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उत्तराखंड की गेवाड घाटी (Gevad Valley) में दबा है एक ऐतिहासिक शहर!

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उत्तराखंड की गेवाड घाटी (Gevad Valley) में दबा है एक ऐतिहासिक शहर!

Harishchandra Andola

डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

उत्तराखंड की धरती अपने आप में कई रहस्यों को समेटे हुए है। यहां प्रागैतिहासिक काल के सबूत मिलते रहे हैं, कुमाऊं सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में भी एक पौराणिक शहर होने की संभावना जताई है। चौखुटिया को वैराट के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि वर्तमान चौखुटिया हिंदू महाकाव्य महाभारत के राजा विराट की राजधानी थी। हिंदू महाकाव्य महाभारत के अनुसार विराट एक राजा थे जिनके दरबार में पांडवों ने अपने निर्वासन के दौरान छिपकर एक वर्ष बिताया था। विराट का विवाह रानी सुदेष्णा से हुआ था और वह राजकुमार उत्तरा और राजकुमारी उत्तरा के पिता थे, जिन्होंने अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु से विवाह किया था  इस प्रकार हर बार हम देख सकते हैं कि यह स्थान महान महाकाव्य महाभारत से संबंधित है। तो अगर आप एक खोजकर्ता हैं तो यह जगह निश्चित रूप से आपके लिए एक खजाना है।

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चौखुटिया गेवार घाटी या गेवर घाटी का एक सुंदर छोटा सा शहर है (चौखुटिया, द्वाराहाट, तारगताल, खीरा, नैथाना, जौरासी, मासी,नाइगार से लेकर पूरा क्षेत्र गेवार घाटी या गेवार घाटी के अंतर्गत आता है)। गेवाड़ घाटी के मनमोहक परिदृश्य और हरियाली के कारण लोगों ने इस स्थान को कई नाम दिए थे। आज भी लोग इसे ‘नवरंगी गेवार’ या ‘रंगीलो गेवार’ कहते हैं, इसे कुमाऊ का कश्मीर भी कहा जाता है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में रामगंगा नदी के तट पर स्थित गेवाड घाटी में खुदाई की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी है।

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एएसआई को भरोसा है कि गेवाड घाटी की मिट्टी के नीचे एक बहुत पुराना शहर दबा हो सकता है। ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक एएसआई के अधिकारियों ने कहा कि एएसआई विशेषज्ञों की एक टीम पहले ही घाटी का सर्वेक्षण कर चुकी है और खोई हुई बस्ती का पता लगाने की कवायद जल्द ही शुरू हो सकती है। एएसआई ने बताया कि इस इलाके के बारे में सर्वेक्षण रिपोर्ट काफी ठोस है।एएसआई (Archaeological Survey of India) ने कहा कि चौखुटिया इलाके के तहत आने वाली घाटी के आगे के अध्ययन के लिए एक उन्नत सर्वेक्षण चल रहा है। खुदाई के लिए एक प्रस्ताव तैयार किया जा रहा है। एएसआई के एक अधिकारी ने कहा कि रामगंगा नदी के साथ 10 किमी तक फैले इस इलाके में समतल जमीन है। जिसमें 9वीं और 10वीं शताब्दी के कई मंदिर हैं। इनको कत्यूरी शासकों ने बनावाया था। सदियों पुराने मंदिरों के समूह की मौजूदगी यह दिखाती है कि मंदिरों के बनने से पहले भी वहां को ई सभ्यता रही होगी।

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एएसआई को हाल ही में कई छोटे मंदिर मिले हैं, जिनकी ऊंचाई एक से दो फीट है। इससे पहले भी 1990 के दशक में उस इलाके में एक सर्वेक्षण किया गया था। गढ़वाल विश्वविद्यालय के प्राचीन भारतीय इतिहास, संस्कृति और पुरातत्व विभाग ने 9वीं शताब्दी में बने गणेश के एक मंदिर और नाथ संप्रदाय के सात अन्य मंदिरों का पता लगाया था। जिससे पता चलता है कि उस इलाके में मानव निवास मौजूद था। 1993 में हुए इस सर्वे में हिस्सा लेने वाली टीम को खुदाई के दौरान माध्यम आकार की कब्रें और बड़े जार मिले, जिनमें मृतकों के अवशेष रखे गए थे।सर्वे टीम को चित्रित मिट्टी के बर्तन और कटोरे भी मिले। ये मेरठ के हस्तिनापुर और बरेली के अहिच्छत्र में गंगा के दो आब (Gangetic Doab) में पाए जाने वाले मिट्टी के बर्तनों के समान हैं, जो पहली -पांचवीं शताब्दी ईसा पूर्व के हैं। हालांकि उस समय वहां कोई मानव बस्ती नहीं मिली। मगर सर्वे के नतीजों से संकेत मिलता है कि एक खोया हुआ शहर खुद को खोजे जाने का इंतजार कर रहा है।

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यह एएसआई के लिए एक बड़ी सफलता हो सकती है। विशेष रूप से हाल ही में उसी इलाके में एक 1.2 मीटर ऊंचा और लगभग 2 फीट व्यास का विशाल शिवलिंग मिला है। पुरातत्वविदों के अनुमान के मुताबिक दुर्लभ शिवलिंग 9वीं शताब्दी का है और यह कत्यूरी शासकों के मंदिरों में से एक का था,जो बाद में गायब हो गया।वहीं मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के देहरादून सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद कहते हैं कि अगर हमें कोई ठोस सबूत मिलता है तो मामले में आगे बात करेंगे और तब खुदाई की परमिशन के लिए बात करेंगे।

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उनका कहना है कि जानकारों और उस क्षेत्र की भौगोलिक परिस्थितियों को देखकर लगता है कि नदी किनारे कभी कोई सभ्यता रही होगी। इसीलिए कई पहलुओं को देखने के बाद इस निष्कर्ष पर पहुंचे हैं। बतादें कि गेवाड़ घाटी में चौखुटि या विकासखंड, द्वाराहाट में तड़गताल, नैगड़, जौरासी , नैथना, खिड़ा, मासी तक के क्षेत्र शामिल हैं। अब यहां जमीन में दफ्न पुराने शहर के सबूत तलाशे जा रहे हैं। आने वाले समय में गेवाड़ घाटी का कोई पुराना शहर (Almora Survey ASI) दुनिया के सामने आ सकता है, जो कि उत्तराखंड के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।

( लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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