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गंगा नदी (Ganga River) भारत के लिए जीवनदायिनी ?

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गंगा नदी (Ganga River) भारत के लिए जीवनदायिनी ?

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डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला

भारत वासियों के लिए जीवनदायिनी और युगों युगों से अविरल बहती पतित पावनी गंगा को लेकर उत्तराखंड के वाडिया इंस्टीट्यूट की ओर से बहुत बड़ा शोध किया गया है। जिसके आधार पर स्पष्ट किया गया है कि यदि भविष्य में जलवायु परिवर्तन इसी प्रकार बना रहा, तो वह दिन दूर नहीं जब धीरे धीरे गंगा भी प्राचीन नदी सरस्वती की भांति विलुप्त हो जाएगी। इसका प्रमुख कारण यह है कि गंगोत्री ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के चलते तेजी से पिघलने लगा है। गंगा जो हमारे भारत देश की पहचान व जीवनदायिनी है, यहां का प्रत्येक नागरिक अत्यंत शान के साथ कहता है कि हम उस देश के निवासी है जहां गंगा बहती है। वही गंगा जिसे कालांतर में राजा भागीरथ सैकड़ों वर्षो की तपस्या के बाद अपने पितरों की मुक्ति हेतु स्वर्गलोक से पृथ्वीलोक पर लेकर आये थे। गंगा को हमारे देश का जल संपदा का प्रतीक माना जाता है। जो कि हमारी जीवनदायिनी भी है, आज उसी गंगा का जीवन भी खतरे में है।

गंगा नदी, जिसकी उत्पत्ति का स्त्रोत ही गंगोत्री ग्लेशियर है। वह बीते 87 वर्षों में जिस प्रकार 1700 मीटर तक खिसक चुका है, वह वाकई चिंताजनक है। देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालय जियोलॉजी के साइंटिस्ट और उनकी टीम के द्वारा की गई स्टडी बताती है कि वर्ष 1935 से लेकर 2022 तक गंगोत्री ग्लेशियर के मुहाने वाला हिस्सा लगभग पौने दो किलोमीटर तक पिघल चुका है। गंगोत्री ग्लेशियर 1935 -1996 तक जहां प्रति वर्ष 20 मीटर तक पिघलता था, उसकी रफ्तार अब बढ़कर 38 मीटर प्रतिवर्ष हो गई है। गंगा नदी जिसे भारत में मां के रूप में पूजा जाता है। गंगा नदी का एक स्नान कहते हैं, जिंदगी सवार देती है। शारीरिक कष्ट तक मिटा देते हैं। गंगा नदी का जल इतना पवित्र, पावन और पौष्टिक है, कि मन का गंदगी तथा शारीरिक गंदगी दोनों को धूल देती हैं।

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हिमालय में मौजूद गंगोत्री से निकलकर समुंदर में समाहित होने तक गंगा पूरे भारतवर्ष में ना जाने कितने जीव को जीवन प्रदान करते हैं। यू कहे तो गंगा भारत की शान के रूप में मानी जाती है।गंगा नदी की महत्व सिर्फ हिंदू धार्मिक दृष्टि से ही नहीं, बल्कि गंगा को भारत में जीवन- दायिनी के रूप में भी देखा जाता है। गंगा गंगोत्री से निकलकर लगभग 2525 किलोमीटर का सफर के बाद समुद्र में समाहित हो जाती है। गंगा की गहराई औसतन 16 मीटर है, लेकिन कहीं-कहीं गंगा नदी 30 मीटर से ज्यादा गहरी मिलती है। गंगा की सफर में गंगा में बहुत सी नदियां समाहित होती हैं। उनमें से मुख्य है गोमती, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानंदा, यमुना और पुनपुन। भारत की इकोनामी में गंगा एक
अहम योगदान देती है। लगभग 386000 वर्ग मील भूमि को उपजाऊ बनाने का श्रेय गंगा नदी को ही जाता है। गंगा नदी के तट पर पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा लोग रहते हैं। गंगा नदी ना सिर्फ इंसानों को ही जीवन प्रदान करती है। बल्कि लाखों जानवरों ,पक्षियों तथा मछलियों की घर है। गंगा नदी अल्पाइन जंगल जोकि गोमुख के समीप है।वहां से मैदानी भाग तक भिन्न-भिन्न इकोसिस्टम को मदद करती है।

गंगा नदी पूरे दुनिया में खास तौर पर भारत की सबसे बड़ी तीर्थ यात्रा दर्शन के लिए जानी जाती है। चाहे वह ऋषिकेश हो या हरिद्वार, वाराणसी हो या प्रयागराज या फिर कोलकाता। पूरे दुनिया की सबसे बड़ी डेल्टा गंगा नदी के अंत में बनती है। जिसे सुंदरवन के नाम से जाना जाता है। जिसे 1997 में यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित कर दिया गया है। यह करीब 105000 किलोमीटर से भी ज्यादा भूमि में स्थित है। जीवनदायिनी गंगा का जल अब पुण्य का नहीं वरन‍‍् कष्ट का सबब बन गया है। यदि 1986 से गंगा की सफाई पर सरकार द्वारा किये गये खर्च को छोड़ भी दिया जाये तो देश में 2014 में मोदी के सत्तारूढ़ होने के बाद से केन्द्र ने लाखों करोड़ रुपये के बजट के साथ 409 परियोजनाएं शुरू की हैं। सरकार ने नेशनल मिशन फार क्लीन रिवर गंगा को 2014-15 से 31 जनवरी, 2023 तक 14084.72 करोड़ की राशि जारी की है।

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31 दिसम्बर, 2022 तक 32,912,40 करोड़ की लागत से 409 प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया जा चुका है। इनमें 232प्रोजेक्ट पूरे हो चुके हैं और 2026 तक के लिए केन्द्र सरकार ने 22,500 करोड़ की राशि की स्वीकृति भी दे दी है। उसके बावजूद गंगा नदी की सफाई का मुद्दा इतने सालों बाद आज भी अनसुलझा है। दुखदायी बात तो यह है कि गंगा के पूरे बहाव क्षेत्र के 71 फीसदी इलाके में कोलीफार्म की मात्रा खतरनाक स्तर पर पायी गयी है। जहां तक नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का सवाल है, उसके मुताबिक भी गंगा के 60 फीसदी हिस्से में बिना किसी ट्रीटमेंट के सीधे गंदगी बहायी जा रही है। इसका परिणाम यह है कि गंगा का जल पीना तो दूर, वह अब आचमन लायक भी नहीं रह गया ।मौजूदा हालात में गंगा जल को देश में चार जगहों यथा ऋषिकेश (उत्तराखंड), मनिहारी व कटिहार (बिहार),साहेबगंज व राजमहल (झारखंड) में ग्रीन कैटेगरी में रखा गया है।

गौरतलब है कि ग्रीन कैटेगरी का मतलब यह है कि वहां का पानी कीटाणुओं को छानकर पीने में इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि उत्तर प्रदेश में तो 25 जगहों से ज्यादा का पानी ग्रीन कैटेगरी में शामिल है ही नहीं। इन जगहों पर गंगा जल को हाई लेवल पर साफ करने के बाद ही पीने योग्य बनाया जा सकता है। 28 जगहों का पानी तो नहाने लायक ही नहीं है। इसका सबसे ज्यादा और अहम कारण सॉलिड और लिक्विड वेस्ट है जो सीधे-सीधे गंगा में गिराया जा रहा है।  यूनिवर्सिटी आफ शिकागो के एनर्जी पॉलिसी इंस्टिट्यूट के शोध में खुलासा हुआ है कि गंगा के किनारे लगते मैदानी इलाकों में प्रदूषण का स्तर बढ़ते जाने से लोगों की उम्र कम हो रही है। अब तो यह भी साबित हो चुका है कि गंगा के पानी में घुले एंटीबायोटिक घातक साबित हो रहे हैं।

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यूनिवर्सिटी आफ यार्क के वैज्ञानिकों के शोध के निष्कर्षों के मुताबिक संयुक्त राष्ट्र ने एंटीबायोटिक की प्रतिरोधक क्षमता समाप्त होने को वर्तमान में स्वास्थ्य सम्बंधी समस्याओं में सबसे बड़ी समस्या माना है।विडम्बना है कि गंगा से जुड़ी सरकारी संस्थाएं इस तथ्य को नजरअंदाज करती आ रही हैं। असलियत में धार्मिक भावना के वशीभूत होकर गंगा के पानी में बहुत बड़ी तादाद में लोग नहाते हैं। यही नहीं, उसके जल का आचमन भी करते हैं। इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया सीधे शरीर में प्रवेश कर जाता है और शरीर पर अपना असर दिखाने लगता है। उल्लेखनीय है कि गोमुख से लेकर गंगासागर में मिलने तक गंगा कुल 2525 किलोमीटर का रास्ता तय करती है। गंगा के इस सफर में कुल 445 किलोमीटर हिस्सा बिहार में पड़ता है। यहां 730 मिलियन लीटर सीवर का पानी बिना शोधन के सीधे गंगा में गिराया जा रहा है। यहां हानिकारक कीटाणुओं की तादाद इतने खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है जिससे चर्म रोग होने के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। यहां टोटल कोलीफार्म और फीकल कोलीफार्म का स्तर औसत से कई गुणा ज्यादा है।

गंगा देश की संस्कृति और आस्था की पहचान है। लेकिन अब यह देशवासियों के स्वास्थ्य के लिए चुनौती है। इसके जल के पान की बात तो दीगर है, इसमें स्नान भी सेहत के लिए चुनौती साबित हो रहा है। क्योंकि अधिकांश जगहों पर कोलीफार्म बैक्टीरिया की मात्रा मानकों से 45 गुणा अधिक पायी गयी है। गंगा के प्रदूषित जल में जानलेवा बीमारियां पैदा करने वाले ऐसे जीवाणु मौजूद हैं जिन पर अब एंटीबायोटिक दवाओं का असर नहीं होता। हालिया अध्ययन इसके प्रमाण हैं जिन्होंने गंगा नदी बेसिन में माइक्रोप्लास्टिक के उच्च प्रसार का खुलासा किया है।

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माइक्रोप्लास्टिक बायोडिग्रेबल नहीं होता। वह पर्यावरण में जमा होता रहता है। ये समुद्री, पारिस्थितिक तंत्र और मीठे पानी के तंत्र को प्रदूषित करते रहते हैं और कई सरीसृप, मीन और पक्षी प्रजातियों के लिए खतरा हैं। इनकी गंगा में मौजूदगी मानव स्वास्थ्य ही नहीं, प्राणिमात्र के लिए भीषण खतरा है।बीते माह ही एनजीटी ने गंगा में प्रदूषण सम्बंधी एक याचिका की सुनवाई के दौरान गंगा में प्रदूषण की मौजूदा स्थिति जानने हेतु एक समिति के गठन को मंजूरी दी है ताकि इस सम्बंध में सही तथ्यात्मक स्थिति की जानकारी हो सके और तात्कालिक रूप से उपचारात्मक कार्रवाई हो सके।

एनजीटी अध्यक्ष न्यायमूर्ति की पीठ ने इस बारे में कहा कि यह याचिका पर्यावरण मानदण्डों के अनुपालन से सम्बंधित एक अहम मुद्दा उठाती है। यह समिति सही तथ्यात्मक स्थिति और आरोपों की सत्यता का पता लगायेगी। यहां यह जान लेना जरूरी है कि गंगा शुद्धि के अभियान में केन्द्र सरकार के सात मंत्रालयों की साख द पर आंच है, वे पूरे जी-जान से गंगा की सफाई अभियान में लगे हैं। हकीकत में गंगा तब तक साफ
नहीं होगी जब तक स्थानीय निकाय ईमानदारी से अपनी भूमिका का निर्वहन न करने लग जायें और इस अभियान में जनभागीदारी की अहमियत समझते हुए उनका सहयोग लिया जाये।  ग्लेशियर पिघलने की वजह हिमपात में कमी और अत्याधिक बारिश होने के साथ ही अपर हिमालय क्षेत्रों का तापमान बढ़ना भी है। और कहीं न कहीं हम सभी इन सभी कारणों के लिए दोषी हैं क्योंकि जैसे जैसे कार्बन फुटप्रिन्ट बढ़त है वैसे वैसे ग्लोबल वार्मिंग बढ़ती है, जिससे जलवायु परिवर्तन देखने को मिलता है। मौसम के पैटर्न में जिस प्रकार बदलाव आ रहा है, उससे महसूस किया जा सकता है कि हिमालय के ग्लेशियर खतरे में हैं और इसका सर्वाधिक प्रभाव नदियों पर ही बढ़ेगा।

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वैसे शोधकर्ताओं का कहना है कि अगर मौजूदा दर से भी ग्लेशियर पिघलता रहा तो करीब 1,500 वर्षों में गंगोत्री ग्लेशियर पूरी तरह पिघल सकता है। हालांकि उन्होंने कहा है कि पर्याप्त डेटा के अभाव में यह कहना उचित नहीं है लेकिन भविष्य में जब हमारे पास और अधिक डेटा होगा तो हम बेहतर अनुमान लगा सकेंगे। लेकिन तब तक हमें इस नुकसान की भरपाई करने के उपायों की ओर ध्यान देना चाहिए। जिस दिन गंगा सूख जाएंगी, भारत की गति रुक जाएगी। जब तक लोगों में श्रद्धा व निष्ठा बनी रहेगी तब तक जीवनदायिनी गंगा का अस्तित्व बना रहेगा। वे सिकुड़ गईं हैं लेकिन आस्था में कोई कमी नहीं आई है। पर्याप्त डेटा के अभाव में यह कहना उचित नहीं है लेकिन भविष्य में जब हमारे पास और अधिक डेटा होगा तो हम बेहतर अनुमान लगा सकेंगे। लेकिन तब तक हमें इस नुकसान की भरपाई करने के उपायों की ओर ध्यान देना चाहिए। गंगा को बचाना है तो सभी को संकल्प लेना होगा।

 ( लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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