उत्तराखंड सरकार को राज्य पक्षी मोनाल से मोह नहीं - Mukhyadhara

उत्तराखंड सरकार को राज्य पक्षी मोनाल से मोह नहीं

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उत्तराखंड सरकार को राज्य पक्षी मोनाल से मोह नहीं

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

मोनाल को उत्तराखंड गठन के बाद वर्ष 2000 में राज्य पक्षी का दर्जा तो दिया गया, लेकिन इसके बाद इसे भुला दिया गया। हालांकि 2008 में इसके संरक्षण की ओर सरकार का ध्यान गया और राज्यपक्षी की गणना कराई गई, लेकिन इसके बाद से इस प्रजाति की आज तक कोई गणना नहीं हुई कि इनकी संख्या में बढ़ोत्तरी हुई है या नहीं। एक जानकारी के नुसार बीते इन 10 र्षों के दौरान मोनाल की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार से लेकर मांसाहार तक इस पक्षी की कमी की वजह हैं। हिमालयी रेंज में पाई जाने वाले पक्षियों की जिन आधा दर्जन प्रजातियों को दुर्लभ घोषित किया गया है, उनमें मुख्य रूप से वेस्ट्रन ट्रेगोफेन, चीड़ फीजेंट, संटायर ट्रेगोफेन और मोनाल शामिल हैं। सिंधु सतह से 13 हजार फुट की ऊंचाई पर पाए जाने वाले इस पक्षी को हिमालयी रेंज के सबसे सुंदर पक्षियों में एक माना गया है। उत्तराखंड के उत्तरकाशी, मसूरी, केदारनाथ, पिथौरागढ़, टिहरी, बदरीनाथ, रामनगर,पौड़ी, बागेश्वर आदि के उच्च हिमालयी क्षेत्रों में इसके दर्शन होते हैं।

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मोनाल का जंतु वैज्ञानिक नाम लेफोफोरस इंपेजिनस है। जनवरी से मार्च तक इसके प्रजनन काल का समय होता है और इस समय की समाप्ति के बाद जुलाई में मादा मोनाल अंडा देती है।एक माह में इसके बच्चे बाहर निकल आते हैं, लेकिन इसकी संख्या का पता लगाने के लिए राज्य गठन के आठ साल बाद उत्तराखंड सरकार के वन्य जीव संरक्षण बोर्ड ने पहली बार 2008 में मोनाल की गणना कराई थी। उस गणना में पूरे राज्य में इस दुर्लभ पक्षी की संख्या 919 पाई गई थी। कभी यह संख्या हजारों में हुआ करती थी। 2008 में सबसे ज्यादा केदारनाथ में 367 पक्षी देखे गए थे। उसके बाद अब तक मोनाल की दोबारा गिनती नहीं हो पाई है। इसकी संख्या में अप्रत्याशित कमी के पीछे जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार को बड़ा कारण माना जा रहा है। मांसाहारी पक्षी मोनाल के घोंसले में रखे अंडों को नष्ट कर देते हैं।

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राज्य पक्षी का दर्जा देने के बावजूद सरकार और वन विभाग ने इस पक्षी को बचाने के लिए किसी तरह की रुचि नहीं दिखाई। वन महकमे ने 2008 की गणना से सबक लेते हुए इसके बसेरों को विकसित करने का निर्णय जरूर लिया था लेकिन इस दिशा में अब तक कोई काम नहीं हुआ है। लेकिन इसके बाद से इस प्रजाति की गणना नहीं हुई। इन 14 वर्षों के दौरान मोनाल की संख्या में अप्रत्याशित कमी आई है। इसके पीछे जलवायु परिवर्तन, अवैध शिकार से लेकर मांसाहारी पक्षी तक वजह हैं। हिमालय की तलहटी में समुद्री सतह से १३ हजार फुट की ऊंचाई पर जिस जगह यह पक्षी अपना बसेरा बनाता है, वहां पर जलवायु परिवर्तन के कारण बर्फबारी में कमी आ रही है। इसीलिए इस पक्षी की संख्या में गिरावट आई है। हर्षिल घाटी के मोनाल ट्रेल ट्रैक पर कई वर्षों बाद फिर दुलर्भ मोनाल पक्षी दिखाई दिया है। जिससे इस ट्रैक से जुड़े ट्रैकिंग व्यवसायी और ट्रैकर्स उत्साहित नजर आ रहे हैं।

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स्थानीय लोगों का कहना है कि कई वर्षों बाद मोनाल ट्रेल ट्रैक पर फिर से दुलर्भ राज्य पक्षी का दिखाई देना समृद्ध जैव विविधता के लिए शुभ संकेत है। ट्रैकिंग एजेंसी के माध्यम से फ्रांस से आए विदेशी ट्रैकर्स का एक दल करीब पांच किमी लंबे मोनाल ट्रेल ट्रैक पर गया था। ट्रैकिंग के
दौरान ट्रैकर्स का ट्रैक तब सफल हुआ, जब उन्हें इस ट्रैक पर मोनाल पक्षी देखने को मिला। विदेशी ट्रैकर्स का कहना था कि यह पहली बार है जब उन्हें हिमालय की दुर्लभ प्रजाति के मोनाल पक्षी को देखने का मौका मिला है। ट्रैकिंग एजेंसी से जुड़े ने बताया कि वह इस मोनाल ट्रेल ट्रैक का विकसित करने का प्रयास कर रहे हैं। क्योंकि यह हर्षिल घाटी का सबसे नजदीकी ट्रैक होने के साथ ही यहां पर मोनाल की अच्छी संख्या देखने को मिलती है।

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एक सप्ताह पूर्व भी एक ट्रैकिंग दल इस ट्रैक पर आया था। लेकिन उन्हें मोनाल नहीं दिखा। लेकिन अब ट्रैकर्स मोनाल दिखने से इसे अच्छा संकेत मान रहे हैं। राणा ने कहा कि ऊंचाई वाले क्षेत्रों में अधिक बर्फबारी के दौरान यह पक्षी करीब 2500 मीटर तक नीचे ऊतर आते हैं। जिस कारण यह पुराली सहित जसपुर, मुखबा, छोलमी के आसपास आसानी से दिखाई देते हैं। इस वर्ष इस ट्रैक पर यह तीसरा दल है..इसके लिए सरकार को मजबूत इच्छाशक्ति दिखानी होगी।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )

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