पहाड़ों में शुरू होता है आपदाओं का दौर
डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला
यह किसी से छिपा नहीं है कि समूचा उत्तराखंड साल-दर-साल अतिवृष्टि, भूस्खलन, भूकटाव, भूधंसाव, भूकंप जैसी आपदाओं से जूझता आ रहा है। इस परिदृश्य के बीच ऐसे गांवों की संख्या बढ़ती जा रही है, जो आपदा की दृष्टि से संवेदनशील हैं। आपदा की दृष्टि से संवेदनशील उत्तराखंड में इस वर्षाकाल में भी जगह- जगह भूस्खलन ने नींद उड़ाए रखी। इनमें सक्रिय रहे 52 बड़े भूस्खलन क्षेत्रों का सरकार अध्ययन कराने जा रही है। इन स्थानों पर बीती 31 मई से 16सितंबर के मध्य भूस्खलन हुआ। यूएलएमएमसी (उत्तराखंड लैंडस्लाइड मिटिगेशन एंड मैनेजमेंट सेंटर) के विशेषज्ञ आने वाले दिनों में इनका अध्ययन करेंगे। उनकी रिपोर्ट के आधार पर इन क्षेत्रों में भूस्खलन की रोकथाम को उपचारात्मक कार्य प्रारंभ किए जाएंगे।
उत्तराखंड में हर वर्षाकाल किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं टूटता। इस बार ही अतिवृष्टि के चलते हुए भूस्खलन से जानमाल की बड़े पैमाने पर क्षति हुई।जगह-जगह सड़कें बाधित रहीं तो बादल फटने से कहीं खेत बह गए तो दूसरी परिसंपत्तियों को भी क्षति पहुंची। सरकारी आंकड़ों को ही देखें तो आपदा में इस बार 77 व्यक्तियों की जान चली गई, जबकि 37 घायल हुए और 23 लापता हैं। 469 छोटे-बड़े पशु काल कवलित हुए, जबकि 2800 घरों को नुकसान पहुंचा।राज्य में इस बार छोटे-बड़े 500 से अधिक स्थानों पर
भूस्खलन हुआ। इनमें 52 स्थान ऐसे रहे, जहां बड़े भूस्खलन हुए, जिनमें चार स्थानों पर एक से ज्यादा बार भूस्खलन हुआ। यद्यपि, तात्कालिक तौर पर वहां कदम उठाए गए, लेकिन अब इनके दीर्घकालिक उपचार पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
भटवाड़ी, सोनानदी रेंज, फाटा, गुमड, बड़कोट, माझेरा, पाटी, द्वारा, जोगीधारा, पातालगंगा, डुंगरा, धरासू, डाबरकोट, आमसौड़, डिडसारी, गौरीकुंड, नेतला, बिनहार, तोली व तिनगढ़, रिखेली, सुनगर, चीरबासा, झाजरगाड, रोहिडा, ग्लोगी, बिशनपुर, थलीसैण, सोनप्रयाग से गौरीकुंड, रामबाड़ा से गरुड़चट्टी, बागेश्वर, भीमबली, कुथनोर व केशला, गुट्टू, नंदप्रयाग, गोफियारा (वरुणावत), नलुना, फूलचट्टी, बंदरकोट, नीराकोट, क्वार्ब पुल, मानगढ़, मेलधार, कांडानोला, गंगोली कौतुली-रामचौरी, बादेछीना-सेराघाट, धौलादेवी-खेलती-बजेली, राडी बैंड, मटियानी, सेवला, माखंडी व आदि कैलास। राज्य में इस बार जिन स्थानों पर बड़े भूस्खलन हुए, अब उनके उपचार पर ध्यान केंद्रित किया जा रहा है।
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सचिव आपदा प्रबंधन इन क्षेत्रों का यूएलएमएमसी से अध्ययन कराया जाएगा और फिर उसकी रिपोर्ट के आधार पर दीर्घकालिक उपचार के कार्य प्रारंभ होंगे। साथ ही इनकी निगरानी भी रखी जाएगी। आपदा की दृष्टि से अति संवेदनशील इलाके पिथौरागढ़ में बरसात के दिनों तबाही भी देखने को मिलती है। जगह जगह भूस्खलन और नदियों के जलस्तर बढ़ जाने से यहां जनजीवन रुक सा जाता है और रोजमर्रा की जरूरतों की आपूर्ति भी ठप हो जाती है। भूस्खलन होने से कई इलाकें ऐसे है जिनका संपर्क ही देश दुनिया से कट जाता है। प्राकृतिक आपदाओं की दृष्टि से बेहद संवेदनशील उत्तराखंड में आपदा प्रभावितों के पुनर्वास के लिए राज्य में निर्जन हो चुके 1702 गांव उम्मीद की किरण बन सकते हैं। प्रभावितों के पुनर्वास को इन गांवों की भूमि को उपयोग में लाया जा सकता है। इससे जहां निर्जन गांव आबाद होंगे, वहीं पुनर्वास के लिए भूमि उपलब्ध न होने की समस्या से जूझ रहे तंत्र को राहत मिलेगी।
ग्राम्य विकास एवं पलायन निवारण आयोग के उपाध्यक्ष के अनुसार आपदा प्रभावितों के पुनर्वास को यह एक बेहतर विकल्प हो सकता है। इस पर भी विचार किया जाना चाहिए। “हम पूरे देश के अलग-अलग जियो क्लाइमेटिक जोन में एक ही तरह की विकास परियोजनाओं की बात नहीं कर सकते। हिमालय विश्व के सबसे नए पहाड़ों में हैं और इन नाज़ुक ढलानों पर बार-बार भू-स्खलन होते रहते हैं,” राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के सदस्य एवं विभाग प्रमुख ने कहा कि जनपद भूकम्प आपदा के प्रति संवेदनशील है। भूकम्प एक ऐसी आपदा है जिसकी कोई प्रारंभिक चेतावनी नहीं है, परंतु हमें ऐसी परिस्थितियों के लिए अभी से तैयार रहना होगा।
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इस आपदा के कारण विभिन्न दुर्घटनाएं जैसे-अग्नि दुर्घटना, कारखानों में केमिकल की घटना इत्यादि का प्रभाव भी हम सब पर पड़ता है।आपदा के दृष्टिगत आपदा की दृष्टि से संवदेनशील एवं अतिसंवेदनशी क्षेत्र के ग्रामों में जनमानस को आपदा की स्थिति से निपटने, सुरक्षा एवं बचाव हेतु प्रशिक्षित करने के निर्देश दिए गए हैं। इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं।
(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं )