोगों के शव पौडी जिले के मोहनचट्टी में बरामद कर लिए गए।
रुद्रप्रयाग जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी ने कहा कि मद्महेश्वर धाम में राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल ;एसडीआरएफद्ध और पुलिस द्वारा बचाव और राहत अभियान पूरा हो गया है और वहां फंसे अधिकांश श्रद्धालुओं सहित सभी 293 लोगों को बचा लिया गया है। रस्सी नदी पार करने की विधि।और हेलीकॉप्टर के जरिए सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। उत्तराखंड में विभिन्न क्षेत्रों में भूस्खलन के कारण मलबा आने से 323 सड़कें बंद हैं। प्रदेश के विभिन्न जिलों में बारिश के कारण भूस्खलन होने से दर्जनों मार्ग बाधित हैं।
ऋषिकेश बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग चमोली जिले में पीपलकोटी और टंगणी में मलबा आने के कारण अवरूद्ध हैए जिसे खोलने का प्रयास किया जा रहा है। अलकनंदा नदी का पानी चेतावनी स्तर से उपर बहने के कारण पौड़ी जिले के श्रीनगर जलविद्युत परियोजना के बांध से 2000-3000 क्यूमैक्स पानी छोड़ा गया। इस संबंध में राज्य आपातकालीन परिचालन केंद्र ने टिहरीए पौड़ीए देहरादून और हरिद्वार के जिलाधिकारियों को सावधानी बरतने के निर्देश दिए हैं। पहाड़ी राज्यों में कमजोर पहाड़ों से होने वाला भूस्खलन बड़ी दुश्वारी और चुनौती का सबब बना हुआ है।
सबसे बड़ी बात यह है कि भूस्खलन से निजात पाने के तमाम दावे हवा.हवाई साबित हो रहे हैं। आलम यह है कि ऑलवेदर रोड भी अपने नाम को सार्थक नहीं कर पा रही है। ऑलवेदर रोड हर मौसम में भूस्खलन की वजह से आए दिन बाधित हो रही है। इससे इसकी गुणवत्ता पर भी सवाल उठने लगे हैं। सरकारी तंत्र भूस्खलन को लेकर संवेदनशील नहीं है। न सभी आशंकित जोनों की निगरानी हो रही और न ही किसी प्रकार का चेतावनी सिस्टम ही लगाया गया है। प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्रों में भूस्खलन जोन बढ़ते ही जा रहे हैं। इनसे खासतौर पर मानसून के दिनों में यात्रा करना खतरे से खाली नहीं है। कब किस सड़क पर पहाड़ से गिरकर मलबा और बोल्डर आ जाएए कहा नहीं जा सकता है। प्रदेश में इस समय करीब 84 डेंजर जोन (भूस्खलन क्षेत्र) सक्रिय हैं।
आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में कुल जमीन में से 12 फ़ीसदी जमीन ऐसी है जो भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील है। भूस्खलन के लिहाज से उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के अलावा देश के पश्चिमी घाट में नीलगिरि की पहाड़ियांए कोंकण क्षेत्र में महाराष्ट्र, तमिलनाडु,कर्नाटक और गोवा, आंध्र प्रदेश का पूर्वी क्षेत्रए पूर्वी हिमालय क्षेत्रों में दार्जिलिंग, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश,पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर और उत्तराखंड के कई इलाके भूस्खलन के लिहाज से बेहद संवेदनशील हैं।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )