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राजनीति के सौम्य थे “बचदा”

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राजनीति के सौम्य थे “बचदा”

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डॉ. हरीश चन्द्र अन्डोला

मूल रूप से अल्मोड़ा के पाली गांव के रहने वाले बची सिंह रावत की जन्म 1 अगस्त 1949 को हुआ था। जहां उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। जिसके बाद उन्होंने अपनी उच्च शिक्षा आगरा विश्वविद्यालय में उन्होंने एमए अर्थशास्त्र की डिग्री हासिल करने के बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की। साल 2007 से बची सिंह रावत अपने परिवार के साथ हल्द्वानी के करायल जौलासल में रहते लगे बची सिंह रावत उत्तराखंड की राजनीति में एक धुरंधर के रूप जाने जाते थे। बची सिंह रावत लगातार छह बार चुनाव जीतकर पहाड़ के लिए रिकॉर्ड भी बनाया था। साल 1992 में पहली बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के सदस्य चुने गए थे, जहां वे 4 महीने तक राज्य मंत्री रहे। साल 1993 में उन्होंने विधायक का चुनाव जीता था। जिसके बाद 1996 में अविभाजित उत्तराखंड की अल्मोड़ा-पिथौरागढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीता। इसके बाद उनकी जीत का सीलसीला शुरू हो गया। वे साल 1998, 1999 में भी संसद पहुंचे। जिसमें उन्होंने कांग्रेस के कद्दावर नेता को पटखनी दी थी। साल 1999 में रिकॉर्ड तोड़ मतों से जीत हासिल करने के बाद बची सिंह रावत को अटल बिहारी वाजेयपी की सरकार में रक्षा राज्य मंत्री और विज्ञान प्रौद्योगिकी राज्यमंत्री बनाया गया था। अल्मोड़ा संसदीय सीट से लगातार जीतने कारण उनकी लोकप्रियता बढ़ती गई है। यहीं कारण था कि साल 2004 में वे फिर से संसद पहुंचे।

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बची सिंह रावत का कद उत्तराखंड की राजनीति में लगातार बढ़ता गया। साल 2012 के उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में बची सिंह रावत बीजेपी प्लानिंग कमेटी के चेयरमैन रहे और मेनिफेस्टो बनाने में उनकी अहम भूमिका थी। लेकिन साल 2014 में पार्टी द्वारा उपेक्षा किए जाने से नाराज होकर उन्होंने सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन बाद में पार्टी के शीर्ष नेताओं के कहने पर बीजेपी में वापसी की थी। बचदा देश की कई महत्वपूर्ण संसदीय समितियों के सदस्य, 1999 मे पहली बार केन्द्र मे स्थापित अटल सरकार मे रक्षा राज्य मंत्री तथा बाद मे, 1999 – 2004 तक विज्ञान और तकनीकी केन्द्रीय राज्य मंत्री रहे। 2007 मे भाजपा उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए थे। ‘बचदा’ के उक्त कार्यकाल मे, भाजपा प्रदेश मे चुनाव जीत, सरकार बनाने मे सफल रही थी। 2012 मे, ‘बचदा’ को प्रदेश चुनाव मे प्लानिग कमेटी चेयरमैन बनाया गया था। पार्टी चुनाव घोषणा पत्र बनाने मे उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

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अल्मोडा-पिथौरागढ संसदीय सीट आरक्षित हो जाने के बाद, 15वा लोकसभा चुनाव ‘बचदा’ ने नैनीताल-उधमसिंह नगर से लड़ा था, जहा से चुनाव हार गए थे। 2014 मे हुए लोकसभा चुनाव मे, ‘बचदा’ का टिकट काट दिया गया था। उन्होंने रुष्ट होकर भाजपा के सभी पदो से इस्तिफा दे दिया था। राजनाथ सिंह के आहवान पर बचदा पुन: भाजपा मे लौट आये थे, परंतु पार्टी ने बाद के वर्षो मे उनकी सुध नहीं ली। वर्तमान मे ‘बचदा’ को प्रदेश संगठन की जिम्मेवारी तक, सीमित रखा गया था। मुरली मनोहर जोशी के करीबी, जमीन से जुडे हुए ‘बचदा’ , बेहद सौम्य, सरल व ईमानदार व्यक्ति के तौर पर जाने जाते थे। मूल रूप से रानीखेत के निकट पाली गांव मे 1 अगस्त 1949 को जन्मे, बचदा की प्रारंभिक शिक्षा रानीखेत, उच्च शिक्षा व वकालात लखनऊ व आगरा विश्व विद्यालय से पूर्ण हुई थी। रानीखेत जरूरी बाजार के अपने निवास से उन्होंने स्थानीय राजनीति में कदम रख, देश की राजनीति तक यश प्राप्त किया था।

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‘बचदा’ की गिनती राज्य के सबसे वरिष्ठ नेताओ मे की जाती थी। प्रदेश के अनेको आंदोलनों मे उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अनेको बार आंदोलनों के दोरान, जेल गए थे। उत्तराखंड राज्य निर्माण में सांसद के नाते, ‘बचदा’ ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। अटल, अडवानी व मुरली मनोहर जोशी के साथ उत्तराखंड राज्य निर्माण की बैठकों मे, उनकी भूमिका तथा आजीवन जनसरोकारो से जुडे रहे, जमीनी नेता, बची सिंह रावत ‘बचदा’ को भुलाया नहीं जा सकेगा। बची सिंह रावत उन चन्द लोगों में शामिल थे जिन के संसर्ग में रहकर हमने समाज को देखने की थोड़ा समझ विकसित की। यह वर्ष 1987 की बात थी जब ब्लाक प्रमुख का चुनाव था।

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बच्ची सिंह रावत ताड़ीखेत ब्लाक से प्रमुख के उम्मीदवार थे। उन दिनों सभी स्थानों पर प्रमुख उम्मीदवार कांग्रेस पार्टी का ही होता था जिसका धनाढ्य और बाहुबली होना ही पहली पात्रता होती थी। इधर बच्ची सिंह रावत रानीखेत में अपनी सरलता के लिए जाने जा रहे अधिवक्ता थे लेकिन उनके भीतर वह आत्मविश्वास नहीं था कि वह कांग्रेस के किसी धनाढ्य और बाहुबली प्रत्याशी का मुकाबला कर सकें। हालांकि प्रमुख के चुनाव में तब बी.डी.सी मेंबर के लिए रुपए से खरीद फरोख्त नहीं होती थी लेकिन बी.डी.सी मेम्बर को इकट्ठा रखने के लिए धन और बाहुबल की आवश्यकता होती ही थी। द्वाराहाट से कांग्रेस प्रत्याशी के विरुद्ध स्वर्गीय विपिन त्रिपाठी उम्मीदवार थे और भिक्यासैण से पुष्कर पाल। इन तीनों प्रत्याशियों का आपस में अच्छा गठजोड़ बन गया था। तीनों एक दूसरे की सहायता कर रहे थे। आपसी सहयोग से बिपिन दा और पुष्कर पाल विजय हुए।

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चुनाव के दो दिन पहले कुछ आशंकाओं को लेकर बच्ची सिंह द्वाराहाट आए। विपिन दा ने प्रताप बिष्ट पूर्व विधायक भिक्यासैण, और मुझे बच्ची सिंह के साथ कर दिया। हम दोनों ही युवा और मुखर थे। ताडीखेत जाकर थोड़ा माहौल बना आए। बाद के दिनों में बच्ची सिंह ने विधायक व सांसद होने के साथ ही केंद्रीय मंत्री का भी महत्वपूर्ण पद प्राप्त किया लेकिन यह उनकी सरलता व बडप्पन ही था कि वह उस शुरुआती संपर्क के प्रति हमेशा अपनी आंखों से कृतज्ञता जताते रहे थे।यद्यपि सीधा और सरल होना राजनीति में कमजोरी समझी जाती रही, लेकिन स्वर्गीय बची सिंह रावत जी इस मिथक को तोड़ने में कामयाब रहे। बची सिंह रावत “बची दा” को उनकी पुण्यतिथि नमन किया है। सीएम ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म एक्स पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करते हुए पोस्ट में लिखा कि भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री बची सिंह रावत “बची दा” की पुण्यतिथि पर कोटिशः नमन। जनसेवा एवं संगठन हेतु समर्पित आपका जीवन हम सभी के लिए प्रेरणास्रोत है।

(लेखक दून विश्वविद्यालय में कार्यरत हैं)

 

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