समान कार्य के लिए समान वेतन (equal pay for equal work) अस्थायी कर्मचारियों पर होगा लागू?
डॉ० हरीश चन्द्र अन्डोला
आज से लगभग 47 वर्ष पहले संसद में पास ठेका मजदूर (संचालन एवं उन्मूलन) कानून 1970 के केंद्रीय रूल 1971 के अंतर्गत धारा 25(5) के अनुसार, “अगर कोई ठेकेदार के द्वारा न्युक्त ठेका वर्कर अपने प्रधान नियोक्ता द्वारा न्युक्त वर्कर के बराबर कार्य करता है, तो ठेकेदार के द्वारा काम करने वाले ठेका वर्कर का वेतन, छुटटी और सेवा शर्ते उस संस्था के प्रधान नियोक्ता के वर्कर के बराबर होगा”.देश की संसद ने बनाया था। कानून बनाते समय सरकार ने यह माना था कि ठेका मजदूरों को रोजगार के लिए रखे जाने के चलते कई समस्याएं सामने आ रही हैं। इसके पूर्ण रूप में खात्मे के लिए ही संसद में काफी सोच विचार के बाद उपरोक्त कानून बनाया गया था।
दूसरी पंच वर्षीय योजना में योजना आयोग ने त्रिपक्षीय कमेटियों (सरकार-मालिक-मजदूर) की सिफारिश व आम राय से यह माना था कि कुछ समय पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने प्रदेश के एक निर्णय देते हुए प्रदेश सरकार को इन्हें समान कार्य के लिए समान वेतन के हिसाब से मानदेय देने के निर्देश दिए। अब इसी क्रम में केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण मंत्रालय ने समान कार्य के लिए समान वेतन देने संबंधी आदेश जारी किए हैं। इसमें स्पष्ट किया गया है कि जहां दैनिक वेतनभोगी सरकारी कर्मचारियों के भांति ही कार्य कर रहे हैं वहां उन्हें सरकारी कर्मचारियों को दिए जा रहे न्यूनतम वेतन के तीसवें भाग को प्रतिदिन के मानदेय के हिसाब से भुगतान देना होगा। जहां दैनिक वेतनभोगियों के कार्य की प्रकृति सरकारी कर्मचारी की कार्य प्रकृति से भिन्न है, वहां राज्य अथवा केंद्र के श्रम विभाग द्वारा घोषित मानदेय दिया जाएगा।
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इसमें यह भी कहा गया है कि नियमित प्रकृति के सरकारी कार्यो के लिए दैनिक वेतन भोगियों को प्रशिक्षित किया जाए। केंद्रीय कार्मिक मंत्रालय के इस आदेश से प्रदेश में दैनिक वेतनभोगियों को भी समान कार्य समान वेतन मिलने की उम्मीद बलवती हुई है। कारण यह कि होमगार्ड्स के बाद अब प्रदेश के विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत उपनल, पीआरडी व दैनिक वेतन भोगी भी सरकार से समान कार्य समान वेतन देने की मांग कर रहे हैं। भारतीय संविधान के भाग 4 – राज्य के नीति निर्देशक तत्व में काम करने का अधिकार और समान कार्य के लिए समान वेतन का प्रावधान है।जैसा कि भाग4 के नाम “राज्य के नीति निर्देशक तत्व” से स्पष्ट है कि ये अनुच्छेद केवल राज्य के कानून बनाने में सहायता और मार्गदर्शन के लिए बनाए गए हैं। इन्हें अधिकार के रूप में नहीं माना जा सकता है। अतः ये राज्य की जिम्मेदारी है कि वह नियम या कानून बनाते समय इनका पालन करे परन्तु बाध्य है।
सुप्रीम कोर्ट ने भी 26 अक्टूबर 2016 को ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ के सिद्धांत पर मुहर लगाते हुए कहा अस्थायी कामगार भी स्थायी की तरह मेहनताना पाने के हकदार हैं। उपनल कर्मचारी अपनी इस मांग को विभिन्न मंचों से उठा चुके हैं। लेकिन जिम्मेदारों से कोरे आश्वासन के सिवा उन्हें अभी तक कुछ नहीं मिल पाया है। वेतन को लेकर प्रदेश में उपनल कर्मचारियों की कोई नियमावली भी नहीं है। ये उपनल कर्मी सरकारी विभागों में आउटसोर्स पर विभिन्न पदों में कार्य कर रहे हैं। लेकिन इनके वेतन में कोई समानता नहीं है। इन कर्मचारियों को समय पर वेतन भी नहीं मिलता। सालों साल सरकारी विभागों में काम करने के बाद भी कभी भी इन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। जिससे उनका भविष्य भी सुरक्षित नहीं है।उपनल कर्मचारी कहते हैं कि उपनलकर्मियों के साथ सरकार छलावा कर रही है। हम काम तो करते है लेकिन छः-छः महीने बीत जाते हैं वेतन नहीं मिलता। जिससे घर-परिवार चलाना कभी-कभी मुश्किल हो जात है।
उपनलकर्मियों बीएलओ से लेकर आपदा तक हर कार्य में घसीटा जाता है लेकिन वेतन नाममात्र का दिया जाता है। वे सवाल उठाते है कि महंगाई के इस दौर में क्या के वेतन में घर चलाया सकता है। प्रधानमंत्री के नेतृत्व में केंद्र सरकार समाज के हर वर्ग, हर तबके के लोगों का ध्यान रख रही है। सरकार की हमेशा यही कोशिश रहती है कि समाज के हर वर्ग को उसके अधिकार मिलें और किसी भी स्तर पर उनका शोषण न हो सके। प्रधानमंत्री ने केंद्र सरकार के तहत आने वाले लगभग दस लाख कर्मचारियों को बड़ा तोहफा दिया है। सरकार ने समान काम-समान वेतन के सिद्धांत को लागू करते हुए विभिन्न विभागों में काम करने वाले अनियमति केंद्रीय कर्मचारियों को नियमति कर्मचारियों के समान वेतन देने का आदेश दिया है। पीएमओ के अधीन कार्मिक और प्रशिक्षण विभान ने इस संदर्भ में शासनादेश है।हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने समान काम के लिए समान वेतनमान दिए जाने के आदेश पारित किए हैं।
कोर्ट ने कहा कि समान काम के लिए समान वेतन केवल मात्र नारा ही नहीं, बल्कि एक मौलिक अधिकार भी है। न्यायमूर्ति जे एस खेहर और न्यायमूर्ति एस ए बोबडे की एक पीठ ने कहा कि हमारे दृष्टिकोण में श्रम के फल का कृत्रिम मानक चिन्हित करना गलत है। समान कार्य करने वाले एक कर्मचारी को दूसरे से कम भुगतान नहीं किया जा सकता है, जो कि समान कार्य और जिम्मेदारी निभाता है। समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत दिहाड़ी, अस्थायी और अनुबंध पर काम करने वाले ऐसे कर्मचारियों पर लागू होगा जो कि नियमित कर्मचारियों की तरह का काम करते हैं।कल्याणकारी राज्य में हरगिज नहीं।
उपनल महासंघ के अध्यक्ष ने कहा कि सरकार जल्द से जल्द हाईकोर्ट के नियमितीकरण और समान काम के बदले समान वेतन दिए जाने के आदेश को लागू करे। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई एसएलपी को सरकार को वापस लेना चाहिए।और इनमें से कुछ ऐसे कर्मचारी जिन्होंने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा उपनल कर्मी के रूप में बिता दिया है, लेकिन अभी तक उनकों सेवा सुरक्षा नहीं मिल पाई है। उन्होंने कहा कि इनका नियमितीकरण बहुत पहले हो जाना चाहिए था, लेकिन सरकार उनकी मांगों को गंभीरता से नहीं ले रही है। प्रदेश में दैनिक वेतनभोगियों को भी समान कार्य समान वेतन मिलने की उम्मीद बलवती हुई है। कारण यह कि
होमगार्ड्स के बाद अब प्रदेश के विभिन्न कार्यालयों में कार्यरत उपनल, पीआरडी व दैनिक वेतन भोगी भी सरकार से समान कार्य समान वेतन देने की मांग कर रहे हैं।
(लेखक वर्तमान में दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)